Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२४७
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कर श्रद्धाभिभूत हो उठी। अखिल भारतीय श्री जैनरत्न हितैषी श्रावक संघ के कार्याध्यक्ष डा. सम्पतसिंह जी भाण्डावत तथा चातुर्मास समिति के संयोजक श्री गणपतराज जी अब्बाणी ने अपार जनमेदिनी के साथ आचार्य श्री
का भावभीने शब्दों से स्वागत किया। - आचार्यप्रवर ने प्रेरक उद्बोधन में फरमाया -“आप सभी के हृदय में भक्ति-भावना है। आपने मानसिक, वाचिक एवं कायिक स्वागत तो किया ही, पर इसके आगे भी भक्ति है। मुनि-मण्डल के पदार्पण एवं विराजने से
आप अपने जीवन को ऊँचा उठाएँ। अपने आपको व्रत-ग्रहण, त्याग-प्रत्याख्यान एवं सामायिक-स्वाध्याय के प्रचार । में आगे बढायें, तभी मुनिमण्डल का सच्चा स्वागत होगा।” श्री पुखराज जी गिड़िया ने एक वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर त्याग-प्रत्याख्यान का शुभारम्भ किया।
तदनन्तर पूज्य श्री सरदारपुरा एवं घोड़ों का चौक पधारे। सरदारपुरा में पारख भवन विराजने पर श्री छोटमलजी पारख ने एक वर्ष तक ब्रह्मचर्य-पालन का नियम लिया। व्याख्यान ओसवाल जैन छात्रावास में हुआ। घोड़ों के चौक विराजते समय आचार्य श्री रायपुर हवेली में विराजित ज्ञानगच्छीय वृद्ध सन्त श्री सोभागमलजी म.सा. आदि मुनिमण्डल को दर्शन देने पधारे। दूसरे दिन पं. रत्न श्री घेवरचन्दजी म. आदि सन्तवृन्द घोड़ों के चौक में आचार्य श्री के दर्शनार्थ पधारे। • जोधपुर चातुर्मास (संवत् २०४१)
पूज्यपाद ७ वर्ष की दीर्घ अवधि के अनन्तर जोधपुर पधारे थे। १३ वर्ष के अन्तराल के बाद आपके चातुर्मास का लाभ रत्नवंश के पट्टनगर जोधपुर को प्राप्त हुआ था। जोधपुर के जैन-जैनेतर भक्त पूज्यपाद के चातुर्मासिक सान्निध्य से अपने जीवन-निर्माण व धर्म-प्रभावना की अनेक कल्पनाएँ मन में संजोये तीव्र उत्सुकता से || चातुर्मास प्रारम्भ की प्रतीक्षा कर रहे थे।
शुभ घड़ी आई। ६ जुलाई १९८४ को पूज्यप्रवर ने अपने चातुर्मास स्थल पावटा स्थित रेनबो हाउस के लिये घोड़ों का चौक से शिष्य-समुदाय के साथ विहार किया तो विहार के पूर्व ही सैकड़ों नर-नारी आराध्य गुरुदेव के विहार में सम्मिलित होने हेतु उपस्थित थे। जयनाद के घोष जोधपुर के कोने-कोने में पूज्यप्रवर के चातुर्मास की घोषणा कर रहे थे, नगर के कोने-कोने से श्रद्धालु भक्तों का हुजुम उमड़ पड़ा, रेनबो हाउस पहुँचते-पहुँचते विशाल जनमेदिनी उपस्थित थी। वृद्ध प्रौढ और युवक ही नहीं जोधपुर के बच्चे-बच्चे में अपने आराध्य गुरुदेव के प्रति अनन्त आस्था है। जोधपुर की बहिनों में पूज्यपाद हस्ती के प्रति आस्था का कैसा सैलाब था, इसे प्रत्यक्षदर्शी ही अनुभव कर सकते हैं। आस्था के सैलाब से युक्त पूज्यपाद का यह चातुर्मासार्थ प्रवेश अनुपम था। मंगल-प्रवेश के इस भव्य प्रसंग पर आपने अपने आशीर्वचन में फरमाया –“आप लोग जागे हुए तो हैं, मैं आपको चलाने आया हूँ, मंजिल तो चलने पर ही तय होती है।” समाज-ऐक्य व संगठन का सन्देश देते हुए आपने फरमाया - ‘पाँचों अंगुलियों का उपयोग सहयोग पर निर्भर है। प्रत्येक अंगुली का अलग-अलग कार्य है, वे परस्पर हस्तक्षेप नहीं करतीं, फिर भी इनमें परस्पर सहयोग व समन्वय समझने योग्य है। इसी प्रकार समाज के छोटे-बड़े, पढे-लिखे, अनपढ अनुभवी, समर्थ-असमर्थ, संकोची-मुखर सभी सदस्य परस्पर सहयोग कर कार्य करें, इसी में संघ, समाज व कार्य की
शोभा है।'
१२ जुलाई को चातुर्मासिक चतुर्दशी के दिन परमपूज्य आचार्य श्री हस्ती ने अपनी पातकप्रक्षालिनी प्रवचन