Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
२३८
आचार्य पदारोहण के इस दिवस पर श्री बजरंगलाल जी सवाईमाधोपुर, श्री रूपचन्दजी बणज्यारी, श्री मांगीलालजी सुराणा नागौर, श्री हरिवल्लभ जी सूरवाल तथा श्री सोहन लालजी मूथा, पाली ने आजीवन शीलव्रत ग्रहण कर श्रद्धाभिव्यक्ति की । भगवन्त की प्रभावी प्रेरणा से अनेकों व्यक्तियों ने तपस्या के अवसर पर लेन-देन व आडम्बर का त्याग कर अन्यों के लिये प्रेरणा का कार्य किया। आपने संघ में समन्वय व एकता की प्रेरणा की। पूज्यप्रवर के | आलनपुर पधारने पर संघ के सभी सदस्यों ने धर्मध्यान का अच्छा लाभ लिया ।
आलनपुर से विहार कर आचार्य श्री बजरिया, आदर्श नगर होते हुए गम्भीरा पधारे। इस छोटे से ग्राम में सामूहिक रूप से सप्त कुव्यसनों का त्याग कराया। यहां बाबूलालजी उज्ज्वल के पिताजी ने सदार आजीवन | शीलव्रत स्वीकार किया। यहाँ से वैशाख पूर्णिमा को कुस्तला पधारने पर आपने अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि वैशाखी पूनम के चाँद की तरह आत्मा को भी पूर्णत: द्युतिमान करने में ही सत्संग और उपदेश- श्रवण की सार्थकता है। यहाँ से पचाला चोरू होते हुए आप चौथ का बरवाड़ा पधारे, जहाँ रत्नवंश के मूलपुरुष पूज्य श्री कुशलचन्द जी | म.सा. की पुण्यतिथि का द्वि शताब्दी समारोह तप-त्याग और सामायिक - स्वाध्याय की साधना के साथ मनाया गया। | उसके अनन्तर ३ जून को आपश्री पुनः चोरू होते हुए जैनपुरी पधारे, जहाँ मीणा जाति के अनेक जैन भाइयों ने धूम्रपान का त्याग किया तथा नियमित सामायिक का नियम लिया । यहाँ से उखलाना पधारने पर वहाँ भी | सामायिक, आयम्बिल, एकाशन आदि के व्रत दिलाने के साथ धूम्रपान का त्याग कराया गया ।
टोंक, निवाई होकर जयपुर
६ जून ८३ को सायं ६ बजे दशमी की मौन -साधना में विहार कर आचार्य श्री अलीगढ़- रामपुरा पधारे, जहाँ | बीस से अधिक युवकों ने उस वर्ष पर्युषण में बाहर जाकर स्वाध्यायी सेवा देने की प्रतिज्ञा की, कइयों ने सामायिक व्रत के नियम लिए । श्री गजानन्दजी उखलाना एवं श्री श्रीनारायणजी गाडोली ने शीलव्रत के नियम लिए । ज्ञानसूर्य आचार्य हस्ती ने प्रवचन में ज्ञानवर्धन की प्रेरणा करते हुए फरमाया – “सूर्य का प्रकाश होने पर जिस प्रकार पक्षी चहचहाते हैं, उसी प्रकार आप भी ज्ञान प्रकाश में गतिशील बनिये ।” यहाँ चार दिनों तक पातक प्रक्षालिनी वाणी | का प्रभाव अंकित कर आप उनियारा पधारे, जहाँ आपके पावन सान्निध्य एवं पं. रत्न श्री हीरामुनि जी म.सा. की प्रेरणा | से यहाँ का वर्षों पुराना वैमनस्य समाप्त हो गया तथा संघ में एकता की लहर व्याप्त हो गई। फिर आप ढिकोलिया, | ककोड़, घास, चंदलाई होते हुए टोंक पधारे। धर्म जागरणा के साथ आप सोयला, पहाड़ी होते निवाई पधारे, जहाँ २३ जून को जलधारा कण्डक्टर्स प्रा. लि. के प्रांगण में पचासों श्रमिकों आपकी ओजस्वी वाणी का रसास्वादन कर | धूम्रपान का त्याग किया । २४ जून को दिगम्बर जैन नसियां मन्दिर में क्रियोद्धारक महापुरुष आचार्य श्री रत्नचन्द्रजी | म.सा. का १३८ वाँ स्मृति दिवस तप-त्याग के साथ मनाया गया। डॉ. नरेन्द्र भानावत ने आचार्य श्री रत्नचन्द्रजी म.सा. की काव्य -साधना पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर - जोधपुर, जयपुर, अलीगढ (टोंक), चौथ का बरवाड़ा, सवाईमाधोपुर, टोंक, उखलाना आदि के भक्तों की अच्छी उपस्थिति थी । भँवरसिंह जी मीणा उखलाना ने आजीवन शीलव्रत का नियम लिया ।
निवाई में 'जैन धर्म की प्रासंगिकता' विषय पर विचार गोष्ठी में डा. लक्ष्मीलाल ओड, प्रिन्सिपल वनस्थली विद्यापीठ आदि शिक्षाविदों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। आचार्यप्रवर ने इस अवसर पर फरमाया - " भगवान महावीर ने साधारण आदमी को उपदेश देते हुए फरमाया कि यदि व्रत ग्रहण नहीं कर सकते हो तो कम से कम 'स्वीकार करो। जो मनोबल वाला है, व्रत की भावना रखता है उससे कहा कि देखो, सबसे उत्तम तो यह
सम्यक्त्व