Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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आचार्य पद-ग्रहण के पूर्व अन्तरिम-काल
(संघ-व्यवस्थापक श्री सुजानमल जी म. एवं परामर्शदाता स्वामी श्री भोजराजजी म. का सान्निध्य)
तेजस्वी मुनि हस्ती का संघनायक आचार्य के रूप में चयन हो गया, किन्तु वे अभी अपने अध्ययन को महत्त्व देते हुए वयोवृद्ध श्री सुजानमल जी म.सा. के संघ व्यवस्थापकत्व एवं स्वामीजी श्री भोजराजजी महाराज के परामर्शत्व में निश्चिन्त एवं आनन्दित थे। संघ व्यवस्थापक श्री सुजानमल जी महाराज के निर्देश पर सन्तों का अलग-अलग संघाडों में विचरना हुआ। चरितनायक विभिन्न क्षेत्रों को फरसते हुए नागौर पधारे, जहाँ आप यदा-कदा प्रवचन फरमाते । परन्तु अधिकांश समय अध्ययन एवं चिन्तन में ही देते। यहां पर ज्ञानचन्दजी सिंघवी के साथ सामयिक प्रश्नोत्तर हुए। वहां से ग्राम - नगरों को फरसते हुए आप पाली पधारे, जहां संघ व्यवस्थापक स्वामीजी श्री सुजानमलजी म, स्वामी जी श्री भोजराजजी जी म. पहले से ही विराजमान थे । वहाँ आप सब सन्त ओसवाल पंचायती नोहरे में विराजे। पाली में ही विराजमान तपस्वी बख्तावरमलजी महाराज ने न्याति नोहरे में पधार कर चरितनायक से कुछ प्रश्न किये एवं उनकी योग्यता से प्रमुदित हुए। किशोरवय मनोनीत आचार्य श्री की प्रतिभा, ज्ञानगरिमा व गांभीर्य से तपस्वी जी महाराज अत्यन्त प्रभावित हुए और उन्हें लगा कि जिनशासन का यह उदीयमान सूर्य मेरी विद्याओं का सच्चा पात्र है और सच्चे पात्र को पाकर उन्होंने कतिपय विद्याओं को चरितनायक को प्रदान किया। आपकी अनुज्ञा से वैशाख माह में पीपाड़ निवासी श्री छोगमलजी गांधी एवं सुन्दरबाई की सुपुत्री और श्री मूलचन्दजी कटारिया की धर्मपत्नी धूलाजी की हरमाड़ा में वैशाख माह में श्री भीमकंवर जी म.सा. की निश्रा में दीक्षा सम्पन्न हुई।
इस पाली शेष काल में श्री नथमल जी पगारिया, श्री सुराणाजी, श्री बालियाजी एवं श्री केसरीमलजी आदि श्रावकों ने सेवा-भक्ति का अच्छा लाभ लिया। यहीं पर हाकिम मूलचन्दजी ने स्थविर सन्तों के समक्ष प्रार्थना की कि चरितनायक का अलग चातुर्मास कराया जाए, ताकि व्याख्यान आदि की उनकी योग्यता विकसित हो सके। • पीपाड़ चातुर्मास (संवत् १९८४)
___ संघ-प्रमुखों की विनति के अनुसार चरितनायक का चातुर्मास स्वामीजी श्री भोजराजजी म. एवं श्री लक्ष्मीचन्दजी म.सा. के साथ पीपाड़ स्वीकृत हुआ। बाबाजी श्री भोजराज जी, मुनि श्री चौथमल जी और मुनि श्री लक्ष्मीचन्द जी के साथ चरितनायक पाली से विहार कर भोपालगढ़ होते हुए पीपाड़ पधारे । यहाँ के राता उपासरा में चातुर्मासार्थ विराजे। संघ-व्यवस्थापक श्री सुजानमल जी महाराज का चातुर्मास ठाणा ३ से पालीनगर में हुआ। उनके साथ मुनि श्री अमरचन्दजी एवं मुनि श्री लालचन्द्र जी रहे। मुनि श्री लाभचन्द्रजी एवं मुनि श्री सागरमलजी का चातुर्मास अजमेर हुआ। चातुर्मास के पूर्व पूज्य रघुनाथजी महाराज की सम्प्रदाय के वयोवृद्ध तपस्वी श्री छगनलालजी महाराज की अस्वस्थता को देखकर संथारा सीझने तक मुनि श्री सागरमलजी एवं लाभचन्द्रजी उनकी सेवा में पाली | ही विराजे।
चरितनायक अपनी अल्पवय में ही बड़े-बड़े राज्याधिकारियों, सेठ-साहूकारों, सन्तों, विद्वानों तथा पण्डित ||