Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२९३ भावाभिभूत थे। संध्याकाल प्रतिक्रमण के पश्चात् संतगण के विनम्र अनुरोध के उपरान्त भी विश्राम न कर भगवन्त ध्यान एवं जप-साधना में ही निरन्तर लीन रहे। रात्रि में लगभग १२ बजे जब संसार के अधिकांश प्राणी प्रमाद-निद्रा में लीन होते हैं, आत्म-चिन्तन में रत वे साधक शिरोमणि समीपवर्ती बैठे संतों को अत्यन्त आत्मिक भाव से स्नेहसिक्त वात्सल्यपूर्ण मधुर वचनों के साथ संयम-साधना में सतत जागरूक रहने की प्रेरणा देते हुए भोलावण देने लगे- “आचार्य श्री रत्नचंद्र जी म. सा. की मर्यादा निभाना, समाचारी का पालन करना, आपस में मतभेद मत रखना, मेरी आत्मा को शांति मिले, ऐसा कार्य करना, संघ में प्रेम-शांति बनाये रखना, संघ का मान रखना।" इतना कह कर बड़ी संलेखना का पाठ श्रवण कर पूज्य प्रभु पुनः इसी अलमस्त साधना में | तन्मय हो गये। सन्तों को गुरुदेव की ओर से ये शब्द अंतिम आदेश, उपदेश एवं भोलावण के थे।
अगले दिन १८ मार्च ९१ को मध्याह्न तक पूज्य भगवन्त कुछ भी नहीं बोले । पेय पदार्थ ग्रहण करने के | लिए सन्तों द्वारा पुनः पुनः आग्रह किए जाने पर उन युग मनीषी के द्वारा प्रकट किए गए विचार , संवाद के रूप में (जिनवाणी-श्रद्धाञ्जलि अंक) से प्रस्तुत है
गुरुदेव-मेरी आत्मा को सम्भालो, शरीर का मोह छोड़ दो। शरीर के पीछे क्यों पड़े हो ! अरे भाई, म्हारा शरीर ने छोड़ो शरीर अनन्त बार धार्यों है और छोड्यो है। म्हारो जनम खराब मत करो।
___ जम्म दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि य।
अहो दुःखो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो ।। म्हारी आत्मा री साधना में कमजोरी मत लावो । संतगण-शरीर में कमजोरी आ रही है भगवन् ! गुरुदेव- शरीर तो अनन्त बार धार्यो है और छोड्यो है। संतगण-भगवन् ! देवलोक में जाने की इतनी आतुरता क्यों? शरीर रहेगा तो संयम रहेगा, संयम श्रेष्ठ है या
नन्दनवन (देवलोक) ? गुरुदेव-सर्वश्रेष्ठ तो आत्मा है। संतगण-दोनों की तुलना में भगवन् ! संयम या नन्दनवन ? गुरुदेव-नन्दवन तो क्या है, पौद्गलिक है। आत्म-भाव ही अनंत सुख देने वाला है। संतगण - भगवन् ! जल सेवन कर लें। गुरुदेव-आचार्य श्री की मर्यादा का पालन करने का ध्यान रखना। संतगण-आपने प्यास नहीं लागे ? गुरुदेव-प्यास को कांई करनो है, अनन्त बार भूख और प्यास लगी है। संतगण-भगवन् ! बिना अन्न-जल के यह शरीर कैसे चलेगा ? गुरुदेव-शरीर तो स्वतः छूट जाई।। सन्तगण-भगवन् ! आप तो इसे छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। गुरुदेव-आनन्द है।