Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं 'जिन-शासन' शब्द पर चर्चा चलने पर आचार्य प्रवर ने फरमाया-“जीवन में हिताहित की शिक्षा देने वाले वचन संग्रह को शासन कहते हैं। सत् शिक्षा से जीवन में सुमार्गस्थ रहने वाले आचार्य शास्ता और उनके द्वारा सारणा, वारणा, धारणा 'शासन' कहलाता है।"
फिर आप चापरड़ा होते हुए यवतमाल पधारे, जहाँ भगवान महावीर का जन्म-कल्याणक महोत्सव उत्साहपूर्वक मनाया गया। १०० भाई-बहनों ने सामायिक एवं नित्य स्वाध्याय की प्रतिज्ञाएँ ग्रहण की। ९ अप्रैल ८२ को उत्तरवाढोणा में शीलव्रत के नियम कराकर आप नेर, परसोयत, बडफली, नांदगाँव, बड़नेरा होते हुए अमरावती पधारे। ३५० जैन घरों की बस्ती वाले इस प्रसिद्ध नगर में अच्छा धार्मिक उत्साह देखा गया, स्वाध्याय संघ की भी स्थापना हुई। अक्षय तृतीया पर ३५ नगरों के श्रावक -श्राविकाओं ने उपस्थित होकर तपोधनी आचार्य भगवन्त के दर्शन-वन्दन व प्रवचनामृत का लाभ लिया। सामायिक स्वाध्याय का शंखनाद करने वाले आचार्य देव के आचार्य पद - ग्रहण - दिवस के इस अवसर पर विदर्भ में स्वाध्याय के रथ को गतिशील करने का संकल्प लिया गया। श्री जवाहरलाल जी मुणोत आदि ने आजीवन शीलवत अंगीकार किया। तपस्या करने वालों का अभिनंदन किया गया। वैशाख शुक्ला तृतीया २६ अप्रेल १९८२ को ही आचार्यप्रवर की आज्ञा से जोधपुर में २० वर्ष की वय में महासती शान्तिकंवरजी म.सा. की शिष्या के रूप में बालब्रह्मचारिणी मुमुक्षु बहिन सुश्री इन्दुबाला सुराना (सुपुत्री श्री मांगीलाल जी एवं श्रीमती ज्ञानबाई जी सुराना नागौर) की भागवती दीक्षा उत्साह एवं उल्लास के साथ सम्पन्न हुई।
पूज्यपाद के आगामी चातुर्मास हेतु नागपुर, अमरावती, जलगांव, भोपाल आदि क्षेत्रों की भाव भीनी विनतियां हुई। अपने-अपने क्षेत्र के लाभ हेतु श्रावकवृन्द प्रयत्न शील थे, किन्तु आपका लक्ष्य राजस्थान की ओर बढने का होने से तथा संघहित व धर्मप्रभावना के स्थायी कार्य को दृष्टिगत रखकर पूज्यपाद ने जलगांव संघ को चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान की।
अमरावती से विहार कर आचार्य श्री भगवान महावीर के केवलज्ञान-कल्याणक पर बड़नेरा में विराजते हुए कुरूम पधारे, जहाँ गोंडल सम्प्रदाय की महासती श्री मुक्ताप्रभाजी ठाणा ८ ने चरितनायक के दर्शन किए एवं अपनी अनेक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कर प्रमुदित हुई। फिर यहाँ से आकोला, बालापुर, खामगाँव, नादूरा होते हुए मलकापुर पधारे। खामगाँव में श्री माणकचन्दजी लुणावत ने आजीवन शीलवत स्वीकार किया। मलकापुर में श्रुतरसिक भीकमचन्द जी संचेती के सत्प्रयल से बुलढाणा भंडार में पुरातत्त्व प्रेमी इतिहास मार्तण्ड आचार्यप्रवर ने प्राचीन हस्तलिखित पन्नों का अवलोकन किया। यहाँ से देवढाबा, चिंचखेड़ा, सिरसाले होते हुए कच्चे मार्ग से आचार्य श्री बोदवड़ को फरसकर जामठी, सेलवड़, राजनी क्षेत्रों में धर्म-प्रभावना कर फतेहपुर पधारे जहाँ बाबू रतनलालजी फूलफगर की बीमार माँ श्रीमती मदन कंवरजी ने भेदविज्ञान ज्ञाता आचार्य हस्ती से संथारा स्वीकार कर अपना जन्म सफल किया। श्राविकाजी का यह संथारा २३ घण्टे चला। इस उपलक्ष्य में श्री भंवरलालजी देढिया एवं बंशीलालजी ओस्तवाल ने सपत्नीक आजीवन शीलवत अंगीकार किया। पूज्यप्रवर की प्रेरणा से यहाँ धार्मिक पाठशाला प्रारंभ हुई। कई व्यक्तियों ने नियमित प्रार्थना एवं सामायिक के नियम लिए। फिर आपने वाकंडी शाहपुर होते हुए जामनेर में प्रवेश किया जहाँ महासती श्री सायरकंवर जी म.सा. आदि ठाणा तथा भुसावल चातुर्मासार्थ जाते महासती श्री कमलावती जी म.सा. ठाणा ११ दर्शनार्थ पधारी। जामनेर से विहार कर आप शंकरलाल जी ललवाणी के बंगले पर रुककर आषाढ़ शुक्ला ११ को शंकरलाल जी चोरड़िया के बंगले पधारे, जहाँ मंदिरमार्गी श्री चन्द्रकीर्ति जी म.सा. दर्शनार्थ पधारे। श्री नेमीचन्दजी मुणोत ने जीवन भर के लिए शीलव्रत लिया।