Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २३४ के प्रेरक सन्त-सती मंडली को देख चकित होना स्वाभाविक था। ऐसी पावनमूर्ति आचार्य श्री की ७३वीं जन्म तिथि पर २८ जनवरी ८३ को आचार्य श्री के जीवन पर चतुर्विध संघ द्वारा प्रकाश डाला गया। गुणानुवाद की स्वरलहरियाँ सभी के हृत् तंत्रों को झंकृत करने लगी। आचार्य श्री के अभिनन्दन स्वरूप श्रावक-श्राविकाओं ने तप, त्याग और नियम की भेंट अर्पित की। मध्यप्रदेश स्वाध्याय संघ ने स्वाध्याय के पर्याय आचार्य हस्ती के ७३ वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में आगामी वर्ष में ७३ स्वाध्यायी पर्युषण पर्वाराधन हेतु भेजने का संकल्प किया। समाजसेवा के रूप में भूख-प्यास और गरीबी मिटाने के कई उपक्रम इस अवसर पर हुए। चरितनायक ने महावीर नगर कॉलोनी, परदेशीपुरा कॉलोनी, पद्मावती पोरवाल भवन, जंगमपुरा आदि स्थानों को भी प्रवचनामृतों से पावन किया। १५ फरवरी को आपकी ६३ वीं दीक्षा जयन्ती जानकीनगर में सामूहिक दयाव्रत एवं सामायिक स्वाध्याय के प्रेरणाप्रद वातावरण में मनायी गयी। इस अवसर पर जयपुर का पचास सदस्यीय शिष्टमण्डल चातुर्मास की विनति लेकर उपस्थित हुआ। १७ फरवरी ८३ को खरतरगच्छ संघ की प्रभावक आर्या श्री विचक्षण श्री जी म.सा. की शिष्या श्री मणिप्रभा श्री जी म.सा. आचार्यप्रवर के दर्शनार्थ पधारी । श्रमणोचित कुशलक्षेम के पश्चात् आचार्य श्री ने साध्वी जी को विचक्षण श्री जी के समान जिनशासन को देदीप्यमान करने की प्रेरणा एवं मंगलपाठ दिया। • उज्जैन होकर राजस्थान की ओर
विहार क्रम से उज्जैन पधारने पर बालोतरा की ९ विरक्ता बहनों ने आचार्य श्री के दर्शन एवं प्रवचन का लाभ लिया। विहार मार्ग में अनेकानेक साधु-साध्वी आचार्य श्री के दर्शन एवं प्रवचन लाभार्थ पधारते ही रहते थे। उज्जैन में तपस्वी श्री लालचन्दजी म.सा. ठाणा ३, महासती श्री कौशल्याजी एवं महासती श्री मैनाजी आदि ठाणा १० ने दर्शन-लाभ लिया। महासती श्री विचक्षण श्री जी की शिष्या श्री वर्धमान श्री जी ने ठाणा ४ से दर्शन किए।
यहाँ से चरितनायक नजरपुर, घोंसला होते हुए महिदपुर पधारे, जहाँ आपकी पावन प्रेरणा से धार्मिक पाठशाला प्रारम्भ हुई एवं नवयुवकों ने १५ मिनट स्वाध्याय करने का संकल्प लिया। यहाँ से झारेड़ा पधारने पर मूर्तिपूजक समाज की महासती श्री अमितगुणाजी की दो शिष्याएँ आपके दर्शनार्थ पधारी । यहाँ से इन्दोख होते हुए आप बड़ोद पधारे। लगभग १०० जैन घरों के इस नगर में आचार्य प्रवर के प्रवचनों से प्रभावित होकर कई युवकों ने प्रतिदिन/ सप्ताह में १५ मिनट स्वाध्याय करने का संकल्प लिया।