Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १७६ से आप बुर्जा, मालाखेड़ा, बारा भड़कोल, मौजपुर, हरसाना पधारे । आप द्वारा ब्रह्मचर्य पर दिए गए प्रवचन से प्रेरणा लेकर पटवारी लक्ष्मीनारायण जी आदि ने शीलव्रत का नियम लिया। यहाँ से कच्चे मार्ग से पहाड़ की तिरछी चढाई को पार करते हुए खोह गाँव पधारे। पल्लीवाल क्षेत्र आपकी अमृतवाणी से उपकृत हुआ। क्षेत्र में व्रत-नियमों की महत्ती प्रभावना हुई। वहाँ से मण्डावर, रसीदपुर, सिकन्दरा, दौसा, कानोता होते हुए आपने जयपुर के सेठी कॉलोनी, आदर्श नगर, तिलक नगर आदि उपनगरों को पावन किया। आचार्य श्री के साथ समय-समय पर श्री खेलशंकर दर्लभजी, डा. शीतलराज जी मेहता, श्री डी.आर. मेहता आदि दर्शनार्थी श्रावकों द्वारा ज्ञान-विज्ञान की चर्चा होती रही। आचार्य श्री उपवास को स्वास्थ्य के लिए हितकारी मानते हुए कई रोगों के निदान में भी उसे सहायक मानते थे। इस संदर्भ में आपने फरमाया – “मनुष्य नियमित रूप से समय-समय पर उपवास करके अपने पेट को विश्राम देता रहे, तो उसे व्याधियाँ परेशान नहीं करेंगी। उपवास से सात्त्विक भाव का जागरण और तामस-राजस भावों का विनाश होता है।"
आचार्य श्री के संवत् २०३० के चातुर्मास हेतु जयपुर की विनति स्वीकार करने पर समूचा जयपुर समाज प्रफुल्लित हो उठा। इसी दौरान लाल भवन स्थित आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भंडार के सक्रिय एवं उत्साही संयोजक श्री सोहन लाल जी कोठारी का २६ मई ७३ को स्वर्गवास हो जाने के समाचारों ने सबको विह्वल कर दिया। आचार्यप्रवर ने कोठारी जी को एक ऐसा प्रचेता बताया जिसका विभिन्न क्षेत्रों में मूल्यवान योगदान रहा।
श्री कोठारी जी जैन इतिहास समिति के मंत्री, निष्ठावान कार्यकर्ता और समर्पित समाज सेवी थे। विद्वान् एवं प्रोफेसर नहीं होने पर भी आपने जिस सूझबूझ से आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार को व्यवस्थित किया वह अपने आप में अप्रतिम उदाहरण था। • जयपुर-चातुर्मास (संवत् २०३०)
आचार्य श्री संवत् २०३० के वर्षावास हेतु जब ठाणा १२ (पं. लक्ष्मीचन्दजी म.सा. , सेवाभावी श्री लघु लक्ष्मीचन्दजी म.सा, श्री माणकचन्द जी म.सा, पं. श्री चौथमलजी म.सा, बाबाजी श्री जयन्तमुनिजी म.सा, श्री श्रीचन्द्रजी म.सा, श्री मानचन्द्रजी म.सा, श्री हीराचन्द्रजी म.सा, श्री शीतलमुनिजी म.सा, श्री शुभेन्द्रमुनिजी म.सा. तथा श्री बस्तीमलजी म.सा.) से लालभवन में पधारे तब सम्पूर्ण नगर में हर्ष की लहर दौड़ गई और विशाल जनमेदिनी अगवानी हेतु उपस्थित हुई। इस चातुर्मास की अनेक उपलब्धियाँ रहीं। देश में भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण वर्ष की तैयारियां चल रही थी, इसी क्रम में संघ की ओर से न्यायमूर्ति श्री सोहनलालजी मोदी की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय वीर निर्वाण साधना समारोह समिति', का गठन किया गया, जिसका मंत्री उत्साही कार्यकर्ता श्री ज्ञानेन्द्र जी बाफना को बनाया गया। समिति ने समाज के समक्ष २५ सूत्री साधना-संकल्प का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। समिति का मुख्य कार्यालय घोडों का चौक जोधपुर में था। इस कार्यक्रम में मांस-भक्षण, मद्यपान, धूम्रपान आदि दुर्व्यसनों का त्याग, दहेज एवं सामूहिक रात्रि-भोज आदि कुरीतियों का उन्मूलन तथा सामायिक, स्वाध्याय आदि जीवन निर्माणकारी प्रवृत्तियों का प्रचार-प्रसार तथा इन्द्रिय-संयम, ब्रह्मचर्य एवं श्रावक व्रत अंगीकार करने जैसे जीवनोत्थानकारी कार्यक्रम सम्मिलित थे। २५ सूत्री कार्यक्रम के क्रियान्वयन के फलस्वरूप ६ माह की अल्पावधि में समिति के कार्यकर्ताओं के प्रयासों व आपश्री के सदुपदेश से ४३० ब्रह्मचर्यव्रती, ९३ बारह व्रती,१३९ स्वाध्यायी श्रावक, ९०४ प्रेमी स्वाध्यायी, ८३३ साप्ताहिक सामायिक व्रती,१२२७ मांस-त्यागी, १३१७ मद्यत्यागी, ९३२ धूम्रपान-त्यागी, ६६५ प्रामाणिक मापतौल व्रती,२२ संघ सर्वेक्षक तथा ४५० सामायिक संघ के सदस्य बने।