Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
भावभीनी विनतियाँ प्रस्तुत की।
एलबुर्गा, कुकनूर ,भानापुर होते हुए पूज्य चरितनायक कर्नाटक के धार्मिक ऐतिहासिक क्षेत्र कोप्पल नगर | पधारे। यहां की गिरिशालाओं पर अनेकों जैन मुनियों व उपासकों के संलेखना व्रतों की प्रसिद्धि है। यहां कई जगह खुदाई में शिलालेखों में चन्द्रगुप्त, भद्रगुप्त, चामुण्डराय एवं प्राचीन जैन गौरव तथा इस क्षेत्र में जैन धर्म के व्यापक प्रभाव के उल्लेख मिलते हैं। जब पाटलिपुत्र आर्यधरा भारत की राजधानी था, तब कोप्पल नगर उपराजधानी रहा। यानी एकीकृत शासन के समय में यह नगर दक्षिण भारत का प्रमुख केन्द्र रहा। पूज्यपाद का यहां ४० वर्ष के लम्बे अन्तराल के बाद पदार्पण हुआ था। आपके सान्निध्य व प्रवचनामृत का स्थानीय संघ ने धर्माराधन व व्रत ग्रहण कर | पूरा लाभ लिया। सामायिक स्वाध्याय के आपके सन्देश से यहां धार्मिक पाठशाला प्रारम्भ हुई व २५ नवयुवकों ने सामायिक करने का नियम लिया।
कोप्पल से विहार कर आचार्य देव किडदाल, गिनगेरा, होसल्ली, मुनिराबाद (रायचूर जिले का अन्तिम ग्राम) फरसते हुए होस्पेट पधारे । होस्पेट में तुंगभद्रा नदी पर विशाल बांध बना हुआ है व इससे बिजली उत्पन्न की जाती है। आचार्य भगवन्त सांसारिक घटनाओं व स्थानों से भी अध्यात्म के सूत्रों का पोषण करने में दक्ष थे। संसारी | प्राणी जहाँ धर्माराधन के क्षेत्रों व अवसरों पर भी कर्मों से अपनी आत्मा को भारी कर लेता है, वहीं वीतराग मार्ग का || पथिक संसार के स्थानों व घटनाओं से भी शिक्षा व प्रेरणा लेकर कर्म रज को झाड़ लेता है। श्रमण भगवान महावीर | का उद्घोष रहा है -“जे आसवा ते परिसवा, जे परिसवा ते आसवा।"
सब कुछ व्यक्ति के चिन्तन मनन पर निर्भर है। भगवन्त तो निकटभवी महापुरुष थे, जिनका संसार परिमित हो जाता है, उनका चिन्तन भी उच्च शिक्षाप्रद व आत्महितकारी ही होता है । तुंगभद्रा पर बने इस विशाल बांध को देखकर आपके साधनानिष्ठ मानस में जो चिन्तन हुआ, वह उन्हीं महापुरुष की हस्तलिखित दैनन्दिनी से उद्धृत है“वैज्ञानिकों ने दिमागी चिन्तन से पानी का बहाव नियंत्रित कर लिया। भगवान महावीर ने वासना की विशाल नदी को संयम के बांध से नियन्त्रित करने की सीख देकर जनगण को विनाश से बचाया। महावीर ने स्वयं के अनुभव से | संवर के बांध से विनष्ट होती आत्मगुणों की सम्पदा बचाकर कितना अपूर्व लाभ का मार्ग प्रस्तुत किया। प्रभु की | ज्ञान गरिमा का क्या वर्णन किया जा सकता है। "
यहां से पूज्यपाद पुन: होस्पेट सदर, कारीगनूर, धर्मसागर, तोरंगल, कुरतनी आदि ग्रामों में विचरण करते हुए कोल बाजार पधारे तथा गणपति मंदिर में विराजे । मार्ग में भी आपको कहीं शालाभवन तो कहीं पंचायत भवन में विराजना पड़ा। यह विहार अति दुष्कर था, मार्ग में गोचरी की पर्याप्त उपलब्धता नहीं थी। सन्त कभी उपवास तो कभी एकाशन करते हुए दीर्घ विहार कर रहे थे। कोल बाजार से करुणाकर गुरुदेव बल्लारी पधारे , जहाँ पूज्य श्री कान्ति ऋषिजी आदि ठाणा ४ आपकी अगवानी हेतु सामने पधारे । बल्लारी में पूज्यपाद का विराजना धर्म प्रभावना का निमित्त बना। यहाँ के संघ ने सामायिक और स्वाध्याय प्रवृत्ति को प्रारम्भ कर पूज्य हस्ती के संदेश को साकार रूप प्रदान किया। १६ भाइयों ने दयावत एवं २५ व्यक्तियों ने प्रतिदिन सामायिक स्वाध्याय का संकल्प स्वीकार किया। आपकी महती प्रेरणा से यहां धार्मिक शिक्षण की व्यवस्था प्रारम्भ हुई व अनेकों युवकों ने व्यसन-त्याग का संकल्प लिया। भण्डारी, बालड, भोजाणी, नाहर आदि कई भाइयों ने सपत्नीक शीलव्रत अंगीकार कर गुरुदेव के चरणों में सच्ची श्रद्धाभिव्यक्ति की।
आचार्य प्रवर के इस दक्षिण प्रवास में अनेक कठिनाइयां एवं परीषह उपस्थित हुए किन्तु आचारनिष्ठ साधना