Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
अध्यात्मयोगी : महाप्रयाण की ओर
पाली चातुर्मास के अनन्तर पूज्यपाद चरितनायक का स्वास्थ्य समीचीन नहीं रहा, अतः चातुर्मास के पश्चात् आपको पाली के उपनगरों में फरसते हुए लगभग तीन माह विराजना पड़ा। आचार्यप्रवर शारीरिक असमाधि को भेद-विज्ञान से निस्तेज करते हुए संयम-साधना, ध्यान-मौन एवं आत्मानुप्रेक्षा में लीन रहे और दर्शनार्थी उपासकों को सामायिक, स्वाध्याय आदि नियमित करने की प्रेरणा करते रहे। सामायिक, स्वाध्याय एवं निर्व्यसनता का प्रचार आचार्य श्री के जीवन का मिशन था। • जोधपुर संघ की स्थिरवास हेतु विनति
आचार्यदेव की शारीरिक शिथिल स्थिति को देखकर जोधपुर का संघ कई बार गुरुचरणों में पहुँचा एवं पुरजोर विनति – “भगवन् ! आप श्री की शारीरिक स्थिति अब विहार करने योग्य नहीं है। आपने ७० वर्ष पर्यन्त सतत विचरण कर जिनशासन की महती प्रभावना की है एवं प्रभु महावीर की भव भयहारिणी मंगलवाणी द्वारा डगर-डगर, गाँव गाँव एवं नगर-नगर में अध्यात्म का अलख जगाते हुए सामायिक-स्वाध्याय के अमृतोपम आघोषों से जन-जन को उपकृत किया है। कृपानाथ ! शारीरिक स्थिति को देखते हुए आपसे हमारी विनति है कि आप जोधपुर में स्थिरवास हेतु विराज कर संघ को लाभान्वित करें।” जोधपुर संघ की आग्रहभरी विनतियाँ चलती रहीं। किन्तु आत्मानुप्रेक्षी अध्यात्मनीषी ने भावी को जान लिया था। उन्होंने सन्तों को अपने मनोगत भाव प्रकट करते हुए | कहा-"मैंने अब तक संयम जीवन में सुखे समाधे जो-जो भी क्षेत्र फरसने का आश्वासन (जैसी फरसना होगी) दिया। था, उन सबको गुरुकृपा एवं सन्तमण्डल के सहयोग से पूरा कर सका हूँ। एक आश्वासन निमाज श्री संघ को, विशेषतः भण्डारी परिवार को दिया हुआ है, अतः मेरी भावना निमाज फरसने की है। गुरुदेव के मनोगत भाव श्रवण कर पं. रत्न श्री मानमुनिजी म.सा. एवं पं. रत्न श्री हीरामुनिजी म.सा. आदि सन्तों ने निवेदन किया-“भगवन् ! आप जैसा चाहें, आज्ञा प्रदान करावें । हम सब मिलकर आपके आदेश की पालना सहर्ष करने को तत्पर हैं।”
जोधपुर संघ की आग्रहभरी विनति चलती रही, किन्तु आचार्य श्री ने अपने निश्चय से अवगत करा दिया कि वे निमाज संघ को दिए गए आश्वासन को पूर्ण करना चाहते हैं। जोधपुर संघ ने रत्नवंश के प्रमुख पदाधिकारियों एवं अग्रगण्य सुश्रावकों को भी अपने पक्ष में करते हुए विनति रखी - "दीनदयाल ! आप संघ के सर्वेसर्वा एवं लाखों भक्तों के भगवान हैं। यह शरीर जिसे आपने कभी अपना नहीं समझा, भगवन् ! इस पर चतुर्विध संघ का भी अधिकार है। शरीर का स्वास्थ्य पहले है, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के आगार से साधुभाषा में दिया गया आश्वासन बाद में। अतः आप कृपा कर स्वास्थ्य की दृष्टि से नजदीक में सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र जोधपुर में स्थिरवास हेतु पधारें।” इस पर दृढमनोबली महापुरुष ने निर्लिप्त भावों के साथ संघ के प्रमुख श्रावकों के समक्ष वही बात दोहराई - "मुझे अभी निमाज की बात पूरी करनी है।” इस बात को सुनकर भक्तगण चिन्तित एवं मौन थे। . पाली से पदार्पण
श्री शुभेन्द्रमुनिजी म.सा. आदि सन्तों के सिंघाड़े के सवाईमाधोपुर चातुर्मास के अनन्तर पाली पदार्पण के