Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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जोधपुर, कोसाणा और जयपुर चातुर्मास
(संवत् २०२८ से २०३०)
दीक्षा शताब्दी एवं दीक्षा स्वर्णजयन्ती के अनन्तर चरितनायक ठाणा ७ से अजमेर से विहार कर किशनगढ, | गोदियाणा, तिहारी, झाडोल, गोठियाणा, डबरैला आदि क्षेत्रों को फरसते हुए फतेहगढ पधारे । यहाँ आपकी प्रेरणा से
जैन पाठशाला प्रारम्भ हुई। फतेहगढ से विहार कर आप सरवाड केकड़ी, देवली आदि क्षेत्रों में धर्मोद्योत करते हुए होली चातुर्मासार्थ दूणी विराजे। होली चातुर्मासोपरान्त पूज्यपाद नैनवाँ, देई, जरखोदा, खातोली होते हुए संवत् २०२७ चैत्र कृष्णा एकादशी को अलीगढ - रामपुरा पधारे । यहाँ पूज्य आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी म.सा. विराज रहे थे। उनके दो सन्त पूज्य प्रवर की अगवानी हेतु पधारे । आचार्यद्वय का स्नेह मिलन श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र था। दोनों आचार्यप्रवर ने संयुक्त संघ-योजना पर विचार-विमर्श करते हुए इसके लिये प्रस्तावित नियमावली पर चर्चा
की।
दोनों महापुरुषों के कन्या पाठशाला में संयुक्त व्याख्यान हुए। तीन दिनों के विचार-विनिमय के अनन्तर विहार कर आप चैत्र शुक्ला २ संवत् २०२८ को सवाईमाधोपुर पधारे। यहां चार दिन विराजे। मुमुक्षु खेमसिंह जी ने गुरु चरणों में उपस्थित होकर शीघ्र दीक्षित कर अपने चरण-सरोजों में लेने की प्रार्थना की।
मुमुक्षु खेमसिंह की तीव्र वैराग्य-उत्कण्ठा व जयपुर श्री संघ की विनति को लक्ष्य में रखकर परम पूज्य आचार्य भगवन्त ने दीक्षा-महोत्सव जयपुर में आयोजित करने की स्वीकृति प्रदान की।
___सवाईमाधोपुर से विहार कर पूज्यप्रवर श्यामपुरा, कुण्डेरा व चौथ का बरवाड़ा क्षेत्रों में धार्मिक शिक्षण की | प्रेरणा करते हुए निवाई पधारे । वहाँ से मार्गवर्ती विभिन्न क्षेत्रों को पावन करते हुए वैशाख कृष्णा अष्टमी को जयपुर पधारे।
२ मई १९७१ विक्रम संवत् २०२८ वैशाख शुक्ला अष्टमी को यहां के रामलीला मैदान में मुमुक्षु युवक श्री खेमसिंह (सुपुत्र श्री राम बक्स जी राजपुरोहित) की भागवती श्रमणदीक्षा सोल्लास सम्पन्न हुई। दीक्षार्थी की महाभिनिष्क्रमण यात्रा अनन्य गुरुभक्त श्री अनोपचन्द जी सिरहमलजी बम्ब के निवास स्थान से प्रारम्भ हुई , जिसमें स्थानीय व आगन्तुक हजारों भाई-बहिन सम्मिलित हुए। बड़ी दीक्षा भी जयपुर में ही सम्पन्न हुई तथा नवदीक्षित मुनि श्री का नाम 'मुनि शुभचन्द्र' रखा गया। दीक्षा-प्रसंग पर भोपालगढ के मूल निवासी श्री भंवरलालजी बोथरा ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार कर संयम का सच्चा अनुमोदन किया। • जोधपुर चातुर्मास (संवत् २०२८)
जयपुर से विहार कर आचार्य श्री बगरू दूदू, किशनगढ़, अजमेर, पुष्कर, गोविन्दगढ़, मेड़ता, गोटन आदि क्षेत्रों में धर्म-ज्योति का पावन प्रकाश फैलाते हुए खांगटा पधारे, जहाँ श्री मधुकर मुनि जी से सुमधुर वार्तालाप हुआ। यहाँ से आप पीपाड़, पालासनी आदि क्षेत्रों में वीतरागवाणी की ज्ञान गंगा बहाते हुए आषाढ़ शुक्ला १० को ठाणा ९ से