Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २८४ प्रवचन में उपस्थिति व पालीवासियों के उत्साह से ऐसा लगता ही नहीं था कि चातुर्मास पूर्ण हो गया है। पौष शुक्ला चतुर्दशी ३० दिसम्बर १९९० को यहाँ पूज्य चरितनायक आचार्य हस्ती का ८१ वां जन्म-दिवस त्याग-तप व उमंग-उल्लास के साथ मनाया गया। जन्म-दिवस के इस आयोजन पर अखंड शान्तिजाप, सामूहिक दया-संवर उपवास, बेले-तेले, पाँच और अठाई तप करके तथा पचरंगी की आराधना में भाग लेकर श्रद्धालु भक्तों ने अपने आराध्य गुरुवर्य के श्री चरणों में सच्ची श्रद्धाभिव्यक्ति की। जैन भाइयों ने ही नहीं जैनेतर भाइयों ने भी जन-जन की अनन्य आस्था के केन्द्र पूज्य हस्ती के प्रति अपनी श्रद्धा-निष्ठा व्यक्त करते हुए तप-त्याग का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। मालावास निवासी श्री जीवनसिंह जी राजपूत ने जब पूज्यपाद के श्रीमुख से अठाई तप का प्रत्याख्यान लिया तो समूचा पाण्डाल जैन धर्म की जय, शासनेश वीर वर्द्धमान की जय, पूज्य आचार्य श्री की जय व तपस्या करने वालों को धन्यवाद के नारों से गूंज उठा। सामायिक स्वाध्याय के पर्याय गुरु हस्ती के जन्म-दिवस के इस प्रसंग पर कई भाई बहिनों ने सामायिक स्वाध्याय के नियम लेकर गुरु हस्ती के संदेश को जीवन में अपनाया। षट्काय प्रतिपाल करुणानाथ के ८१ वें जन्म दिवस पर पाली संघ द्वारा ८१ जीवों को अभयदान देने की घोषणा की गई।
दया धर्म के पालक, अहिंसा, संयम व तप रूप धर्म के साकार स्वरूप परमाराध्य आचार्य भगवन्त ने इस अवसर पर अपने हृदय के उद्गार व्यक्त करते हुए फरमाया - “अहिंसा के आचरण से झुलसती मानवता की रक्षा की जा सकती है।" हिंसा को त्याज्य बताते हुए आपश्री ने क्रोध को शान्ति से, मान को मृदुता व नम्रता से, माया को ऋजुता व सरलता से तथा लोभ को संतोष से जीतने की प्रेरणा की। क्षमा, सन्तोष, सरलता व नम्रता को धर्म के चार द्वार बताते हुए आपने इन पर अमल करने की प्रेरणा की। इस अवसर पर पूज्यपाद का ८१ वाँ जन्म-दिवस महोत्सव दिल्ली के प्रीतमपुरा में प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के मुख्य आतिथ्य में मनाया गया, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से उपस्थित हजारों लोगों ने भाग लिया। समारोह में उपस्थित विभिन्न संत सतीवृन्द, प्रधानमंत्री समेत राजनेताओं व संघ प्रतिनिधियों ने अपने भावोद्गार व्यक्त करते हुए पूज्यपाद के महनीय गुणनिधान जीवन पर प्रकाश डाला। ___माघ शुक्ला द्वितीया १८ जनवरी १९९१ को पूज्यपाद का ७१ वाँ दीक्षा दिवस नेहरु नगर, पाली में सामूहिक दया-संवर-साधना, तप-त्याग व श्रद्धा समर्पण के साथ मनाया गया। सामायिक के साकार स्वरूप पूज्य हस्ती ने आज ही के दिन अपने पूज्यपाद गुरुदेव आचार्य शोभा के श्रीचरणों में जीवन पर्यन्त के लिये सामायिक चारित्र स्वीकार किया था। इस उपलक्ष्य में सामायिक संघ के अधिवेशन का आयोजन कर सामूहिक सामायिक की प्रेरणा की गई। पूज्यप्रवर ने इस अवसर पर अपने हृदयस्पर्शी उद्बोधन में अपने आराध्य गुरु आचार्य पूज्य शोभाचन्दजी म.सा. व संस्कार गुरु स्वामीजी हरखचन्दजी म.सा. की हित शिक्षाओं का स्मरण करते हुए फरमाया कि गुरुजनों का उपकार में कभी भी नहीं भूल सकता। पूज्यपाद के सुशिष्य पं. रत्न श्री मानमुनि जी म.सा. ने संक्षिप्त भावाभिव्यक्ति में पूज्य चरितनायक की ओर इशारा करते हुए फरमाया - "आपका जीवन बोलता है, आप उपदेश दें न दें तब भी आपके दर्शन मात्र से प्रवचन का काम हो जाता हैं।"