Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं विराज कर जैन-जैनेतर भक्त समुदाय को अपनी प्रवचन सुधा का पान कराते रहे। दिनांक २३ जून को यहां से विहार कर क्रमश: ६, ६, ४, ८ व ५ किलोमीटर का पाद विहार कर पूज्य आचार्य भगवन्त अरटिया प्याऊ चोटिला, केरला स्टेशन, घुमटी फरसते हुए दिनांक २७ जून को कमला नेहरू नगर हाउसिंग बोर्ड, पाली पधारे। विचरण-विहार में जोधपुर एवं पाली के श्रावक-श्राविकाओं का आवागमन बराबर बना रहा। मार्गस्थ क्षेत्रों के भक्तों ने अपूर्व सेवा भक्ति का लाभ लिया। जन-जन की आस्था के केन्द्र संत-शिरोमणि पूज्य हस्ती की सेवा में जैनेतर भाई भी पीछे नहीं रहे। • अन्तिम चातुर्मास पाली में (संवत् २०४७) ___दिनांक २ जुलाई को वि.सं. २०४७ के चातुर्मासार्थ शिष्यमंडल के साथ आपका सुराणा मार्केट स्थानक में भव्य प्रवेश का दृश्य अत्यन्त मनमोहक व भक्ति से आप्लावित था। हजारों की संख्या में उपस्थित भाई- बहिनों द्वारा श्रद्धाभक्ति से विभोर होकर समवेत स्वर में उच्चरित शासनेश महावीर की जय, जैन धर्म की जय, पूज्य आचार्य हस्ती की जय, निम्रन्थ मुनि भगवन्तों की जय के जय-निनादों से गगन मंडल गुंजित हो रहा था। पालीवासियों के हर्ष का पारावार नहीं था। पाली का बच्चा-बच्चा पूज्यपाद के पावन पदार्पण व अपने सौभाग्य से प्रफुल्लित व उत्साहित था। सरलहृदया पूज्या महासती सायरकंवरजी म.सा. व शासन प्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरीजी म.सा. आदि ठाणा १२ के चातुर्मास से पालीवासियों का उत्साह द्विगुणित था।
पूज्य आचार्य देव के चातुर्मासार्थ मंगल-प्रवेश के साथ ही ज्ञानाराधन व तपाराधन का क्रम प्रारम्भ हो गया। प्रतिदिन प्रार्थना, प्रवचन, प्रश्नोत्तर एवं प्रतिक्रमण में आबाल वृद्ध तरुण सभी भाई-बहिनों का उत्साह सराहनीय था। प्रवचनों में विशाल उपस्थिति व उसमें भी अधिकांश भाई-बहिनों की सामायिक साधना, पालीवासियों की वीतरागवाणी के प्रति श्रद्धा व पूज्य आचार्य भगवन्त प्रभृति संत-सतियों के प्रति सहज स्वाभाविक अनुराग की परिचायक थी।
बड़े बुजुर्गों में ही नहीं तरुणों व छोटे-छोटे बालक-बालिकाओं में भी तपाराधन के प्रति अपूर्व उत्साह अन्य क्षेत्रों के लिये भी अनुकरणीय था। चातुर्मास काल में ग्यारह मासक्षपण , तीन सौ अठाई तप व इससे भी अधिक अनेक तपस्याओं ने नया कीर्तिमान स्थापित किया। ५ अगस्त को बड़ी तपस्या करने वाले भाई बहिनों के अभिनन्दन के दिन पालीवासियों ने माल्यार्पण या वाचिक स्वागत कर ही संतोष नहीं किया, वरन् उस दिन एक हजार से अधिक उपवास कर तपस्वी भाई-बहिनों का सच्चा बहुमान किया। निरन्तर दया, संवर-साधना तथा पर्व-दिनों व अवकाश के दिनों में सामूहिक दयावताराधन ने धर्म-साधना का अपूर्व दृश्य उपस्थित कर धर्ममय वातावरण की संरचना की। सात दम्पतियों ने सजोड़े आजीवन शीलवत अंगीकार कर अपने जीवन को शील सौरभ से सुरभित किया।
प्रात:काल श्री गौतम मुनि जी म.सा. द्वारा सुमधुर स्वर में प्रार्थना, महान् अध्यवसायी श्री महेन्द्र मुनि जी म.सा. पं. रत्न श्री मानमुनि जी म.सा, पं. रत्न श्री हीरामुनि जी म.सा, व परमविदुषी महासती श्री मैना सुन्दरी जी म.सा. प्रभृति साध्वी-मंडल द्वारा प्रवचन सरिता का प्रवाह, मध्याह्न में महासती श्री मैनासुन्दरीजी म.सा. द्वारा मदन श्रेष्ठी की चौपाई, पं. रत्न श्री हीरामुनि जी म.सा. द्वारा जीवाभिगम सूत्र व पं. रत्न श्री मानमुनि जी म. सा द्वारा दशवैकालिक सूत्र की वाचना का नियमित क्रम श्रद्धालु श्रोताओं की ज्ञान-पिपासा को परितृप्त करता रहा। सायंकाल प्रतिक्रमणोपरान्त ज्ञानवृद्धि हेतु प्रश्नोत्तर चर्चा से युवक-युवतियों , आबाल-वृद्ध सभी में धार्मिक प्रेरणा, रुचि एवं जिज्ञासा की