Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं अंगीकार किया। पूज्यपाद ने यहां सुखी जीवन के लिए भोगोपभोग परिमाण व्रत की प्रेरणा की।
विहारक्रम में पूज्यप्रवर जिन्दल फैक्ट्री विराजे। फैक्ट्री की अनूठी विशेषता थी कि यहां के सभी कर्मचारी निर्व्यसनी व संस्कारशील थे, कोई भी मद्य-मांस सेवन व धूम्रपान नहीं करता था। फैक्ट्री परिसर में ही व्यवस्थापकों ने कर्मचारियों के धर्माराधन का सेवन व उपासना हेतु समुचित प्रावधान कर रखा था। संस्कार, सदाचार, सात्त्विकता व निर्व्यसनता की इस भ ___ यहां से विहार कर नलमंगला, टी वेगुर, दासवपेठ हीरहेल्ली, टुमकुर, कोराग्राम, नलिहाण्ड कल्लमबेला, सीराग्राम, मानंगी, जवानगोदन हल्ली, आदिवाड़शाला आदि मार्गवर्ती क्षेत्रों को पद रज से पावन करते हुए चरितनायक हिरियूर पधारे। यहां से पुन: संतों का अलग-अलग संघाटकों में विहार हुआ। आचार्य भगवन्त होतीकोटा, सणिकेरा, वल्लकेरा (चर्णिगेरा) को पावन करते हुए तलक पधारे। यहां उर्दू भाषा के अध्यापक श्री सैयद जिज्ञासा भाव से आपकी सेवा में उपस्थित हुए। वे आपसे जैन साधु-चर्या का परिचय पाकर अत्यन्त आश्चर्याभिभूत व प्रमुदित हुए। अहिंसा धर्म से प्रभावित हुए श्री सैयद ने करुणानाथ के श्री चरणों में निवेदन किया कि हमें पहले खबर की जाती तो दो चार सौ लोग आपका उपदेश सुनने को उपस्थित हो जाते, और वे भी अहिंसा धर्म के सिद्धान्तों से परिचित हो जाते । अहिंसा धर्म श्रेष्ठ है, पर जैन लोग आप जैसे गुरुओं की सेवा का लाभ खुद ही लेते हैं, इससे हमको क्या फायदा ? जैसे क्रिश्चियन लोग बाइबिल के उपदेश को साधारण लोगों में वितरण करते हैं, वैसे ही महावीर के उपदेश को छोटी छोटी बुक (पुस्तक) के रूप में अवाम को दें तो उसका उन्हें लाभ मिल सकता है। हम ऐसी पुस्तकें यहां लाइब्रेरी में भी रख सकते हैं। उर्दू-अध्यापक द्वारा व्यक्त विचारों पर जैन समाज विचार कर इसे कार्यरूप में परिणत करे तो जैन-धर्म जन-जन तक पहुँच सकता है व लाखों लोगों को अहिंसा का पावन सन्देश देकर हिंसा की प्रवृति के प्रसार को रोकने में सफलता प्राप्त कर सकता है। उर्दू अध्यापक ने मुसलमानों में मांस के प्रचलन पर कहा-"मुसलमानों में गोश्त का प्रचार कैसे हुआ? लड़ाई के समय एक बार अरब में मांस खाने की बात कही गई, क्योंकि वहाँ पर दूसरी व्यवस्था नहीं थी, परन्तु वह रिवाज अब तक चल रहा है।” इससे ज्ञात होता है कि मांस का सेवन मुसलमानों में भी एक रूढि ही है, धर्म नहीं।
तलक से जगतवत्सल आचार्य भगवन्त हिरेहल्ली, विजीकेरा आदि क्षेत्रों को फरसते हुए पहाड़ी मार्ग से प्रकृति की विस्मयकारी रचना से गुजरते हुए रायपुरा पधारे। अमकुण्डी में बल्लारी निवासी ड्राइवर श्री रसूल शेख ने पूज्यपाद से मांस-मदिरा व धूम्रपान का त्याग कर अपने जीवन को पापों से विरत करने के साथ ही कइयों के लिये अनुकरणीय आदर्श उपस्थित किया।
आन्ध्र की सीमा में प्रवेश कर पुनः कर्नाटक की धरा पर ___अब आचार्य भगवन्त का कर्नाटक प्रदेश से पुन: आंध्र सीमा में प्रवेश हुआ। ओवलपुर ग्राम, रायल सीमा को पार कर चरितनायक बल्लारी पधारे। यहां पूर्व विराजित श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आचार्य श्री पद्मसागर जी म.सा. आपके दर्शनार्थ पधारे। यहां आचार्यप्रवर के तमिलभाषी आत्मार्थी शिष्य श्री श्रीचन्दजी म.सा. आदि ठाणा भी तमिलनाडु कर्नाटक व आंध्र के विभिन्न क्षेत्रों को फरसते हुए पधारे। फाल्गुनी चौमासी के अवसर पर पूज्यपाद ने अपने प्रवचन पीयूष में कषाय भाव को जला कर आत्मा को तपस्या के रंग में रंग कर कर्म-निर्जरा करने की प्रेरणा दी तथा द्रव्य होली की बुराइयों से ऊपर उठने का आह्वान किया - दूसरे लोग द्रव्य कचरा जला कर, धूल मिट्टी उछाल कर, गालियाँ आदि बोल कर कर्मबन्ध का कार्य करते हैं, जबकि सच्चे जिनधर्मानुयायी इस दिन तपाग्नि द्वारा