Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
__ पारस्परिक प्रेम और सहयोग से ओतप्रोत अधिकतर किसानों की जनसंख्या वाले छोटे से गांव बारणी में माघशुक्ला तेरस विक्रम संवत् २००३ के शुभ मुहूर्त पर आचार्यश्री ने माता श्रीमती जतनदेवी और पिता रिड़मल चन्द जी भंडारी की दोनों पुत्रियों सायरकंवरजी और बालब्रह्मचारिणी मैनाकंवरजी को भागवती दीक्षा प्रदान की। भव्य दीक्षा समारोह के अनन्तर दोनों महासतियों को बदनकंवरजी म.सा. की शिष्या | घोषित किया गया। इस अवसर पर महासती हरकंवरजी, महासती सज्जन कंवरजी, महासती बदनकँवरजी आदि ठाणा १२ का सती-मण्डल विराजमान था। यहाँ गाँव के लोगों ने कई प्रकार के त्याग-प्रत्याख्यान लिए। कई किसानों ने बकरे, भेडे आदि कसाइयों को विक्रय करने का त्याग किया। एक सप्ताह पश्चात् भोपालगढ में स्वामीजी श्री सुजानमलजी म.सा. द्वारा दोनों नवदीक्षिता महासतियों की बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई। आचार्य श्री बारनी से हरसोलाव गोटन होते खांगटा पधारे जहाँ स्वामीजी म.सा. का भी पदार्पण हुआ। आचार्य श्री लाम्बा, भंवाल आदि ग्रामों को फरसते हुए मेड़ता पधारे। होली चातुर्मास यहीं हुआ। फिर पाचरोलिया, जड़ाऊ आदि गाँवों को पावन | करते हुए पादू पहुँचे । यहाँ जयपुर का संघ चातुर्मास की विनति लेकर उपस्थित हुआ।
यहाँ से मेवड़ा, थांवला, पुष्कर होते हुए अजमेर पधारे। अजमेर में ममैयों के नोहरे में विराजे। अजमेर में स्थविरापद विभूषित महासती श्री छोगाजी, बडे राधाजी आदि सतीवृन्द विराजमान था। अजमेर में चातुर्मास हुए कई वर्ष हो गए थे। यहाँ चातुर्मास हेतु संघ का प्रबल आग्रह था। महासतीजी छोगांजी महाराज आदि के यहाँ विराजित होने से अजमेर संघ की विनति को और अधिक बल मिल गया एवं आचार्य श्री ने आगामी चातुर्मास हेतु अजमेर की विनति स्वीकार कर ली। पाली और जयपुर संघ की आशा सफलीभूत न हो सकी। आचार्य श्री शेषकाल में जयपुर संघ की विनति को मान देते हुए किशनगढ़ होते जयपुर पधारे। वहाँ धर्मोद्योत कर पुन: मार्गस्थ ग्राम नगरों को पावन करते हुए आचार्य श्री अजमेर पधारे। इसी कालावधि में ज्येष्ठ शुक्ला सप्तमी को जोधपुर में आपकी आज्ञा से श्री माणकमलजी सिंघवी की धर्मपत्नी श्री उमराव कँवरजी की भागवती दीक्षा उल्लासमय वातावरण में सम्पन्न हुई। • अजमेर चातुर्मास (संवत् २००४) ____संवत् २००४ के अजमेर चातुर्मास में भारत देश अंग्रेजों की पराधीनता से मुक्त हुआ। १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्र भारत का तिरंगा लहराया। इस चातुर्मास में धर्माराधन में भी विशेष उत्साह दिखाई दिया। आचार्य श्री के निर्देशन में पंडित श्री दुःखमोचनजी झा ने पूर्व आचार्यों का ऐतिहासिक परिचय लिखने का कार्य सम्पन्न किया। अत्र विराजित स्थविरा महासती श्री छोगाजी महाराज, बड़े राधाजी महाराज आदि सतीवृन्द को आचार्यश्री का सान्निध्य मिलने से आध्यात्मिक तोष हुआ। संघ में धर्मध्यान का अच्छा ठाट रहा। श्री उमरावमल जी ढड्डा, | गणेशमलजी बोहरा, रेखराजजी दुधेड़िया, जीतमलजी सुराणा आदि श्रावकों की सेवाएँ उल्लेखनीय रहीं।
___ अजमेर चातुर्मास सम्पन्न कर आचार्य श्री का विहार मेरवाड़ा के ग्राम-नगरों की ओर हुआ। आप भिनाय, टांटोटी, गुलाबपुरा, विजयनगर, मसूदा होते हुए ब्यावर पधारे। होली चातुर्मास यहाँ स्वामीजी श्री सुजानमल जी म.सा. आदि सन्तों के साथ किया । ब्यावर संघ की चातुर्मास हेतु कई वर्षों से आग्रहभरी विनति चल रही थी। रत्नवंश की परम्परा के स्थविर मुनि श्री चन्दनमलजी म.सा. ने वि. संवत् १९६३ में यहाँ चातुर्मास किया था। श्रीचन्दजी | अब्बाणी आदि श्रावकों के आग्रह एवं अनुनय के कारण पाली की पुरजोर विनति होते हुए भी संवत् २००५ के चातुर्मास की स्वीकृति का सौभाग्य ब्यावर नगर को प्राप्त हुआ।