Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
१७७ आचार्यप्रवर ने प्रेरणा दी कि "जैसे छोटे से बीज में भी बड़ी सामर्थ्य-शक्ति होती है वैसे ही मानव की चेतना-शक्ति में बड़ा सामर्थ्य होता है, आवश्यकता उसे क्रिया द्वारा प्रकट करने की है।" इसी अवधि में आचार्य श्री द्वारा लिखित 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' के दोनों भाग उदयपुर विश्वविद्यालय द्वारा एम.ए पाठ्यक्रम में स्वीकृत किए गए।
इस चातुर्मास में लगभग ३० मासखमण एवं ३०० अठाई तप हुए जो एक नूतन कीर्तिमान रहा। मेवाड़सिंहनी महासती श्री जसकंवर जी म.सा.भी इस समय जयपुर में ही विराज रहे थे। श्री अस्थिर मुनिजी के ५७ दिवसीय तप के समापन समारोह पर ६२ अठाई तपस्वियों का जुलूस शिवजीराम भवन से लाल भवन आया। यह दो परम्पराओं के सुन्दर मिलन व सौहार्द का अनुपम अवसर था। ऐसे ही ३० जुलाई को तपस्वियों का एक विशाल जुलूस सुबोध कालेज से रवाना होकर लाल भवन आया। यहाँ अठाई तप वाले १८१ तपस्वियों ने परमपूज्य आचार्य भगवन्त से एक साथ प्रत्याख्यान किये। मध्याह्न में आचार्य श्री प्रतिदिन श्री सूयगडांग सूत्र एवं बृहत्कल्पभाष्य की वाचना फरमाते थे, जिसमें सन्तों के साथ अनेक ज्ञानरसिक श्रावक लाभ लेते थे। ५ से ९ अक्टूबर ७३ तक धार्मिक कार्यकर्ताओं का शिक्षण शिविर लगाया गया, जिसमें जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, सवाई माधोपुर आदि क्षेत्रों के ३२ कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
चातुर्मास की समाप्ति के अनन्तर ठाणा ६ से पुलिस मेमोरियल, आदर्श नगर होते हुए गांधीनगर पधारे, जहाँ आप श्री चन्द्रराजजी सिंघवी के बंगले पर विराजे । यहाँ जैन विद्वान तैय्यार करने के पुनीत लक्ष्य से 'श्री जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान' की स्थापना की रूपरेखा बनी । संस्थान के माध्यम से संस्कृत, प्राकृत, दर्शन एवं जैन विद्या की उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान कर जैन धर्म के मर्मज्ञ विद्वान, प्रभावी वक्ता, सफल लेखक और कुशल सम्पादक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। ___आचार्य प्रवर ने शिक्षा, दीक्षा और संस्कार के समन्वित प्रयासों पर बल देते हुए फरमाया-“आज बोध और शोध दोनों दृष्टियाँ आवश्यक हैं।" उद्घाटन अवसर पर राजस्थान सरकार के सहकारिता मंत्री श्री रामनारायणजी चौधरी ने भगवान महावीर के सिद्धान्तों को आज के युग के लिए उपयोगी बताया और उनके व्यापक प्रचार-प्रसार पर बल दिया। मुख्य अतिथि श्री निरंजननाथ जी आचार्य ने भगवान महावीर के अहिंसा-अपरिग्रह जैसे सिद्धान्तों को युग की मांग बताते हुए जीवन में मानव मूल्यों को प्रतिष्ठित करने के लिए ऐसे संस्थानों की स्थापना को महत्त्वपूर्ण बताया। समारोह की अध्यक्षता श्री श्रीचन्दजी गोलेछा ने की।
२१ नवम्बर को आचार्य श्री विनयचन्दजी म.सा. की पुण्यतिथि पर श्री निरंजननाथ जी आचार्य, राजस्थान के | वित्तमंत्री श्री चन्दनमल जी बैद एवं खाद्यमंत्री ने प्रवचन-श्रवण का लाभ लिया तथा आचार्य श्री से जीवनोपयोगी विचार-विमर्श किया।