Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२७३ बच्छराजजी दुग्गड ने आजीवन शीलवत अंगीकार कर गुरुचरणों में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति की। यहाँ से ऐतिहासिक ! स्थल तलाब गांव, सतूर फरस कर पूज्यप्रवर बडा नयागाँव पधारे। यहाँ बघेरवालों के १४ घर हैं। यहां पर प्रवचन । दिन में गुरुद्वारा में हुआ। गांववालों की श्रद्धा-भक्ति व उत्साह सराहनीय रहा। यहाँ कोटा, बून्दी व देवली के श्रावक ! दर्शनार्थ उपस्थित हुए। जोधपुर एवं जयपुर के श्रावकों ने उपस्थित होकर श्री चरणों में अपनी विनति प्रस्तुत की।
___बड़ा नयागांव से विहार कर पूज्यपाद चतरगंज होते हुए हिण्डोली पधारे। हिण्डोली से भीमगंज तक जैन ! | शिक्षण संघ, जयपुर के युवा सदस्यों ने सामायिक वेश में विहार-सेवा का लाभ लिया। यहां से पूज्यपाद पेच की बावड़ी, इटून्दा होते हुए टीकड़ गांव पधारे। यहाँ जयपुर श्री संघ के शिष्ट मंडल ने उपस्थित होकर चातुर्मासार्थ भावभीनी विनति प्रस्तुत की। मार्गस्थ क्षेत्रों को अपने पाद विहार से पावन करते हुए करुणाकर गुरुदेव देवली
पधारे। यहाँ जयपुर जोधपुर, अजमेर, किशनगढ, ब्यावर, केकडी, देई, सवाई माधोपुर आदि क्षेत्रों के प्रतिनिधिगण । पूज्यप्रवर के चातुर्मास व क्षेत्र-स्पर्शन की विनति लेकर श्री चरणों में उपस्थित हुए।
देवली में धर्मप्रभावना कर परमपूज्य चरितनायक बिसलपुर, पनवाड़, सिरोही, बनथली फरसते हुए दूनी पधारे।। 'यहाँ स्थानकवासी समाज के १९ घर हैं, एवं उनमें धर्म के प्रति रुचि सराहनीय है।
यहां से छानगांव, मेन्दवास, बाडा आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए पूज्य चरितनायक टोंक पधारे । यहाँ जैन जैनेतर सभी ने पूज्यपाद आचार्यदेव के पावन दर्शन व सान्निध्य का लाभ लिया। अरबी भाषा शोध संस्थान के निदेशक श्री शौकत अली ने आपके दर्शन व प्रवचन-श्रवण का लाभ लेकर कर अपने आपको कृतकृत्य समझा। जलगांव से दर्शनार्थ उपस्थित अनन्य भक्त अग्रगण्य समाजसेवी एवं उदीयमान राजनेता श्री सुरेश दादा जैन को मार्गदर्शन देते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया - “राजस्थान की भांति महाराष्ट्र में भी अहिंसा का प्रचार-प्रसार होना
चाहिये।” श्रद्धालु भक्त ने श्रद्धावनत होते हुए निवेदन किया –“भगवन् प्रयास जारी है। पूर्व में सरकार की ओर से । विद्यार्थियों को मांसाहार, अण्डे आदि दिये जाते थे, आपकी कृपा से वे बन्द हो गये हैं।"
टोंक में तीन दिन तक धर्मोद्योत कर आपश्री मेवग्राम, मोटूका, पहाड़ी फरसते हुए निवाई पधारे। यहाँ भी विभिन्न क्षेत्रों के श्रद्धालुभक्तों का आराध्य गुरुदेव के पावन-दर्शन, मंगलमय-प्रेरणा व धर्माराधन हेतु आवागमन बना रहा। रामनवमी के दिन करुणाकर ने मूण्डिया ग्राम में भैंसे की बलि बन्द करने की प्रेरणा की, जिसका सकारात्मक प्रभाव हुआ। यहाँ पुजारी को देवी द्वारा प्रेरणा की जाती थी, किन्तु उस दिन देवी नहीं आई। अहिंसा, संयम व तप के धनी मोक्षमार्ग आराधक षट्काय-प्रतिपालक जन्मना अखंड ब्रह्मचर्य तेज से दीप्त महापुरुषों के पावन चरण सरोजों में देव-देवी क्या देवेन्द्र भी झुकते रहे हैं। श्रमण भगवान महावीर ने अपनी पावन देशना में फरमाया भी है
दव दाणव गंधळ्या, जक्ख-रक्खस्स-किन्नरा।
बंभयारिं नमसंनि, दुक्करं जे करेंति ते ।। करुणानाथ की पावन प्रेरणा से यहां बलिप्रथा सदा-सदा के लिये बन्द हो गई, बाद में सरकार द्वारा भी | पशुबलि पर रोक लगा कर इसे वैधानिक तौर पर बन्द कर दिया गया। ___कौथून, जयसिंहपुरा चाकसू , यारलीपुरा, भंडारी केबल्स, शिवदासपुरा फरसते हुए सुखपुरिया गांव पधारे। यहां जयपुर से बड़ी संख्या में श्रावक श्राविका आपके दर्शनार्थ उपस्थित हुए। महावीर जयन्ती लाल भवन जयपुर में करने की पूज्यपाद की स्वीकृति मिलने पर जयपुरवासियों के उल्लास का पारावर नहीं था। महावीरनगर होते हुए १७ || अप्रेल चैत्र शुक्ला १२ को शिष्य मंडली सहित पूज्य आचार्य भगवन्तका जयपुर के लाल भवन में पदार्पण हुआ।
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