Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं आवश्यकता है। 'दया माता' की शीतल छांव में ही यह आत्मा पाप कालिमा व भव-भ्रमण से सुरक्षित रह सकती है। यहाँ ज्ञातासूत्र का वाचन हुआ। सायंकाल विहार कर आप ग्राम की धर्मशाला में विराजे । संधारा में धर्मोद्योत कर पूज्यप्रवर रामगंजमंडी पधारे। यहाँ कोटा, मोडक, चेचट आदि क्षेत्रों के दर्शनार्थियों ने अपने-अपने क्षेत्र की विनतियाँ प्रस्तुत की। पूज्यप्रवर ने यहां श्री हरबंसलालजी, कोटा को परिग्रह मर्यादा हेतु प्रेरणा की। ज्ञानाराधना की प्रेरणा देते हुए करुणाकर गुरुदेव ने अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया कि सद्ज्ञान ही शुभ संस्कारों को फैलाने व बढ़ाने का कारण है। अपराह्न में प्रश्नोत्तर के माध्यम से आपने बहिनों को तत्त्वज्ञान सीखने की प्रेरणा की। आपकी महनीय प्रेरणा से यहां २१ व्यक्तियों ने नित्य सामायिक स्वाध्याय व २६ व्यक्तियों ने साप्ताहिक स्वाध्याय के नियम लिए। इस विहारकाल में परमगुरुभक्त श्री बिशनचन्दजी मुथा, हैदराबाद ने एक मास तक आराध्य गुरुदेव की सेवा का अनुपम लाभ लिया।
रामगंजमंडी से विहार कर पूज्यपाद ११ अप्रेल को आदित्यनगर मोडक स्टेशन पधारे। यहाँ पर अपने प्रभावी प्रवचनामृत के माध्यम से आपने फरमाया-“अर्थ-लाभ के साथ धर्म-लाभ का भी लक्ष्य रखें, धर्मलाभ को गौण न समझें। आत्मा के लिए तो धर्मलाभ अर्थलाभ से भी बढ़कर है।” विहारक्रम में आपने दरागांव में गूजर परिवार के लोगों को अनछना पानी काम में न लेने एवं जीव हिंसा न करने का उपदेश दिया। घाटी पार कर दरा स्टेशन होते हुए संवत् २०४० के प्रथम दिन चैत्रशुक्ला प्रतिपदा को मंडाणा पधारे। बदलते मौसम एवं असमय बून्हें गिरती देखकर आचार्य भगवन्त का चिन्तन चला “परिवर्तनशील काल को जान कर उससे लाभ उठाने वाला ही सुज्ञ है।" केवलनगर फैक्ट्री होते हुए पूज्यपाद १६ अप्रेल को अनन्तपुरा पधारे।
यहाँ कच्चे मकानों वाले अजैन घरों की बस्ती थी। आचार्यप्रवर सरपंच के मकान में विराजमान थे, जिसके पास देवी का चबूतरा था। यहाँ एक हरिजन परिवार देवी को बकरे की बलि चढाने वाला था। इस परिवार को बलि न चढ़ाने हेतु प्रेरित किया गया। उसे देवी के रूठने की आशंका थी, अत: समझाने पर भी नहीं माना। अन्त में जिसे देवी आती थी, वह पुजारी आया। सन्त एवं श्रावक सायंकालीन प्रतिक्रमण कर रहे थे। पुजारी को जैसे ही | देवी आयी, वह बोला – “अरे दुष्टों ! मेरा नाम बदनाम करते हो। जो महापुरुष यहाँ बैठा हुआ है, देवताओं का | राजा इन्द्र भी जिसकी वाणी को नहीं ठुकराता है, उसके सामने तुमने मुझे बदनाम किया है कि देवी बलिदान मांगती है। मैंने कब बकरे मांगे हैं ? तुम तुम्हारे खाने के लिए बकरे मेरे नाम पर बलि करते हो । तुम्हारे कार्य का फल तुम भोगोगे।” इतना कहकर देवी शरीर से निकल गई। गाँव वाले करुणावतार की महत्ता से चकित रह गए और वहाँ सदैव के लिए बकरे की बलि देना बन्द हो गया। बलिबंद में सरपंच देवीदयाल जी का प्रयास सराहनीय रहा।
अनन्तपुरा से ५ कि.मी. का विहार कर रविवार १७ अप्रैल ८३ को कोटा के उपनगर तलवण्डी में धर्मध्वजा फहराते हुए चरितनायक ने कोटा के दादाबाड़ी, छावनी आदि उपनगरों को पावन किया तथा रामनवमी के पावन प्रसंग पर रामपुरा बाजार के बूंदी चौक में व्याख्यान सभा को सम्बोधित किया। आपने राम के आदर्श चरित्र को अपनाने की प्रेरणा करते हुए संस्कार निर्माण में चार कारणों को समझने एवं सुधारने पर बल दिया – (१) घर का वातावरण (२) शिक्षा (३) संगति और (४) भाषा। जोधपुर, जयपुर, सवाई माधोपुर , भोपालगढ, कोटा आदि विभिन्न संघों की विनति के अनन्तर जयपुर संघ को चातुर्मास हेतु एवं सवाईमाधोपुर संघ को अक्षयतृतीया हेतु स्वीकृति प्रदान की। इसी दिन सत्र न्यायाधीश श्री जसराजजी चौपड़ा के निवेदन पर अपराह्न में कोटा सेन्ट्रल जेल में आपका प्रभावी प्रवचन हुआ। सिविल लाइन्स में करुणानाथ के प्रभावक प्रवचन से प्रेरित हो तत्कालीन जिलाधीश श्री (परमेशचन्द्र जी ने मांस-भक्षण त्याग का नियम लिया तथा भारतीय प्रशासनिक अधिकारी श्री इन्द्रसिंह जी कावडिया)