Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १८४ अब्बाणी (सुपुत्र श्री गुलराज जी एवं रतनकंवर जी अब्बाणी) जोधपुर तथा श्री महेन्द्र जी लोढा (सुपुत्र श्री पारसमलजी एवं सोहनकंवर जी लोढा) महामन्दिर जोधपुर की भागवती दीक्षा वैशाख शुक्ला चतुर्दशी संवत् २०३२ तदनुसार २४ मई १९७५ को स्टेडियम मैदान में सम्पन्न हुई। स्थविर सौभागमुनि जी एवं श्रुतधर प्रकाशमुनि जी आदि ठाणा दीक्षा में पधारे । महासती सुन्दरकँवरजी म, उमरावकंवरजी 'अर्चना', बिलमकंवरजी आदि सती-मंडल भी दीक्षा के अवसर पर उपस्थित हुआ। समस्त कत्लखाने बन्द रहे। यह दिवस अहिंसा दिवस के रूप में मनाया गया। आचार्यप्रवर ने फरमाया- “दीक्षा आत्मा को अन्तरात्मा और फिर परमात्मा बनाने का साधन है। आत्मा पर राग, द्वेष एवं मोह का आवरण आया हुआ है। इसी आवरण के कारण आत्मा का असली स्वरूप दिखाई नहीं देता। दीक्षा इसी आवरण को हटाने का साधन है।" • ब्यावर चातुर्मास (संवत् २०३२)
यहाँ से ज्येष्ठ कृष्णा १२ को विहार कर फिटकासनी होते हुए चरितनायक काकेलाव पधारे, जहाँ गंगाविष्णु सरपंच, लालचन्दजी माहेश्वरी आदि ने धूम्रपान का त्याग किया। फिर पालासनी, भेट्दा, सांवलता मोटा, भाखरी, दूधिया बगड़ी, कानजी मंदिर होते हुए आप पाली विरजे। आषाढ कृष्णा एकम संवत् २०३२ को महासती छोटे किशनकंवरजी का स्वर्गवास होने पर श्रद्धांजलि दी गई। फिर जाडन, धाकड़ी, सोजत सिटी, सोजत रोड़, सांडिया , चंडावल, पीपलिया, झूठा, कुशालपुरा, निमाज , बर, सेंदडा आदि में कइयों को सामायिक स्वाध्याय का नियम दिलाते, अनेकों से कुव्यसन छुड़ाते, रात्रि भोजन न करने के महत्त्व को समझाते, अभक्ष्य भक्षण का निषेध कराते आप ग्रामानुग्राम विहार करते संवत् २०३२ के चातुर्मास हेतु ब्यावर पधारे, जहाँ तपश्चर्या के कीर्तिमान स्थापित हुए। विरक्त गौतम जी आबड पालासनी से ही ज्ञानाराधन हेतु आचार्य श्री के चरणों में साथ थे। महासती सायरकंवरजी, महासती मैनासुन्दरीजी आदि ठाणा ५ का चातुर्मास भी यहीं हुआ। आचार्य पूज्य श्री शोभाचन्द्रजी म.सा. की पुण्यतिथि पर ५०० आयंबिल हुए तथा आयम्बिल साधना का क्रम अनवरत चलता रहा। सप्त दिवसीय स्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर का आयोजन हुआ। 'स्वाध्याय संघ' तथा 'श्री महावीर जैन वाचनालय' का शुभारम्भ हुआ। स्वाध्याय संघ जोधपुर के सभी स्वाध्यायियों का पहली बार त्रिदिवसीय सम्मेलन रखा गया, जिसमें आचार्यप्रवर ने श्रावक समाज में स्वाध्याय द्वारा ज्ञानवृद्धि कर भगवान् महावीर के पावन सन्देश को घर-घर पहुँचाने की पावन प्रेरणा की। स्वाध्याय संघ के तत्कालीन संयोजक श्री संपतराजजी डोशी ने सम्मेलन में बताया कि संवत् २००२ में तीन क्षेत्रों में सेवा देने वाले ५-६ स्वाध्यायियों से प्रारम्भ स्वाध्याय संघ में सम्प्रति ४८५ स्वाध्यायी हैं तथा ८८ स्थानों पर १८८ स्वाध्यायियों ने पर्युषण-सेवा दी है। स्वाध्याय संघ की इस प्रगति पर सबने प्रमोद का अनुभव किया। इस अवसर पर स्वाध्यायियों एवं श्रावक-श्राविकाओं ने निम्न लिखित व्रत-नियम धारण किए
१. शादी में दहेज, टीका आदि का ठहराव नहीं करेंगे और दहेज उत्पीड़न नहीं करेंगे। २. सप्त कुव्यवसन तथा बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू सेवन का त्याग रखेंगे। ३. दीपावली, उत्सवों एवं समारोहों में आतिशबाजी नहीं करेंगे। ४. होली के अवसर पर अपशब्दोच्चारण तथा कीचड़ आदि का प्रयोग नहीं करेंगे। ५. बारात में नृत्य नहीं करेंगे। ६. प्रतिदिन २० मिनट स्वाध्याय करेंगे।