Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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ग्रामानुग्राम विहार करते हुए आचार्य श्री जोधपुर पधारे, जहाँ आपका श्री पुष्करमुनि म.सा. के साथ व्याख्यान हुआ। ४ जनवरी १९७३ को पूज्य श्री घासीलालजी म.सा. के स्वर्गवास की सूचना मिलने पर उन्हें कायोत्सर्ग के साथ श्रद्धाञ्जलि दी गई। पूज्य श्री घासीलालजी म.सा. के द्वारा स्थानकवासी सम्प्रदाय को मान्य आगमों की संस्कृत टीका करने सहित अनेक ग्रन्थों के रूप में उनके योगदान का स्मरण किया गया। आचार्यप्रवर की प्रेरणा से जोधपुर में अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने शीलव्रत एवं १२ व्रत अंगीकार किए। महिलाओं ने सामायिक में विकथा न करने का नियम लिया। महामंदिर, मंडोर, बावड़ी, बिराई फरसते हुए आप माघ कृष्णा अष्टमी को भोपालगढ़ पधारे । यहाँ ठाकुर रामसिंहजी ने आचार्य श्री से प्रभावित होकर अहिंसा का प्रचार किया तथा पंच दिवसीय अल्पकाल में २० व्यक्तियों ने आजीवन शीलव्रत स्वीकार किया। यहाँ से आप रजलाणी, गोटन, लाम्बाजाटा होते हुए मेड़ता पधारे। यहाँ से भखरी पधारने पर माघ शुक्ला १३ दिनांक १५ फरवरी १९७३ को बस्तीमल जी लोढा (सुपुत्र श्री खेमराजजी लोढा) और श्रीमती सूरज कुंवर (धर्मपत्नी श्री मोहनलालजी सुराणा) की दीक्षा सम्पन्न हुई। यहाँ से आप थाँवला, तिलौरा, पुष्कर होते हुए अजमेर पधारे, जहाँ गणेशमलजी बोहरा की बहिन को संथारा कराया जो ६ घंटे बाद सीझ गया। यहाँ से मदनगंज पधारने पर बादरमल जी मोदी को यावज्जीवन संथारा कराया और मांगलिक दिया। शाम को ६ बजे उनका संथारा सीझ गया। यह घटना सबके लिए आश्चर्यजनक थी। यहाँ से आचार्य श्री किशनगढ़, डीडवाना, पडासोली, गागरडू, हरसोली, दूदू , पालू, गाढ़ोता, बगरू, हीरापुर को पावन करते हए जयपुर पधारे । कुछ दिन वहाँ विराज कर आप आमेर, कूकस, अचरोल होते हुए चंदवाजी पधारे, जहाँ पर एक हरिजन भाई ने मांस-मद्य व निरपराध जीव की हत्या का जीवन पर्यन्त त्याग किया। यहां सरपंच देवीसहाय जी से संस्कृत में वार्ता करते समय प्रसंगवश भगवद्गीता के 'सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज' श्लोकांश पर जिज्ञासा का समाधान करते हुए आपने फरमाया-“ जो लोग कृष्ण के आश्रय से वर्ग, धर्म सम्प्रदाय आदि सब धर्मों का परित्याग अर्थ बतलाते हैं, वे वस्तु तत्त्व से अनभिज्ञ हैं। कृष्ण जैसे उदारमना महापुरुष इस प्रकार मानव को मानव से विग्रह का शिक्षण नहीं दे सकते। यहां स्वधर्म का अभिप्राय आत्मधर्म से है। भूतधर्म शरीर और इन्द्रिय के धर्मों को छोड़कर | मेरी अर्थात् आत्मा की शरण स्वीकार करने के लिए कृष्ण का उपदेश हो सकता है।"
यहाँ से आप मनोहरपुरा, शाहपुरा होते हुए भीलवाड़ी पधारे। ग्राम पंचायत के समीप आपने शिक्षकों को साधुधर्म से अवगत कराया। एक शिक्षक ने पृच्छा की- शरीर का तप हिंसा है या नहीं? पूज्यपाद ने समाधान करते हुए फरमाया-“शरीर का तप हिंसा नहीं अहिंसा है। शरीर शुभाशुभ क्रिया में करण है, अतः हितभाव से शिक्षक द्वारा बालक के ताड़न की तरह शरीर का तप-संयम से नियन्त्रण किया जाता है।” पूज्यपाद के सदुपदेश से प्रभावित शिक्षकों ने सदा के लिए धूम्रपान का त्याग कर दिया।
भीलवाड़ी से बैराठ, थानागाजी होते हुए वैशाख कृष्णा १४ को आपने अलवर पदार्पण किया व विशाल | जनसमूह के जयघोषों के साथ महावीर भवन में प्रवेश किया। यहाँ आप १७ दिन विराजे । श्री जवरीमलजी चौधरी, | ज्ञानचन्द जी ठाकुर, जयचन्दजी संचेती सहित अनेक बंधुओं ने सजोड़े शीलवत अंगीकार किया। वैशाख शुक्ला १२ | को कुचेरा में स्वामीजी श्री रावतमलजी के स्वर्गस्थ होने पर श्रद्धाञ्जलि दी गई।
अलवर में ५ मई ७३ को अक्षय तृतीया पर न्यायमूर्ति श्री सोहननाथ जी मोदी की अध्यक्षता में सम्पन्न समारोह में समाज-सेवा हेतु कमला बहिन का अभिनन्दन किया गया। प्रश्नोत्तर के समय आत्मा के होने की सिद्धि में आपने फरमाया कि स्वानुभूति ही आत्मा के होने में पुष्ट प्रमाण है। आप यहाँ पर लगभग १५ दिन विराजे । यहाँ
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