Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २७४ शासनेश महावीर की जयन्ती के प्रेरक प्रसंग पर युगप्रभावक आचार्य भगवन्त ने उपस्थित श्रोता समुदाय को श्रमण भगवान महावीर के उपदेशों को जीवन में उतारने की प्रेरणा की। श्री उमरावमल जी चोरड़िया ने ५ वर्ष का शीलव्रत अंगीकार कर अपने जीवन को संयमित करने की ओर कदम बढाये। २१ अप्रेल को आप श्री संग्रामसिंहजी कोठारी के आवास पर विराजे । श्री कोठारीजी ने सजोड़े आजीवन शीलवत अंगीकार कर परमाराध्य गुरुदेव की महनीय कृपा पर सच्ची प्रसन्नता व क्रियात्मक उल्लास व्यक्त किया। यहाँ से आप परमभक्त एवं विश्रुत विद्वान् प्रो. कल्याणमलजी लोढा के बंगले पर विराजे, जहाँ करुणाशील भक्त श्री देवेन्द्रराजजी मेहता व श्री महावीरचन्द जी भण्डारी ने अहिंसा के क्रियात्मक स्वरूप के बारे में आपका मार्गदर्शन प्राप्त किया। श्री उमरावमलजी चोरडिया व श्री प्रकाश जी कोठारी के फार्म हाउस होकर पूज्यप्रवर बगरू, गाड़ोता, गीदाणी, दूदू पड़ासोली, वानरसिदड़ी, फरसते हुए ३ मई को किशनगढ पधारे। मार्गस्थ जिन-जिन गांवों को भी आपश्री के विराजने का लाभ मिला, आपकी जीवन-निर्माणकारी प्रेरणा से अनेक ग्रामीणजनों ने धूम्रपान-त्याग, व्यसन-त्याग आदि विविध त्याग प्रत्याख्यान स्वीकार किये। • मदनगंज में अक्षय तृतीया एवं भागवती दीक्षा
वैशाख शुक्ला तृतीया ८ मई १९८९ को अक्षयतृतीया एवं भगवान आदिनाथ पारणक दिवस पर मदनगंज में १५ तपस्वी भाई बहिनों के पारणक हुए। परमाराध्य कृपानिधान गुरुदेव के आचार्यपद आरोहण के इस पावन दिवस पर श्री सुमेरनाथ जी मोदी जोधपुर, श्री विमलचन्द जी जैन डेहराग्राम एवं श्री धोकलचन्दजी चोरडिया ने सजोड़े आजीवन शीलव्रत अंगीकार किया।
११ मई १९८९ को बाल ब्रह्मचारिणी बहिन विमलेश जैन (सुपुत्री श्री मदनमोहन जी जैन एवं श्रीमती शकुन्तला जैन, महुआ रोड़) ने पूज्यपाद के मुखारविन्द से स्थानीय व आगन्तुक हजारों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में भागवती श्रमणी दीक्षा अंगीकार कर संयमपथ अपनाकर मोक्षमार्ग में अपने चरण बढाये । १७ मई को बड़ी दीक्षोपरान्त नवदीक्षिता महासतीजी का नाम महासती श्री विमलेशप्रभाजी रखा गया। इस अवसर पर शाकाहार एवं सेवा-भावना हेतु संघ की ओर से डा. फैयाज अली का सम्मान किया गया।
शुद्ध संयम एवं साध्वाचार की मर्यादाओं के पालक आचार्य भगवन्त ने कभी भी आचार से अधिक प्रचार को महत्ता नहीं दी। संघशास्ता पूज्यप्रवर ने संघ में सदा श्रद्धा, समर्पण व अनुशासन को प्रधानता दी। आपश्री स्वयं को भी संघ सेवक ही समझते, साथ ही दृढता से संयम व अनुशासन का पालन करवाते थे। मर्यादाओं के पालन में कभी भी व्यक्ति, परिवार, क्षेत्र या संख्या कभी भी आपकी शासन व्यवस्था में आड़े न आई । संयम धन अमूल्य है। अनन्त-अनन्त जन्मों की पुण्यवानी से ही मोक्षमार्ग मे गतिशील होने का अवसर मिलता है। करुणार्द्र गुरुदेव ने संघविरोधी गतिविधियों के लिये श्री शीतल मुनि जी को पृथक् करने का निर्णय सुरक्षित रखते हुए भी उन्हें संघमर्यादा में स्थिर होने का अवसर प्रदान किया तथा एक वर्ष के साधना वर्ष (परीक्षा वर्ष) की व्यवस्था दी। उनके साथ श्री धन्ना मुनि जी का चातुर्मास बून्दी में होना तय हुआ।
२७ मई को मदनगंज से विहार कर पूज्य चरितनायक गगवाना, घूघरा, अजमेर, पुष्कर, मेड़ता सिटी, सातलास आदि मार्गस्थ ग्राम-नगरों में धर्म प्रभावना करते हुए इन्दावड़ पधारे। प्रभावक प्रवचन में रात्रि भोजन त्याग की महती प्रेरणा से २०-२५ व्यक्तियों ने रात्रि-भोजन त्याग का संकल्प किया।