Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २६२ व शीलमर्यादा पालन का संकल्प कर करुणानाथ के प्रति सच्ची श्रद्धाभक्ति समर्पित की। श्री जम्बूविजय जी म.सा. से पंचसूत्रक एवं योगशास्त्र तृतीय भाग ये दो सूत्र प्राप्त हुए।
यहाँ जलगाँव निवासी श्री नथमल जी लूंकड़ से प्राप्त विचारात्मक लेख 'श्रमण संघ का भविष्य' के उत्तर में आपने लिखवाया-"जैन श्रमण सदा से आचारप्रधान दृष्टि वाला रहा है। सम्प्रदाय के आदिकाल में श्रमण आचारभेद से अलग रहकर भी निन्दा विकथा से बचे रहते थे, सम्प्रदाय के पीछे वाद नहीं था। पूज्य श्री जीवराज जी म., पूज्य लवजी ऋषि जी म., पूज्य धर्मदासजी म. आदि क्रियोद्धारक महापुरुष अलग रहकर भी परस्पर प्रेमपूर्वक धर्मप्रचार करते रहे। कुछ मान्यताओं के भेद हुए तो उन्होंने उनका समाधान कर प्रेम सम्बन्ध को दृढ़ किया। उदाहरण के रूप में संवत् १८११ में पूज्य श्री भूधर जी म, पूज्य अमरसिंहजी म, पूज्य ताराचन्द जी म. आदि प्रमुख सम्प्रदायों का संगठन उज्ज्वल अतीत की स्मृति दिला रहा है। श्रमणों में अपनी स्वीकृत समाचारी का स्वेच्छा से पालन करने की तत्परता होनी चाहिए। वर्तमान की सम्प्रदायों में एक-दूसरे से अपने को अच्छा बताने की प्रवृत्ति ने स्थान पा लिया, 'अपना सो सच्चा' इस वृत्ति के कारण संघ वाले सम्प्रदायों को, और सम्प्रदाय वाले संघ को दोषी कहने लगे। आवश्यकता है आत्म-निरीक्षण की। सादड़ी और भीनासर सम्मेलन में अनुभवी मुनियों ने बड़ी चर्चा और शास्त्रीय ऊहापोह के साथ प्रायः एक राय से समाचारी निर्मित की है। संघ के समस्त साधु-साध्वी वर्ग उसका निष्ठापूर्वक पालन करें।” • दो दीक्षाएँ
यहाँ ८ फरवरी को रेनबो हाउस के प्रांगण में श्री रामजीलाल जी 'त्यागी' (खोह-अलवर) एवं श्री कैलाश जी सिंघवी सुपुत्र श्री शुभलालजी एवं श्रीमती उच्छबकँवरजी (जोधपुर) ने पूज्यप्रवर के मुखारविन्द से भागवती श्रमण दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा महोत्सव पर १७ सन्तों एवं २५ महासतियों का सान्निध्य प्राप्त था। संघ द्वारा मुमुक्षु साधकों के जीवन पर्यन्त छहकाय जीवों को अभयदान देने के इस प्रसंग पर प्रशासन ने जोधपुर में कत्लखाने बन्द करने का आदेश प्रसारित कर अभयदान व दयाधर्म का अनुमोदन किया। श्री चन्दजी सुराणा 'सरस' से स्वाध्याय शिक्षा की रूपरेखा के सम्बन्ध में चर्चा के अनन्तर सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल से “स्वाध्याय-शिक्षा' पत्रिका का शुभारम्भ हुआ। यह पत्रिका प्राकृत, संस्कृत एवं आगम-अध्ययन को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से प्रारम्भ हुई, जो अभी डॉ. धर्मचन्द जैन के सम्पादन में प्रकाशित हो रही है। महामन्दिर में श्री सम्पतराजजी लोढा एवं श्री चैनरूपचन्दजी भण्डारी जलगांव वालों ने आजीवन शीलवत अंगीकार किया। यहाँ जज श्री ज्ञानचन्दजी सिंघवी एवं जिलाधीश नागौर श्री ललितजी कोठारी ने आपके दर्शन सान्निध्य का लाभ लेकर अपने जीवन को संकल्प सम्पन्न किया। सात दिनों बाद १५ फरवरी को निमाज की हवेली में बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई। बड़ी दीक्षा के अवसर पर श्री मोहनजी मेहता एवं श्री माणकजी संचेती ने एक वर्ष तक कुशील सेवन का त्याग कर अपने जीवन को मर्यादा में आबद्ध किया।
१७ फरवरी १९८७ को प्रात: ७६ वर्ष की आयु में जयमल संघ के आचार्य श्री जीतमल जी म.सा. का | जोधपुर में ही समाधिपूर्वक स्वर्गवास होने के समाचार मिले। व्याख्यान स्थगित रखकर दिवंगत आत्मा को चार लोगस्स से श्रद्धांजलि दी गई।
__ पूज्यपाद गुरुदेव के जोधपुर प्रवास में अपराह्न शास्त्रवाचन चर्चा व ज्ञानाराधन का क्रम बराबर चलता रहा। यहां आप द्वारा पच्चीस बोलों का नवीन चिन्तनपूर्वक विवेचन लिखवाया गया। आपकी पातकप्रक्षालिनी वाणी-सुधा