Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२४९ मंगल आशीर्वाद हेतु उपस्थित हुए। पूज्यपाद ने उन्हें अहिंसा का सन्देश देते हुए फरमाया-"राजस्थान जीव-दया | उपासक सात्त्विक प्रान्त रहा है। यहाँ हिंसा का प्रसार न हो, परस्पर सद् भाव कायम रहे, इस ओर शासकों को सजग रहना है।” ३० अक्टूबर १९८४ को भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या से समूचे राष्ट्र के अन्य हिस्सों की भांति इस नगर में भी वातावरण शोकमग्न था। दया, अनुकम्पा, सौहार्द व करुणा के संदेशवाहक पूज्य हस्ती ने जैन समाज के माध्यम से राष्ट्र को सन्देश दिया कि हिंसा व प्रतिहिंसा से हिंसा ही बढती है। अहिंसा से ही राष्ट्र में शान्ति सम्भव है। कोई भी मत, पंथ या शास्त्र हिंसा का पाठ नहीं पढाता।
ज्ञानसूर्य पूज्य हस्ती के इस चातुर्मास में ज्ञानाराधना के महनीय प्रयास हुए। १२ से १४ अक्टूबर तक 'श्रावकधर्म एवं वर्तमान सामाजिक स्थिति' विषय पर त्रिदिवसीय विद्वद् गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें ५० शोध पत्र पढे गये। सेवामन्दिर रावटी के संचालक, क्रियानिष्ठ विद्वान् एवं पूज्यप्रवर के प्रति अनन्य श्रद्धानिष्ठ समाज सेवी श्री जौहरीमल जी पारख ने संगोष्ठी का उद्घाटन किया। संगोष्ठी के समापन पर ज्ञान-क्रिया-संगम आचार्य भगवन्त ने विद्वानों को नियमित स्वाध्याय, मौन व सामूहिक रात्रि-भोजन निषेध के नियम करा कर उन्हें क्रियानिष्ठ जीवन जीने का जीवन सूत्र दिया।
आचार्य श्री रत्नचन्द्र स्मृति व्याख्यान माला में डॉ. इन्दरराज वैद का 'आदर्श जीवन के सूत्रकार सन्त तिरूवल्लुवर' विषयक व्याख्यान महत्त्वपूर्ण रहा। इसकी अध्यक्षता जोधपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. एस.एन.मेहरोत्रा ने की। कुलपति डॉ. मेहरोत्रा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में विद्वत् परिषद् की जैन-विद्या प्रोत्साहन छात्रवृत्ति एवं ज्ञान प्रसार पुस्तकमाला योजना को उपयोगी बताया। डॉ. मेहरोत्रा ने जोधपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत एवं दर्शनशास्त्र विषयों में एम.ए. स्तर पर जैन धर्म-दर्शन विषयक वैकल्पिक प्रश्न पत्र रखने की घोषणा की।
१४ अक्टूबर से एक सप्ताह का स्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर एवं १९ से २१ अक्टूबर तक तीन दिनों का | स्वाध्यायी सम्मेलन आयोजित हुआ। शिविर एवं सम्मेलन का उद्घाटन क्रमश: श्री रणतजीत सिंह जी कूमट (आई. ए| एस.) एवं डॉ. सम्पतसिंह जी भाण्डावत ने किया। शिविर में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान के ५८ स्वाध्यायियों ने भाग लिया। समापन के अवसर पर आचार्य श्री ने स्वाध्यायियों को अग्राङ्कित नियम कराये-१. सभी प्रकार के व्यसनों का त्याग, २. दहेज ठहराव नहीं करना ३. बारातों में नाच नहीं करना तथा नाच होने वाली बारात में शामिल नहीं होना ४. मृत्य भोज नहीं करना तथा उसमें नहीं जाना। ५. होली पर रंग एवं दीपावली पर पटाखे नहीं चलाना। स्वाध्यायियों ने नियमित सामायिक-स्वाध्याय के भी नियम लिए। शिविर के समापन की अध्यक्षता एडवोकेट हुकमीचन्दजी मेहता ने की। स्वाध्याय संघ के संयोजक श्री सम्पतराजजी डोसी सहित अनेक वरिष्ठ स्वाध्यायियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया। तरुण जैन के सम्पादक श्री फतहसिंह जी जैन को भी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए प्रशस्तिपत्र प्रदान किया गया। डॉ. सम्पतसिंह जी भाण्डावत अ.भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के नये अध्यक्ष मनोनीत हुए । निवर्तमान अध्यक्ष प्रबुद्ध चिन्तक श्री नथमलजी हीरावत एवं उनके सहयोगियों द्वारा की गई संघ-सेवा के उल्लेख के साथ संघ का अधिवेशन सम्पन्न हुआ। ___ चातुर्मास में दया, संवर व तपाराधन के उल्लेखनीय कीर्तिमान बने। स्वाध्यायी सुश्रावक श्री सम्पतराज जी बाफना ने चातुर्मास के प्रारम्भ से ही पूर्ण मौन के साथ संवर की आराधना से अपने जीवन को भावित किया, कर्मठ सेवाभावी सुश्रावक श्री कुन्दनमलजी भंसाली ने मौन सहित तप व संवर-साधना का आदर्श प्रस्तुत किया। इस चातुर्मास काल में कुल २७ मासक्षपण तप सम्पन्न हुए। ३५ वर्षीय युवारत्न श्री मूलचन्द जी बाफना ने मासक्षपण कर