Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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कर गुरु हस्ती के स्वाध्याय संदेश को देश के कोने-कोने में प्रसारित करने का संकल्प लिया । यहाँ आयोजित धार्मिक शिक्षण शिविर में १५८ शिविरार्थियों ने ज्ञानार्जन का लाभ लिया। फिर पूज्यप्रवर ने बिलोता, गाडोली एवं खातोली में १० व्यक्तियों को शीलवती बनाया तथा धर्म के संस्कारों को आगे बढ़ाने हेतु प्रेरणा की । समिधि, बालापुरा एवं जरखोदा में भी जैन- अजैन भाइयों को शीलवती बनाने का प्रभावी क्रम चला। अग्रवाल, धाकड़, मीणा आदि भी शीलवती बने । क्रमशः विहार करते हुए आप २९ दिसम्बर को देई गाँव में पधारे जहाँ नवयुवकों ने विवाह में नृत्य नहीं करने, सप्त कुव्यसन को छोड़ने और दहेज की मांग नहीं करने के नियम स्वीकार किये। श्री निहालचन्दजी, श्री राजमलजी अग्रवाल एवं श्रीनाथजी पण्डित ने जीवनभर के लिए शीलव्रत - पालन का नियम अंगीकार किया। देई के अग्रवाल जैन समाज में श्रद्धा-भक्ति एवं धर्माराधन की निराली छटा है ।
देई से भजनेरी, बांसी, सांवतगढ, राणीपुरा, दबलाना, अलोद, धनावा होकर बूँदी पधारे। बूँदी में मात्र दो दिन विराजकर देवपुरा, तालेड़ा, बावड़ी, बडगांव होते हुए आप सन्तमंडली सहित मकर संक्रान्ति १४ जनवरी १९८९ को औद्योगिक नगरी कोटा पधारे। आचार्यप्रवर एवं सन्तमण्डल के स्वागत में ५० युवकों ने सामायिक की वेशभूषा में | नयापुरा से रामपुरा स्थानक तक साथ विहार सेवा का लाभ लेते हुए अपने उत्साह व गुरु-भक्ति का परिचय दिया। कोटा में जयन्ती का अद्भुत रूप
आपके ७९ वें जन्म-दिवस के अभिनंदन के प्रतीक रूप में २० जनवरी १९८९ को कोटा में २० युवा दम्पतियों ने ७९ दिन तक ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का संकल्प किया। आचार्य श्री की प्रेरणा से अनेक युगलों ने अपने जीवन में पति-पत्नी के सम्बन्ध को त्यागकर भावी जीवन को भाई-बहन के समान चलाने का चिन्तन कर ब्रह्मचर्य पालन का संकल्प किया। इन सबका अपराह्न में सम्मान किया गया । यहाँ पर ५१ स्वाध्यायी नवयुवक तैयार करने के संकल्प के साथ श्री जैन शिक्षण संघ की स्थापना हुई। आचार्यप्रवर ने फरमाया- “ उपदेश देने वाले तो बहुत मिलेंगे, किन्तु उसे जीवन में उतारने से ही सच्चे अर्थों में जीवन निर्माण हो सकेगा। इसके लिए स्वाध्याय परमावश्यक है।” समारोह के अध्यक्ष श्री सुमेरसिंहजी बोथरा (जयपुर) एवं विशेष अतिथि श्री शान्तिलाल जी धारीवाल (कोटा) ने भी अपने विचार प्रकट करते हुए आचार्य श्री की दूरदृष्टि एवं वात्सल्य भाव की प्रशंसा की । . पौषध आदि हुए। आचार्य श्री की प्रेरणा से निर्व्यसनता के भी संकल्प हुए। हजारों की संख्या में सामायिक, उपवास,
आचार्य श्री का सत्संस्कारों पर सदैव बल रहा है। यहाँ पर आपने उपस्थित बहिनों से प्रश्न किया - " ऐसी कितनी बहिनें हैं, जो बच्चों को अच्छे संस्कार देती हैं? माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बालकों में शुरू से ही अच्छे संस्कार भरें, जिससे आगे चलकर उनके बच्चे सदाचरण सम्पन्न बन सकें।” यहाँ श्री नेमीचन्दजी सुनारी वाले, श्री रामप्रसादजी उखलाना वाले, श्री लड्डूलालजी बिशनपुरा वाले, श्री महेन्द्रकुमारजी वेद, श्री पूरणजी धूपिया, श्री लक्ष्मीचन्दजी पोरवाल, श्री सूरजमलजी धूपिया, अमरचन्दजी कोठारी कुलिश जयपुर आदि ने सदार आजीवन शीलव्रत - पालन का नियम लिया। आचार्य श्री ने महावीर नगर, तलवण्डी आदि उपनगरों को भी पावन किया ।
८ फरवरी को आचार्य श्री का दीक्षा-दिवस तप-त्याग पूर्वक मनाया गया। प्रमुख शिष्य पं. रत्न श्री हीरामुनि जी म.सा. ने आचार्यप्रवर के साधनाशील जीवन की त्याग एवं वैराग्यमय झलकियाँ प्रस्तुत करते हुए उनसे शिक्षा ग्रहण कर जीवन निर्माण की प्रेरणा की। श्री पारसजी धारीवाल एवं श्री राजमलजी पोरवाल ने शीलव्रत स्वीकार किया।