Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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[प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२३७ ने आजीवन धूम्रपान छोड़ दिया। आपने प्रवचन में फरमाया कि मानव समाज की शान्ति एवं सुव्यवस्था के लिए चार भूमिकाएँ हैं -(१) शरीर-स्वास्थ्य के लिये चिकित्सक (२) सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के लिए शासक (३) संस्कृति की रक्षा के लिए शिक्षक (४) मन की पवित्रता के लिए सन्त ।।
कोटा के जे.के. बेडमिंटन हाल में आयोजित महावीर जयन्ती कार्यक्रम के अवसर पर आपने फरमाया कि हमें आहार, व्यवहार, विचार और आचार को शुद्ध रखते हुए जन समाज में निर्व्यसनता के साथ भगवान महावीर के संदेशों का प्रचार करना चाहिए। सभा में तत्कालीन न्यायाधीश श्री जसराज जी चौपड़ा ने इस पावन प्रसंग पर संघ-एकता का आह्वान किया। श्री बंशीलालजी लूंकड, श्री पुखराजजी सकलेचा, श्री हरबंसलालजी जैन एवं श्री सांवतमलजी मेहता ने आजीवन शीलव्रत ग्रहण कर गुरु चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित किए। आपके कोटा जंक्शन पधारने पर श्री हेमराजजी सुराना एवं श्री प्यारचन्दजी सुराना ने शीलवत अंगीकार किया। आचार्यप्रवर ने दूसरे दिन प्रवचन में युवकों को जीवन-निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान किया। आपने फरमाया कि “भारतीय संस्कृति में सदा से त्याग-तप और आचार की महिमा रही है। क्योंकि यहाँ राम, कृष्ण और महावीर की जयन्ती मनायी जाती है, किसी बादशाह की नहीं।” सामायिक के सम्बन्ध में आपने फरमाया कि सामायिक आत्मा को पाप से हल्का करने की कला है। इन दिनों विरक्त प्रमोदजी आचार्यप्रवर के श्री चरणों में अपना समर्पण कर चुके थे। विहारकाल में भी वे कुछ माह से साथ में थे। कोटा से आचार्य श्री केशोरायपाटन, अरनेठा, कापरेन , घाट का बराना, लबान, लाखेरी, सुमेरगंज मंडी, इन्द्रगढ आदि ग्राम-नगर फरसते हुए ७ मई को बाबई ग्राम पधारे। मार्ग में अजैन बस्तियों को निर्व्यसनता की प्रेरणा की, जैनों के आचार की जानकारी से ग्रामीण प्रसन्न हुए। करुणाकर के पावन दर्शन व प्रेरणा से प्रेरित हो लाखेरी में युवक अशोक कुमार ने एक वर्ष के लिए मांस एवं शराब का त्याग किया। सुमेरगंजमण्डी एवं इन्द्रगढ में स्वाध्याय एवं सामायिक की प्रेरणा करते हुए आपने फरमाया कि स्वाध्याय से मन की चंचलता को कम किया जा सकता है, सामायिक से समभाव की कला सीखी जा सकती है। बाबई में रात्रि के समय वृक्ष के नीचे विराजे। ध्यानस्थ आचार्य श्री से अत्यंत प्रभावित हुए राजपूत कुल के सवाईमाधोपुर के निवर्तमान जेलर, जो प्रतिदिन शराब पीकर परिजनों को कष्ट पहुँचाते थे, ने आजीवन शराब न पीने की सौगन्ध ली। यहाँ से १३ कि.मी. का विहार कर आप बगावदा पधारे, जहाँ श्री लड्डलालजी एवं गहरीलालजी ने शीलव्रत का नियम लिया। रात्रि में धर्मकथा से प्रभावित अनेक ग्रामवासियों ने व्यसनमुक्ति के नियम लिए । आचार्यप्रवर की प्रेरणा
और जयपुर के श्रावकों के सत्प्रयासों से संघ में पुन: एकता कायम हुई । यहाँ से आप कुस्तला ग्राम होकर आलनपुर पधारे। १३ मई ८३ को प्रातः सवाई माधोपुर के परकोटे में पधारते ही भक्तों ने बड़ी संख्या में एकत्र होकर भाव भरे नारों के जयघोष से दिग्दिगन्त गुंजा दिया
'खुला बगीचा प्यारा है, हस्ती गुरु हमारा है।' 'हिमालय की ऊँची चोटी, हस्ती गुरु की पदवी मोटी।'
'प्रेम का झूला झूलेंगे, हस्ती गुरु को नहीं भूलेंगे।' ठाणा १० से आचार्य श्री तथा ठाणा ४ से महासती श्री शान्तिकंवर जी म.सा. के यहाँ विराजने से महावीर | भवन में धर्मध्यान का अपूर्व ठाट लग गया। अक्षयतृतीया पर ७९ तपस्विनी बहनें आचार्यप्रवर के दर्शन-वन्दन से | कृतकृत्य हो उठीं। आगन्तुकों ने अनेक व्रत-नियम धारण किए गए। क्षेत्र में धार्मिक आयोजन का उत्साह देखने योग्य था। जयपुर, पाली, धनारीकला, मद्रास एवं पल्लीवाल क्षेत्र से लगभग २००० श्रावक-श्राविका तथा पोरवाल क्षेत्र से लगभग ५००० व्यक्तियों ने सन्त-दर्शन एवं तप-अनुमोदना का लाभ लिया। परमपूज्य चरितनायक के