Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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ग्रहण के पचास वर्ष पूर्ण होने वाले थे। संघ के कार्यकर्ताओं ने साधना- कार्यक्रम के लक्ष्य के साथ पूज्य चरितनायक | की दीक्षा अर्द्धशताब्दी मनाने का निर्णय किया । ज्ञान - दर्शन - चारित्र की अभिवृद्धि एवं सामाजिक कुरीतियों के निकन्दन के लक्ष्य से पन्द्रह सूत्री कार्यक्रम हाथ में लिया गया यथा - मांसभक्षण त्याग, मद्यपान त्याग, धूम्रपान त्याग, | एक वर्ष तक रात्रि - भोजन त्याग, नित्यप्रति १५ मिनट स्वाध्याय, सप्ताह में कम से कम एक सामायिक, प्रतिदिन कोई एक प्रत्याख्यान अवश्य करना, एक वर्ष शीलव्रत का पालन, आजीवन रात्रि भोजन त्याग, आजीवन चौविहार त्याग, आजीवन ब्रह्मचर्य पालन, श्रावक के १२ व्रत अंगीकार करना, नित्यप्रति सामायिक, सक्रिय स्वाध्यायी बनकर पर्युषण पर्वाराधन हेतु प्रवास करना, दहेज में लेन-देन व ठहराव और प्रदर्शन का त्याग, जीवों को अभयदान का | संकल्प, जीवन व्यवहार में हिंसक वस्तुओं का त्याग, जरूरतमंद भाई-बहिनों को शैक्षणिक व आर्थिक सहयोग प्रदान | करना आदि। इन नियमों में प्रत्येक के लिये पचास-पचास व्रतियों का लक्ष्य रखा गया। यह भी तय किया गया कि स्थानीय समारोह अपने-अपने क्षेत्रों में आयोजित किये जायें। बैंगलोर श्री संघ ने भावभीनी विनति प्रस्तुत करते हुए | पूज्यपाद से इस अवसर पर बैंगलोर विराजने की प्रार्थना की। त्रिदिवसीय समारोह के अन्तर्गत सामूहिक नियम तय कर सभी श्रद्धालुजनों को इनके पालन की प्रेरणा की गई - (१) सभी व्यक्ति तीन दिनों में कम से कम तीन घण्टे स्वाध्याय करें (२) तीन दिनों में कम से कम तीन सामायिक करें (३) तीन दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें (४) तीन दिन का समय प्रमाद में व्यतीत न करें (५) तीन दिनों तक कोई रात्रि भोजन नहीं करें। (६) प्रत्येक घर में कम से कम एक उपवास, एकाशन या आयम्बिल अवश्य हो (७) तीन दिन कषाय शमन का प्रयास करें। शिक्षाप्रेमी शासन हितैषी श्रेष्ठिवर्य श्री छगनमलजी मुथा की आग्रहभरी विनति को लक्ष्य में रखकर पूज्यपाद चामराज पेठ, ब्लाक | पल्ली एवं शिवाजी नगर आदि उपनगरों को फरस कर शूले बाजार स्थित हिन्दी विद्यालय पधारे, जहाँ सामायिक के | गणवेश में श्रावकों ने सामायिक- स्वाध्याय पर्याय आचार्य भगवन्त की अगवानी की। यहाँ वैशाख कृष्णा चतुर्दशी व | अमावस्या को सामूहिक दयाव्रत का आयोजन हुआ। सामूहिक व्रताराधन का यह अपूर्व नजारा देखकर ऐसा प्रतीत | हुआ कि मानो पूज्यपाद मरुधर मारवाड़ के धर्मक्षेत्र में ही विराज रहे हैं, जहाँ महापुरुषों के पधारने पर दया - संवर | आराधना का क्रम चलता ही रहता है । चरितनायक के दीक्षा अर्द्धशताब्दी पर त्रिदिवसीय साधना-समारोह विषयक सभी कार्यक्रम इसी हिन्दी विद्यालय के प्रांगण में सम्पन्न हुए ।
दिनांक १५ अप्रेल १७ अप्रेल तक आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम का प्रथम दिवस ज्ञानाराधना, द्वितीय दिवस सामायिक साधना एवं तृतीय दिवस तप- साधना हेतु समर्पित था । प्रथम दिवस में व्याख्यान के अतिरिक्त विद्वद् गोष्ठी एवं ज्ञान चर्चा आयोजित की गई, दूसरे दिन सामूहिक सामायिक में भाग लेकर गुरु हस्ती के सामायिक | संदेश को साकार किया गया, तो तीसरे दिन व्रत - प्रत्याख्यान कर इस त्रिविध साधना कार्यक्रम को सम्पूर्णता प्रदान की गई। इस अवसर पर अनेकों व्यक्तियों ने बारह व्रत एवं शीलव्रत अंगीकार कर अपने जीवन में साधना का | सूत्रपात किया । अक्षय तृतीया के इस पावन प्रसंग पर वर्षीतप के २९ पारणे हुए। संघ की ओर से समाजसेवियों व तपस्वियों का अभिनन्दन किया गया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री गणेशमलजी भंडारी, श्री सुकनराजजी भोपालचंदजी पगारिया, श्री जसराजजी गोलेछा, श्री महावीरमलजी भंडारी, श्रेष्ठिवर्य श्री छगनमलजी मुथा, श्री | मोतीलालजी सांखला श्री संपतराजजी मरलेचा, श्री अनराजजी दुधेड़िया, श्री जोधराजजी सुराणा आदि की सराहनीय सेवाएँ रहीं ।
अक्षय तृतीया के पावन पर्व के पश्चात् पूज्यवर्य अलसूर बयपनहल्ली, कृष्णराजपुरम आदि क्षेत्रों में जिनवाणी की पावन धारा प्रवाहित करते हुए होसकोटे पधारे । यहाँ वैशाख शुक्ला दशमी को चरम तीर्थकर शासनपति श्रमण