Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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गुजरात की भूमि पर
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(संवत् २०२३)
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बालोतरा से विहार कर विभिन्न ग्रामों को अपनी पद रज से पावन बनाते हुए चरितनायक सुदूरवर्ती रेगिस्तानी क्षेत्र बाड़मेर पधारे । यहाँ लम्बे समय के बाद क्रियानिष्ठ संतों का पदार्पण हुआ था। सच्चे संयम आराधक संतों के सान्निध्य के अभाव में लोग सामायिक स्वाध्याय आदि सम्यक् आराधना की बजाय द्रव्य परम्पराओं की ओर आकर्षित व समर्पित हो रहे थे। ऐसे समय में भगीरथ के समान इस रेतीले प्रदेश में आपका पदार्पण हुआ। आपके श्रीमुख से जिनवाणी का पान कर लोग पुन: शुद्ध परम्परा में दृढ हुए। धर्माचरण में शिथिल हुए लोग पुन: स्थिर बने। कहना न होगा आपने पधार कर सुप्त लोगों को पुनर्जागृत किया, धर्म व आचार के शुद्ध स्वरूप का लोगों को पुन: बोध कराया। आपकी प्रेरणा से यहां सामायिक संघ की स्थापना हुई। आपने यहाँ शास्त्र भंडार का अवलोकन भी किया। बाड़मेरवासियों को धर्मोपकार से उपकृत कर आप ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए सिणधरी पधारे। अचला जी जाट ने आजीवन शीलव्रत का नियम लिया एवं कई चारण और जाट लोगों ने तम्बाकू, बीड़ी आदि के त्याग किये। वहाँ से पायला, नादिया, मोरसीम, बाली, झाब होते हुए आप सांचोर पधारे, जहाँ सामायिक संघ की स्थापना हुई एवं एक दिन में १००० सामायिकें हुईं। यहाँ से धानेरा, डीसा आदि विभिन्न क्षेत्रों में धर्मजागृति करते हुए आप गुजरात पधारे। आपने कई स्थानों पर व्यसन-त्याग कराये तथा सामायिक एवं स्वाध्याय की प्रेरणा की। धानेरा में आपने फरमाया – “सामायिक विश्वकल्याण की साधना है। दुःख का मूल ममता है और उसके उच्छेद का उपाय समता है। सामायिक मन की विषमता मिटाने का प्रमुख उपाय है।" आपकी प्रेरणा से डीसा में ९ भाई साप्ताहिक सामूहिक स्वाध्याय के लिए तैयार हुए।
पालनपुर के ज्ञान भंडार में आपने भूधरवंशी सन्तों के लिखे कई शास्त्रों का अवलोकन किया और संवेगी || उपाश्रय के ज्ञान भण्डार की करीब १६००-१७०० प्रतियां (४१ डिब्बों में) देखकर आप प्रमुदित हुए। यहाँ पर जैन || दर्शन में भक्ति के स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए आपने एक दिन फरमाया - "हमारी मूल परम्परा में भक्ति को विनय शब्द से कहा है । विनय में स्व-पर के हित का खयाल होता है। वहाँ मोह नहीं होकर गुणानुराग होता है। भक्त भजनीय के स्वरूप में अपने को एक रूप करता जाता है।"
इसके अनन्तर १२ दिनों के प्रवास में पाटण के प्राचीन ग्रन्थ भण्डारों के सिंहावलोकन में गुरुदेव ने १४वीं एवं १५ वीं शती की दो ताड़पत्रीय प्रतियाँ देखीं। संवत् ११८८ की प्राचीन प्रति, कतिपय प्रशस्तियाँ, तेलगू लिपि के कई ग्रन्थ एवं लगभग डेढ़ हजार ग्रन्थ सुरक्षित देखकर आप अत्यंत प्रमुदित हुए। विमलगच्छ के भण्डार में तीन हजार हस्तलिखित प्रतियाँ, ज्ञानमंदिर में १३ हजार प्रतियाँ, श्री विमल उपाध्याय भण्डार में तीन हजार ग्रन्थों (संवत् १५२२ स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र सहित) का अवलोकन कर पाटण के ताड़पत्रीय संग्रह से आपश्री अत्यधिक पुलकित हुए। इसमें मुनि पुण्यविजयजी का पूरा सहयोग रहा। चरितनायक यहाँ से धीणोज, मेहसाणा, धोलासण, झूलासण होकर कलोल पधारे । कलोल में आपसे पूज्य श्री चुन्नीलालजी म. एवं महासती ताराबाई का मिलन हुआ। सुशील मुनि जी