Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १५४ अगवानी में आए। अडालज में आपका श्री पारस मुनिजी के साथ प्रवचन हुआ। यहाँ से पूज्यवर्य साबरमती पधारकर चैत्र शुक्ला ४ संवत् २०२३ को बुधाभाई आगममंदिर शान्तिनगर स्थानकवासी जैन सोसायटी पधारे।
यहाँ पर प्रवचन में आपने पुण्य-पाप का विवेचन करते हुए फरमाया - "नादान भुगत करणी अपनी। पाप लोहे की बेडी और पुण्य सोने का कड़ा है। मनुष्य गति , पंचेन्द्रिय जाति आदि का लाभ पुण्य का फल है। बाह्य साधन पाकर भी सत्कर्म में रुचि नहीं होना, यह पाप का फल है। ब्रह्मदत्त को छः खण्ड का राज्य मिला। चित्तमुनि जैसे ज्ञान देने वाले मिले, पर वह आर्यकर्म भी नहीं कर सका, व्रताराधन नहीं कर सका - यह पाप का उदय है। पुण्यानुबंधी पुण्य मनुष्य को धर्म के अभिमुख करता है, यही उपादेय है ।" आप आगम-टीकाकार पूज्यश्री घासीलाल जी म.सा के दर्शनार्थ सरसपुर पधारे, जहाँ पूज्यश्री घासीलाल जी म.सा. ने स्वयं सामने पधार कर दर्शनों की कृपा की और भावभीने गुणाष्टक द्वारा चरितनायक का स्वागत किया। पूज्य श्री घासीलाल जी म.सा. ने फरमाया-“पुरुषों में हस्ती की समानता नहीं। समाज में मैंने तीन रत्न पाए-श्री आत्मारामजी महाराज, श्री समर्थमल जी महाराज और मेरे पास बैठे श्री हस्तीमल जी म.। पुरुषों में गन्धहस्ती ही ग्राह्य है जिनके प्रताप से दूसरे गज भाग जाते हैं, सामना करने की और खड़े रहने की भी उनकी ताकत नहीं। इन हस्तीमल जी को मैंने आज ही देखा। पहले सुंना करता था कि मारवाड़ में ऐसा तेजस्वी साधु है। (विनोद में कहा) उन्हें मैं क्या कहूँ? जोधपुर का राजा कहूँ या नव कोटि मारवाड़ का सरताज।” यह कहते हुए उन्होंने संस्कृत में स्वरचित प्रशस्ति सुनाई जिसे बाद में चरितनायक को अर्पित किया। पूज्य श्री घासीलालजी म.सा. द्वारा अर्पित गुणाष्टक का प्रथम पद्य इस प्रकार है -
असारं संसारं वदति सकलो बोधयति नो, बुधे बोद्धा बुद्ध्या सकलजनताबोधनपरः । यदीये सद्वाक्ये स्फुरति महिमा कोऽप्यनुपमो,
गणी हस्तिमल्ल: शमितकलिमल: शुभमति: ।। इस संसार को सब मनुष्य असार अर्थात् मिथ्या कहते हैं, किन्तु इसके सच्चे तात्पर्य को नहीं समझाते हैं। बुद्धिमान् मनुष्यों में ज्ञानी मनुष्य ही इसके सत्य स्वरूप को समझाते हैं। जिनकी सद्वाणी में कोई अनुपम महिमा प्रकट होती है, ऐसे शुभ बुद्धि के धारक आचार्य श्री हस्तीमल जी को देखकर कलियुग के पाप स्वयं शान्त हो जाते हैं। इस प्रकार अपने भाव बतलाकर आपने प्रसन्नता प्रकट की कि ऐसे शान्त शास्त्रीय मर्यादा के अनुसार विचरने वाले गणीजी से मेरा मिलन हुआ है।
नगर सेठ के बंडे के स्थानक में सती विमलाजी मंजुलाजी ने चरितनायक आचार्य श्री से दण्डक पर प्रश्नोत्तर | किये। आपने यहां १५००-२००० मुद्रित पुस्तकों एवं कुछ हस्तलिखित प्रतियों वाले गुलाबवीर भण्डार को देखा। छीपापोल में सती वसुमती जी ने भक्तिगीत प्रस्तुत किया। खेड़ा में शांतिमुनि जी से आपकी बातचीत हुई।
२० अप्रेल १९६६ को समुद्रतट के किनारे रत्नपारखी नगर खम्भात में चरितनायक के स्वागतार्थ आचार्य श्री कान्तिऋषि जी पधारे। आपश्री ने ज्ञान-भंडारों का निरीक्षण किया। कपाटों में बन्द ग्यारह अंग, उपांग, कल्पसूत्र कर्मग्रन्थ आदि की लगभग २० हजार प्रतियाँ थी। प्रत्येक प्रति अलग कपड़े में बंधी हुई देखी। आपने भण्डार के कई डिब्बों का अवलोकन किया।
__ अक्षयतृतीया के दिन आठ वर्षीतप आराधकों का पारणक हआ। आप श्री ने प्रवचन में फरमाया कि भगवान आदिनाथ ने जिस प्रकार इक्षुरस का पान किया उसी प्रकार अपने को ज्ञानरस का पान करना चाहिए। यहां आपकी