Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
૨૨૮
• हैदराबाद की ओर
रायचूर का सफल चातुर्मास सम्पन्न कर पूज्य चरितनायक का विहार हैदराबाद की ओर हुआ। राजेन्द्र गंज, कल्याण मंडप, शक्तिनगर, मेहबूबनगर आदि क्षेत्रों में ज्ञान सूर्य आचार्य हस्ती के पदार्पण व प्रवचनामृत का जनमानस पर प्रेरणादायी प्रभाव रहा। मेहबूब नगर के जिलाधीश श्री मुरलीधर जी ने पूज्यपाद के साधना सम्पूरित व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मद्यपान का त्याग कर अपने जीवन को व्यसन मुक्त बनाया। उदारमना श्री भीमराजजी ने जैनभवन की ऊपरी मंजिल सदा के लिये धर्माराधन हेतु उपलब्ध कराने की घोषणा की, जो संघ में स्थान की उपलब्धता से सामूहिक सामायिक साधना व स्वाध्याय करने वाले भाई बहिनों की संख्या में अभिवृद्धि एवं संघ के उत्साह अभिवर्धन का कारण रहा। स्थानीय संघाध्यक्ष श्री लक्ष्मीचन्दजी कोठारी, श्री मिलापचन्दजी कोठारी व श्री जीवराजजी ने सजोड़े आजीवन शीलव्रत, अंगीकार कर अपने जीवन को यशस्वी बनाया। इस विहारकाल में पं. रत्न | श्री हीराचन्दजी म.सा. (वर्तमान आचार्य श्री) के हृदयग्राही ओजस्वी प्रवचनों का श्रोताओं के मानस पर व्यापक प्रभाव पड़ा। सुश्रावक श्री अनराजजी विमलचन्दजी अलीजार की भक्ति सराहनीय रही। ___आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद, इसके सहनगर सिकन्दराबाद, बोलाराम, शमशीरगंज, डबीरपुरा, लालबाजार, काचीगुडा आदि प्रमुख उपनगरों में पूज्य आचार्य श्री हस्ती के सामायिक स्वाध्याय के आह्वान से यहाँ के धर्म स्थानकों में धर्मसाधना का क्रम प्रारम्भ हुआ एवं इनके कपाट नियमित रूप से खुलने लगे। आप श्री की प्रेरणा से धर्मस्थानकों में आकर सामायिक स्वाध्याय करने वाले भाई-बहिनों की संख्या निरन्तर बढ़ती गई।
८ जनवरी १९८२ पौष शुक्ला चतुर्दशी को पूज्य आचार्य हस्ती की जन्म जयन्ती गुजराती भवन में सामायिक संकल्प, श्रावक व्रत-ग्रहण, दहेज-त्याग व शीलव्रत ग्रहण के साथ मनाई गई। श्री किशनलालजी बोहरा झूठा, श्री माणकचन्दजी डोशी पाली एवं श्री पन्नालालजी मुणोत ने आजीवन शीलवत अंगीकार कर श्रद्धाभिव्यक्ति की।।
९ जनवरी १९८२ को रात्रि में बीजापुर में वयोवृद्ध स्थविर पं. रत्न श्री छोटे लक्ष्मीचन्दजी म.सा. का अकस्मात् हृदयाघात होने से स्वर्गवास हो गया। पं. रत्न श्री छोटे लक्ष्मीचन्दजी म.सा. आचार्य भगवन्त के ज्येष्ठ व श्रेष्ठ शिष्य थे। आप वैय्यावृत्त्य, साधुचर्या, विनय एवं उत्कट गुरुभक्ति के पर्याय थे। आप गोचरी के विशेषज्ञ संत व संतों के लिये 'धाय मां' के तुल्य थे। पं. रत्न श्री छोटे लक्ष्मीचन्दजी म.सा. स्वयं थोकड़ों के विशेषज्ञ थे व आपकी आगन्तुक भक्तों को थोकड़ों का ज्ञान कराने की विशेष अभिरुचि थी। संकेत तो दूर की बात, आप शारीरिक चेष्टामात्र से ही समझ लेते कि गुरुदेव को क्या अभीष्ट है, ऐसे गुरु आज्ञा में सदा तत्पर, शासनसेवी इन संतरत्न के देवलोक गमन से | इस यशस्वी श्रमण परम्परा में अपूरणीय क्षति हुई। परम पूज्य आचार्य भगवन्त ने अपने सुशिष्य श्री लक्ष्मीचन्दजी | म.सा. के आदर्श सन्त-जीवन एवं निरतिचार संयम-साधना का स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि व्यक्त की।
सिकन्दराबाद से विहार कर आचार्य श्री ठाणा ६ से मनोहराबाद, तूपरान, चेगुण्टा, बिकनूर, कामारेडी होते हुए निजामाबाद पधारे, जहाँ से पं. रत्न श्री शुभेन्द्र मुनि जी एवं श्री गौतम मुनि जी ने जालना होते हुए राजस्थान की ओर विहार किया। कामारेडी में श्री पन्नालालजी बोहरा ने आजीवन शीलव्रत स्वीकार किया तथा कई धर्म प्रेमियों ने प्रतिदिन सामायिक करने का संकल्प ग्रहण किया। • आन्ध्र से महाराष्ट्र की सीमा में ___ आचार्यप्रवर ठाणा ४ से निजामाबाद से २६ जनवरी ८२ को विहार कर मामीडीपल्ली, आरमूर, किसाननगर,