Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं (१८६
गुरु से पाथेय पाकर शिष्य आत्म-विकास की ओर सतत गतिमान था। विभिन्न ग्राम नगरों से दर्शनार्थी उपस्थित हो रहे थे। यही नहीं विभिन्न धर्मावलम्बी भी जीवित समाधि का यह साक्षात् स्वरूप देखकर आश्चर्याभिभूत थे। मरणविजेता महासाधक से साता पूछने पर एक ही प्रत्युत्तर था-आनन्द है।
३५वें दिन फाल्गुन शुक्ला अष्टमी को प्रशान्तात्मा श्री माणकमुनि जी म.सा. का यह मनोरथ सीझा और उनकी आत्मा इस नश्वर मानव देह का त्याग कर देवलोक गमन कर गई। दूसरे दिन उनके पार्थिव देह की अंतिम यात्रा में जोधपुर व अन्य ग्राम-नगरों के हजारों लोग उपस्थित थे। अंतिम यात्रा के मार्ग में दोनों ओर हजारों लोग पंक्तिबद्ध श्रद्धांजलि समर्पित करने हेतु उपस्थित थे। जोधपुरवासियों की स्मृति में यह अनूठी अंतिम यात्रा थी।
ऋषभदेव जयन्ती के अवसर पर आपने शीतला माता की पूजा के बहाने ठंडे और बासी भोजन सेवन की प्रथा में निहित अज्ञान के मर्म को उजागर किया। आपने फरमाया -"प्राचीन काल में लोग फल-फूलों पर निर्भर थे। उन लोगों के गरम खाने का तो प्रश्न ही नहीं था, अतः महिलाओं को शीतला माता के प्रकोप का झूठा बहम दिल से निकाल देना चाहिए।” केन्द्रीय कारागार में एक दिन आप प्रवचन हेतु पधारे । कैदियों को देखकर आप द्रवित हो उठे। हृदय करुणा से आप्लावित हो गया। जैन दर्शन के कर्म सिद्धान्त का स्मरण हो आया। आपने प्रवचन में फरमाया “बुराइयों के फल से बचने का उपाय है – जीवन में सदाचार को अपनाना । दूसरों के साथ हम अच्छा आचरण करके अच्छे बन सकते हैं। कृतकर्मों का परिणाम सबको भोगना पड़ता है, किन्तु सहज रूप से कर्मों का परिणाम भोगने वाला व्यक्ति कर्मों के बोझ से हलका होकर भविष्य को सुधार लेता है।" • भोपालगढ में दीक्षाएँ
यहाँ से भोपालगढ़ पधार कर आपने तीन दीक्षार्थिनी बहनों की दीक्षा के अवसर पर संयम और साधना मार्ग के महत्त्व तथा साधक जीवन के कष्टों को धैर्य, साहस और समभाव से सहन करने के मर्म को उद्घाटित किया। श्रीमती सज्जनकंवर खींवसरा जोधपुर कु. सोहनकंवर कांकरिया, भोपालगढ़ तथा कु. मंजु चंगेरिया अजमेर की दीक्षाविधि चैत्र शुक्ला नवमी वि. संवत् २०३३ दिनांक ८ अप्रैल १९७६ को आचार्यप्रवर के मुखारविन्द से सोल्लास सम्पन्न हुई। इस दीक्षा में १० सन्त मुनिराज तथा साध्वीप्रमुखा सुन्दर कंवर जी आदि १२ महासतियों का सान्निध्य प्राप्त था। दीक्षा प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया -“जीवनभर के लिए संयम ग्रहण करने वाली इन | मुमुक्षुओं का अब कोई सांसारिक परिवार नहीं रहा। सारा साधु-साध्वी समाज ही अब इनका परिवार है। इन्हें |संयममार्ग में आने वाले कष्टों को धैर्य और समभाव के साथ सहन करना होगा।” दीक्षित बहनों के नाम क्रमशः सरल कंवर जी, सौभाग्यवतीजी एवं मनोहरकंवर जी रखे गए।
भोपालगढ़ से आचार्य श्री २८ अप्रेल ७६ को पीपाड़ पधारे, जहाँ मानव सेवा और स्वधर्मी वात्सल्य के लिए | पद्मश्री मोहनलाल जी चोरडिया का, धार्मिक शिक्षण एवं समाज सेवा के लिए श्रीमती सज्जनजी बाई सा. (धर्मपत्नी श्री स्व. श्री जवाहरनाथ जी मोदी) तथा श्रीमती इन्द्र कँवर जी बाई सा. (धर्मपत्नी स्व. श्री चांदमल जी मेहता) जोधपुर का अभिनंदन किया गया। अक्षय तृतीया के इस प्रसंग पर ज्ञानगच्छीय महासती श्री भीका जी, सुमति कंवर जी ठाणा ७, श्री कानकंवरजी ठाणा ३, श्री लाड़कंवरजी ठाणा ४ एवं मुनि धर्मेशजी, गौतममुनिजी आदि ठाणा भी | विराजमान थे। तदनन्तर आप रीयां, पालासणी होकर जोधपुर पधारे।
आपके जोधपुर प्रवास पर आपके सान्निध्य में २९ मई से १ जून १९७६ तक चार दिवसीय साधक शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें सर्वश्री कन्हैयालालजी लोढ़ा, केवलमलजी लोढ़ा, डा. नरेन्द्र भानावत, श्री)