Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं हितैषी श्रावक संघ, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, महावीर जैन श्राविका संघ, जयपुर श्रावक संघ आदि अनेक संस्थाओं की ओर से भावभीना अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर लम्बे समय से प्रतीक्षित 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग-३' की प्रति डॉ. डी. एस. कोठारी को ससम्मान प्रदान कर विमोचित की गई। परमपूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में २२ दिसम्बर को नवदीक्षित श्री प्रमोदमुनिजी म.सा. की बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई और उन्होंने सामायिक चारित्र से छेदोपस्थापनीय चारित्र में आरोहण किया। चारित्र आरोहण के इस अवसर पर डिस्ट्रिक्ट जज श्री गणेशचन्द जी सक्सेना ने आजीवन मद्यपान का त्याग किया तथा श्री जौहरीलाल जी पटवा, श्री दलपतराज जी सिंघवी जयपुर, श्री अमरचन्दजी लोढा, श्री मनमोहनचन्द जी लोढा नागौर, श्री महताब जी नवलखा, कमलजी मेहता, | जयपुर एवं श्री हरिप्रसादजी जैन महुआ ने आजीवन शीलवत अंगीकार किया। • अजमेर की ओर
३१ दिसम्बर को १३ कि.मी. का लम्बा विहार कर आचार्य श्री बगरू होते हुए महलां, गाड़ोता, पालू, गिधाणी, | दूदू, पड़ासोली, दांतड़ी, डीडवाना, किशनगढ़ आदि में धर्मोद्योत करते हुए मदनगंज पधारे। यहाँ श्रमणसंघ के उपाध्याय श्री पुष्करमुनि म.सा. एवं पं. रत्न श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री (पश्चात् आचार्य श्रमण संघ) अपने मुनि मंडल सहित आचार्य श्री की अगवानी में सामने उपस्थित हुए। यह संगम चतुर्विध संघ के लिए प्रमोदकारी था। दोनों महापुरुषों ने चरितनायक आचार्यप्रवर का गुणानुवाद करते हुए जीवन के विभिन्न स्नेहिल प्रसंगों का उल्लेख किया। यहाँ से कालूसिंह जी बाफना की डाइंग फैक्ट्री पधारने पर बाफनाजी ने सजोड़े आजीवन शीलवत पालन का नियम लेकर श्री चरणों में अपनी आदर्श श्रद्धा अर्पित की। फिर यहाँ से आचार्य श्री १४ जनवरी मकर संक्रान्ति को १४ कि.मी का विहार कर गगवाना, घूघरा होते हुए अजमेर पधारे, जहाँ सन्त-सती मंडल द्वारा आचार्यश्री का अपूर्व स्वागत किया गया। यहाँ शास्त्रीनगर में आप मूलराज जी चौधरी के बंगले विराजे।
आचार्य श्री की ७४ वीं जन्म-जयन्ती पर ५७ सन्त-सतियों (प्रवर्तक पं. रत्न श्री कुन्दनमलजी म.सा, पं. रत्न श्री सोहनलालजी म.सा. आदि ठाणा ५, मेवाड़सिंहनी महासती श्री जशकंवरजी म.सा. आदि ठाणा, महासती श्री कुसुमवतीजी म.सा. आदि ठाणा) एवं हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावकों ने १७ जनवरी को अजमेर की महावीर कॉलोनी में उसी बरगद के पेड़ के समीप एकत्रित हो आपके साधनामय जीवन का गुणगान किया, जहाँ लगभग ६४ वर्ष पूर्व आचार्यप्रवर की चारित्र साधना 'दीक्षा' का श्री गणेश हुआ था। इस अवसर पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक प्रान्तों के करीब ४० क्षेत्रों के लगभग ४००० श्रद्धालु श्रावक-श्राविका उपस्थित थे। मेवाड़सिंहनी महासती श्री जसकंवर जी म.सा. ने आचार्य श्री को जिनशासन का तीर्थराज बताते हुए फरमाया कि समाज की महान् हस्ती ने संस्कृति-रक्षण और मर्यादा-पालन में बहुत बड़ा योगदान दिया है। ऐसे गुरुराज की मेरी एक जुबां क्या महिमा कर सकती है। पं. रत्न श्री मानमुनि जी म.सा. (वर्तमान उपाध्यायप्रवर) ने आचार्य देव को मिश्री की डली की उपमा से उपमित किया और कहा कि आपके जीवन की हर क्रिया एवं अप्रमत्त भाव मिश्री की भांति मधुर हैं। वे कथनीय के साथ अनुकरणीय भी हैं।
चतुर्विध संघ ने आचार्यप्रवर को नाना उपमाओं से मण्डित किया। महासती श्री दिव्यप्रभा जी म.सा. ने जीव से शिव, नर से नारायण और आत्मा से परमात्मा को जोड़ने वाले गुरु की उपमा दी। पण्डित रत्न श्री सोहनलाल जी म.सा. (पश्चात् आचार्य) ने सामायिक और स्वाध्याय को घर-घर फैलाकर ज्ञान-क्रिया की ज्योति का शुभ सन्देश देने वाले चरितनायक आचार्यश्री की दीर्घायु की प्रार्थना की। महासती श्री कमला जी म.सा, श्री वल्लभ मुनि जी, श्री |