Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
१६८
वाले व्यक्ति को किसी से डरने की आवश्यकता नही हैं। उनकी नीति थी
जे
आचार ऊजला ते शादूला सीह । आपो राखे ऊजलो, तो किण रो आणे बीह ॥
जो आचार में उज्ज्वल हैं, वे शार्दूल सिंह की भाँति है। उन्हें फिर किसी अन्य से डरने की आवश्यकता नहीं
होती ।
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"गुरुदेव आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी महाराज के मेरे पर अनन्त उपकार हैं। उनके चरणों में रहकर मैंने बहुत कुछ पाया है। मैं उनके संघाड़े का अधिकारी हूँ लेकिन मेरे मन में उन्होंने इस प्रकार के | संस्कार भरे हैं कि एक सम्प्रदाय में रहकर भी सम्पूर्ण जिनशासन के हित में काम करूँ । एक समय आया, जब मै संघ में रहा, पर वहाँ जब मैं काम नहीं कर सका तो अपने आपको सुरक्षित रखते हुए अलग हो गया। उसके बाद भी मेरा यही लक्ष्य रहा कि मैं चतुर्विध संघ की उन्नति के लिए कार्य करता रहूँ।”
“ एक समय की बात है, आचार्य गुरुदेव किसी नये क्षेत्र में पधारे तो वहाँ के सम्प्रदायवादी लोग | बोले-“महाराज ! आप जैसे सन्तों की सेवा का मन तो रहता है, पर आप हमारे विरोधी सम्प्रदाय के संतों के साथ | बैठकर व्याख्यान करते हो। यदि ऐसा न करो तो हम आपकी सेवा भक्ति करने को तैयार हैं ।
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आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. ने कहा . “ भाई ! तुम्हारी भक्ति और वन्दना रहने दो। मैंने तुम्हारी वन्दना के लिए संयम नहीं लिया है, जो तुम्हारे कहे अनुसार संतों के साथ बैठना छोड़ दूँ । हाँ, | जिन-आज्ञा के विपरीत किसी का व्यवहार दिखा तो जरूर विचार करूँगा । संयम को निर्मल रखकर | चलने वालों को स्वर्ग के देव भी वन्दन करते हैं और यदि हम अपने मार्ग पर नहीं चलेंगे तो वन्दना करने पर भी हमारा कल्याण नहीं होगा । "
आचार्य श्री शोभागुरु की दृढ़ता और संयमनिष्ठा से विरोधी भी नतमस्तक थे । आचार्य श्री त्यागी, विरागी, विद्वान्, तपस्वी और पहुंचे हुए संत थे । स्वमत - परमत के ज्ञाता होकर भी वे जिन-वचनों पर अटल श्रद्धावान थे । आहार, विहार, आसन, शयन, स्वाध्याय, ध्यान में वे नियमित थे । वे आचार्य की आठ सम्पदाओं से युक्त एवं निरभिमानी थे । हम सत्कार करने वालों से प्रेम करते हैं, पर विरोध करने वालों से प्रेम करना मुश्किल होता है । वे विरोधियों से प्रेम करने वाले पूजनीय सन्त थे । उनके हजारों गुणों में से मैंने कुछ ही गुणों को गिनाया है।”
चरितनायक ने फरमाया – “यदि जिनशासन को उन्नत करना है, साधु-समाज को ऊँचा रखना है तो | साधुओं और श्रावकों के बीच एक मध्यमवर्ग की स्थापना करना आवश्यक है। यह वर्ग देश-विदेश में | धर्म प्रचार कर सकता है।"
आपने इस समारोह के अंतिम दिन शताधिक लोगों को शीलव्रत का नियम कराते हुए फरमाया – “ बुराई | की जानकारी के उपरान्त उसके त्याग से ही सुख-समृद्धि सम्भव है।" परिवार नियोजन के आज तरह-तरह | के कृत्रिम उपाय किए जाते हैं, परन्तु भगवान महावीर ने इसका बड़ा सरल उपाय बताया है। उनके द्वारा बताये गए ब्रह्मचर्य से तेजस्विता आएगी। परिवार नियोजन भी यथेच्छ हो जाएगा और जीवन बड़ा आनन्दमय होकर व्यतीत होगा ।" इस प्रसंग पर मद्य-मांस त्याग, धूम्रपान निषेध आदि अनेक उपलब्धियों के साथ शताधिक दम्पतियों द्वारा ब्रह्मचर्यव्रत का नियम स्वीकार किया गया। तत्कालीन कलक्टर श्री अनिलजी बोरदिया ने आचार्य श्री के अजमेर