Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
कर्नाटक में प्रवेश
महाराष्ट्र के विभिन्न अंचलों में जिनवाणी की पावन सरिता प्रवाहित कर अपूर्व धर्मोद्योत व जिन शासन का जय-जय नाद दिग्-दिगन्त में गुंजायमान करने के पश्चात् युगप्रभावक आचार्य पूज्य हस्ती के चरणारविन्द कर्नाटक | की ओर अग्रसर थे। आपने बडकवाल, टाकली होते हुए कर्नाटक प्रान्त की सीमा में प्रवेश किया तो समूचे कर्नाटक में हर्ष की लहर दौड़ना स्वाभाविक था। पीढ़ियो व बरसों से यहां बसे प्रवासी राजस्थानी भाइयों के हर्ष का पारावार न था। उन्हें तो यह लगा कि शास्त्र मर्यादा के सजग प्रहरी, आगमों के तलस्पर्शी ज्ञाता एवं जिनशासन के कुशल नायक आचार्य हस्ती के रूप में साक्षात् धर्म ने ही कर्नाटक प्रान्त में अपने चरण अंकित किये हैं। सुश्रावक श्री | सुगनमलजी भण्डारी निमाज के सुपुत्र अनन्य गुरभक्त श्री गणेशमलजी भण्डारी एवं श्री मोतीमलजी भण्डारी जोधपुर के सुपुत्र श्रद्धानिष्ठ समर्पित सुश्रावक श्री महावीरमल जी भण्डारी बैंगलोर ने बीजापुर से दुर्गम विहार- सेवा व गुरु भक्ति का लाभ लिया ।
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कर्नाटक प्रान्त में विचरण विहार के क्रम में पूज्यपाद बल्लोली, होर्ति, तिरुगुण्डी को फरसते हुए प्राचीन ऐतिहासिक नगर बीजापुर पधारे। बीजापुर का इतिहास गौरवशाली रहा है । सम्प्रति यहाँ लगभग २५० जैन घर एवं स्थानक, मन्दिर आदि अनेकों धर्म स्थान हैं। यहां गोंडल सम्प्रदाय की महासती श्री पुष्पाजी आदि ठाणा ५ ने पूज्यपाद के सान्निध्य एवं ज्ञानध्यान में वृद्धि का लाभ लिया। पूज्यप्रवर ने अपने प्रवचनों के माध्यम से जिनशासन की उन्नति के लिये ज्ञान-साधना पर बल दिया। आपकी अमृततुल्य वाणी को हृदयंगम कर यहां के सुज्ञ श्रावकों ने यहां १० जनवरी १९८० को स्वाध्याय संघ की स्थापना की व १४ जनवरी को वर्द्धमान जैन रत्न पुस्तकालय का शुभारम्भ किया। संस्कार - निर्माण व धार्मिक-अध्ययन की आपकी महती प्रेरणा से यहां धार्मिक शिक्षणशाला का श्रीगणेश हुआ। आपकी पातक प्रक्षालिनी भवभय हारिणी पीयूषपाविनी वाणी व आपके सहज सरल शैली में | फरमाये गये उद्बोधक प्रवचनों का यहां व्यापक प्रभाव पड़ा। युवकों ने आपसे सप्त कुव्यसन एवं नृत्य जीवन निर्माणकारी एवं समाजहितकारी प्रवृतियों को अपनाया, तो सुज्ञ श्रद्धालुवृन्द श्री हीरालालजी, श्री ताराचन्दजी, श्री देवीलालजी, श्री दुर्गालाल जी, श्री देवकिशन जी तोषनीवाल, श्री गोपीलालजी भूतड़ा आदि कई भाइयों ने शीलव्रत अंगीकार कर अखंड बाल ब्रह्मचारी पूज्य हस्ती के सान्निध्य से अपनी आत्मा को भावित किया। यहां कर्नाटक प्रान्त के हुबली, गजेन्द्रगढ़, गुलेदगढ, सोरापुर, यादगिरि प्रभृति विभिन्न क्षेत्रों के संघ क्षेत्र - स्पर्शन की विनतियाँ लेकर उपस्थित हुए । अन्य क्षेत्रों की भांति यहाँ पर भी पूज्य हस्ती ने सामायिक साधना से जीवन-निर्माण की प्रेरणा दी। आपका फरमाना था -
त्याग कर
करलो सामायिक से साधन, जीवन उज्ज्वल होवेला । सामायिक से जीवन सुधरे, जो अपनावेला । निज सुधार से देश, जाति, सुधरी हो जावेला ।
सामायिक से व्यक्ति, जाति, समाज व राष्ट्र सभी का सुधार सम्भव है।
बीजापुर से विहार कर करुणाकर गुरुदेव जुमनाल, होगनहल्ली, रुणिहाल होते हुए कृष्णा नदी के तट पर स्थित | कोर्ति पधारे । षट्काय प्रतिपाल, प्राणिमात्र के अभयदाता आचार्य हस्ती ने अहिंसा का प्रभावकारी उपदेश देते हुए | दया को धर्म का मूल बताया व फरमाया कि पशुबलि पाप है, धर्म के नाम पर की गई हिंसा भी धर्म नहीं वरन् हिंसा ही है । प्रवचन सभा में गांव के कन्नडभाषी मुखिया एवं स्थानीय ग्रामीण भी उपस्थित थे । एक भाई ने