Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं मस्तिष्क में ही केन्द्रित रहे तो शरीर के अन्य अंग रक्त के अभाव में निष्प्राण हो जायेंगे। इसी प्रकार धर्म की सार्थकता या उपयोगिता जीवन के हर अंग, हर व्यवहार में प्रवाही रहने में ही है। प्रवाही धर्म जीवन में उसी प्रकार तेजस्विता लाता है जिस प्रकार प्रवाही रक्त तन में तेजस्विता लाता है।"
इस चातुर्मास काल में लगभग एक माह आपने आलनपुर के स्थानक में विराजकर साधना की । यहाँ अन्नाजी आदि हरिजन बन्धुओं , मोहनजी गूजर, सीता शर्मा आदि ने सप्तव्यसन, होटल गमन, मद्यपान, प्याज एवं अण्डा सेवन आदि का यथेच्छ त्याग किया। कई भाइयों ने चातुर्मास में मद्य-मांस के त्यागी बनाने के संकल्प लिए। वीर निर्वाण दिवस पर उपवास, दयाव्रत एवं मौन सामायिक का आराधन हुआ। कार्तिक शुक्ला एकम को २५ व्यक्तियों ने सामूहिक रूप से एक वर्ष के लिए ब्रह्मचर्यव्रत का नियम लिया। ___ आप समागतों को नियम दिलाकर उनका जीवन-निर्माण करने के प्रति भी सदैव जागरूक रहे। आपने जीवन-निर्माण के लिए जो नियम प्रस्तावित किए, वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं
१. प्रात: एक प्रहर दिन तक क्रोध नहीं करना। २. परस्पर बातचीत में सामने वाले को जोश आवे तब बात को आगे के लिए स्थगित कर देना। ३. किसी भी साथी की पीछे से निन्दा नहीं करना। ४. किसी भी संस्था या सभा को वचन देकर पार निभाना। ५. एक घण्टा मौन का अभ्यास करना। ६. प्रतिदिन १५ मिनट 'ऊँ अर्हम्' या 'सोऽहम्' का ध्यान करना। ७. कम से कम १२ बार अरिहन्त को वन्दन करना। ८. अपने साथी स्वाध्यायी में बन्धुभाव रखना।
सवाईमाधोपुर का ऐतिहासिक चातुर्मास सम्पन्न कर आचार्य श्री मुनिमंडल सहित बजरिया पधारे, जहाँ कई खटीकों ने मांस-सेवन का त्याग किया। आबाल ब्रह्मव्रती महापुरुष के पदार्पण एवं अपने निवास पर विराजने की खुशी में श्रद्धाभिभूत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गुलाबसिंह जी दरडा ने एक वर्ष के शील का नियम स्वीकार कर अपनी श्रद्धाभक्ति अभिव्यक्त की। वहाँ से करेला, चौथ का बरवाड़ा, पांवडेढ़ा होते हुए आप सिवाड़ पधारे। उल्लेखनीय है कि विभिन्न ग्रामों में २५ चमार घरानों ने मांस-मदिरा का त्याग किया, विभिन्न जातियों के विभिन्न लोगों में आपसी मनमुटाव का शमन हुआ तथा शीलव्रत के नियम लिए गए। • जयपुर में तप-महोत्सव
परम पूज्य गुरुदेव का विहार मालव भूमि की ओर होने की संभावना थी। इधर जयपुर में महातपस्विनी सुश्राविका श्रीमती इचरजकंवर जी लुणावत की दीर्घ तपस्या चल रही थी। उनका दृढ संकल्प था कि परम पूज्य गुरुदेव के मुखारविन्द से प्रत्याख्यान लेकर ही वे अपनी दीर्घ तपस्या का पारणक करेंगी। जयपुर संघ व लुणावत परिवार ने भावभरी विनति व महातपस्विनी बहिन का संकल्प भगवन्त के चरणों में प्रस्तुत किया।
तपस्विनी बहिन की भावना का समादर करते हुए आचार्यप्रवर का विहार जयपुर की ओर हुआ। ग्रामानुग्राम विहार करते हुये आपका जयपुर पदार्पण हुआ।