Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
३३४
चतुर कृषक जल को नाली में न डालकर बाडी में बहाता है। इसी प्रकार १८ पापों से संचित द्रव्य को आरम्भ-परिग्रह की नाली में न बहाकर ज्ञान-दान, अभय-दान, शासनसेवा, स्वधर्मिसहाय, उपकरण - दान आदि में लगाने से उसका सदुपयोग हो सकता है।
• भला व्यक्ति भी नीच की संगति से कलंकित होता है ।
• गुणशून्य बाह्य रमणीकता निस्सार है ।
• श्रावक धर्म की साधना के लिए निर्व्यसनी होना प्रथम आवश्यकता है
1
• द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अनुकूलता में पुरुषार्थ किया जाय तो कार्य सिद्धि हो सकती है।
आज के श्रावक व्यावहारिक जगत् में पैतृक सम्पदा की तरह गुरु से दी गई धर्म -सम्पदा को बढ़ाकर सच्चे सपूत बनें तो विश्व का कल्याण हो सकता है ।
• ममता
चक्कर में पड़ने वाला स्वयं अशान्त हो दूसरों को भी अशान्त करता है ।
• व्यसन का अर्थ ही विपत्ति है । जिससे धनहानि हो एवं जीवन दुःखमय हो वैसी कोई कुटेव नहीं रखनी चाहिए। • एक का दिल-दिमाग बिगड़े, उस समय दूसरा सन्तुलित मन को सम्भाल ले, तब भी बिगड़ा हाल सुधर जाता है • मनुष्य को पर-दुःखदर्शन के समय नवनीत सा कोमल और कर्तव्य पालन में वज्रवत् कठोर रहना चाहिए।
1
ही गुण की कद्र करता है। गुणों से ही मनुष्य की पूजा होती है ।
भोग पर नियन्त्रण रखने वाला ही देश धर्म की सेवा कर सकता है।
·
•
•
•
ज्ञानपूर्वक मार्ग ग्रहण करने वाला कठोर परीक्षा में, उलझन के समय भी सम्भल जाता है।
'
•
जो लोग भाई-भाई के बीच एवं सम्प्रदायों के बीच दीवाल खड़ी करते हैं, वे सपूत नहीं हैं । • स्वतन्त्रता अमृत एवं स्वच्छन्दता विष है ।
जाति शरीर के अन्त तक है, परन्तु विचारों व संस्कारों में बदलाव होता रहता है।
भीतरी ग्रहों का शमन करने पर बाहर के ग्रहों का कोई भय नहीं रहता ।
यदि
एक बार भी क्षायिक भाव का उत्थान हो जाय तो फिर गिरने का धोखा नहीं रहता ।
विषमवृत्तियों को सम करने और कषाय की दाह का शमन करने वाली क्रिया का नाम ही सामायिक है ।
• अज्ञान, मिथ्यादर्शन और कदाचार बन्ध के कारण हैं । इनको त्यागने
मुक्ति होती है।
• द्रव्य दया शरीर की रक्षा और भावदया आत्मगुणों की रक्षा है ।
विभूषा, स्त्री-संसर्ग और प्रणीत भोजन ब्रह्मचारी के लिए विष हैं।
राग-द्वेष की मुक्ति व एकांत सुख के लिए ३ बातें आवश्यक हैं - (१) ज्ञान का पूर्ण प्रकाश (२) अज्ञान-मोह का विवर्जन (३) राग-रोष का क्षय ।
विषय-कषाय से मन को खाली करने पर भगवत् - निवास होता है।
अहंकार से सत्कर्म वैसे ही क्षीण हो जाता है, जैसे मणों दूध पावरती संखिया से जहरीला हो जाता है।
•
•
•
•
•
•
•