Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ၃၃ခု
और परलोक दोनों बिगाड़ लेता है। अगर हमारे चित्त में किसी प्रकार का दम्भ नहीं है, वासनाओं की गंदगी नहीं है और तुच्छ स्वार्थ-लिप्सा का | कालुष्य नहीं है तो हम वीतराग के साथ अपना सान्निध्य स्थापित कर सकते हैं। जिनशासन में तप का महत्त्व है, पर ज्ञानशून्य तप का नहीं। ज्ञान न मिलने का अन्तरंग कारण तो है ज्ञानावरण कर्म और ज्ञान न मिलने का बाहरी कारण है ज्ञानी जनों की
संगति का अभाव। • ज्ञानावरण का जोर रहा और बाहरी साधनों-संगति, पुस्तक आदि का संयोग नहीं मिला तो ज्ञान प्राप्त नहीं
होगा। ज्ञानावरण का जोर घटा, क्षयोपशम हुआ और ज्ञानी की संगति मिली तो ज्ञान प्राप्त होगा।
जिस तत्त्व के द्वारा धर्म, अधर्म, सत्य, असत्य जाना जाय, उसको ज्ञान कहते हैं। ज्ञान आत्मा का गुण है। • जिन व्यक्तियों में सदाचार तथा सद्गुणों की सौरभ नहीं होती, वे संसार में आकर यों ही समय नष्ट कर चले जाते हैं।
दुर्लभ नर-जीवन को व्यर्थ में गंवाना, अज्ञानता की परम निशानी है। • मोह के कारण ही त्याग की बुद्धि उत्पन्न नहीं होती है। • गुणों का महत्त्व भूलकर गुणी का तिरस्कार करना उचित नहीं। • आत्मा की कीमत सोने के आभूषणों से नहीं वरन् सदाचार, प्रामाणिकता और सद्गुणों से है। • यदि जीवन का निर्माण करना है तो प्रत्येक को स्वाध्याय करना पड़ेगा। स्वाध्याय के बिना ज्ञान की ज्योति नहीं
जलेगी। • हमारे शिक्षणालयों का उद्देश्य होना चाहिए कि उनमें अध्ययन करने वाले छात्र सदाचारी एवं ईमानदार बनें। • आज के अध्यापक का जितना ध्यान शरीर, कपडे, नाखन. दांत. आदि बाह्य स्वच्छता की ओर जाता है. उतना
छात्रों की चारित्रिक उन्नति की ओर नहीं जाता। • बाह्य स्वास्थ्य जितना आवश्यक समझा जा रहा है, अन्तरंग स्वास्थ्य उससे कहीं अधिक आवश्यक है। • सन्त लोगों का काम तो उचितानुचित का ध्यान दिलाकर सर्चलाइट दिखाना है। • ध्यान और मौन की साधना के साथ यदि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना करेंगे तो आत्मा का
कल्याण होगा। • आज विश्व को शस्त्रधारी सैनिकों की नहीं, शास्त्रधारी सैनिकों की आवश्यकता है।
समाज में तप-संयम का बल जितना बढ़ेगा उतनी ही सुख शान्ति कायम होगी। • वीतराग पथ पर कोई भी व्यक्ति अग्रसर हो सकता है, चाहिए दृढ़ इच्छाशक्ति, वैराग्य और सत्साहस । • तप राग घटाने की क्रिया है।
तप के समय ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे राग की भावना घटे और वैराग्य की भावना बढ़े। • श्रद्धालु श्रावक दुःख आने पर भी श्रद्धा से दोलायमान नहीं होता।