Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं) प्रसंग पर प्रधानमंत्री श्री आनंद ऋषि जी म, वयोवृद्ध श्री छोटमल जी म. (श्री पन्नालाल जी के संघाटक) एवं महासती श्री हरकंवर जी आदि सती-मंडल उपस्थित था। दीक्षोपरान्त सुगनचन्द्रजी का नाम सुगनमुनि रखा गया। • जोधपुर का संयुक्त ऐतिहासिक चातुर्मास (संवत् २०१०)
विक्रम संवत् २०१० का जोधपुर चातुर्मास अनेक संतों का संयुक्त ऐतिहासिक चातुर्मास था, जिसमें चरितनायक श्री हस्तीमल जी म.सा. आदि ठाणा ६ के अतिरिक्त उपाचार्य श्री गणेशीलाल जी म. सा. आदि ठाणा ८, प्रधानमंत्री श्री आनंदऋषि जी म.सा. आदि ठाणा ५, व्याख्यान वाचस्पति श्रीमदनलाल जी म.सा. आदि ठाणा २, कवि श्री अमरचन्दजी म.सा. आदि ठाणा ५, पं. रत्न श्री समर्थमलजी म.सा. स्वामी जी श्री पूर्णमल जी म.सा. आदि ठाणा २ एक साथ सिंहपोल स्थानक में विराजे।
सिंहपोल में छह श्रमण प्रमुखों का यह संयुक्त चातुर्मास स्वर्णिम चातुर्मास था, जिसमें एक साथ इतनी विभूतियों के दर्शन-वन्दन, प्रवचन-श्रवण एवं ज्ञानचर्चा का लाभ न केवल जोधपुरवासियों को, अपितु समस्त देशवासियों को आह्लादित करता था। चातुर्मास काल में देश के अनेक स्थानों से श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहा। श्रमण-श्रेष्ठों ने शास्त्रों, भाष्यों, टीकाओं, चूर्णियों आदि का आलोडन करते हुए अनेक गूढ़ विषयों पर चिन्तन प्रकट किया। तप-त्याग एवं धर्माराधन की झड़ी सी लग गई। श्रमणवरों ने चार मास तक नियमित रूप से घण्टों
बैठकर सर्वमान्य साधु समाचारी निर्धारित करने के लक्ष्य से गंभीरतापूर्वक विचार-मंथन कर अनेक सर्वसम्मत निर्णय लिए। संघ और अनुशासन पर चरितनायक ने एक दिन प्रवचन में फरमाया “अनुशासनहीन समाज रक्तहीन देह की तरह अवसान की ओर प्रयाण करता है। उसका चिरकाल के लिये अस्तित्व संभव नहीं। इसलिये महावीर ने संघ की स्थापना की । उनकी संघ-व्यवस्था में यह विशेषता है कि उनके समवसरण में चाहे देव हो या मानव, राजा हो अथवा दरिद्र, सभी नियमानुसार सभा में स्थान ग्रहण करते थे। बड़े से बड़ा व्यक्ति भी पहले बैठे हुए छोटे को हटाकर नहीं बैठता था और न कोई बीच में होकर जाता था। जरूरी कार्य से भी कोई किसी को उठाकर नहीं ले जाता और न कोई सभा में संभाषण ही करता था। देव, मनुष्य पशु और साधु-साध्वी सभी यथा स्थान बैठकर विधि पूर्वक देशना का लाभ लिया करते थे। इसी अनुशासनशीलता से संघ देव तुल्य पूजनीय माना गया था।" _ "श्रावक संघ श्रमण संघ का सहयोगी है, अत: उसमें भी व्यवस्थित अनुशासन रहे तभी सफलता मिल सकती है। उसको कोरा आलोचक या बातूनी नहीं होना चाहिये। जबानी जमा खर्च या टीका टिप्पणियों से समाज का हित नहीं हो सकता। इसके लिये सक्रिय कदम उठाना होगा। गोपनीय कार्यों की सुरक्षा यहां तक हो कि कार्य से पहले पड़ौसी भी आपके विचार को नहीं समझ सके। अधिक करके थोड़ा कहने की नीति को सदा ध्यान में रखा जाय । समाज हित के लिये सबकी एक आवाज हो और शासन रक्षा में सर्वस्व न्यौछावर की तैयारी हो।" ___चातुर्मासोपरान्त छोटे लक्ष्मीचन्दजी म.सा. के नासूर की शल्य चिकित्सा के कारण चरितनायक को कुछ दिन जोधपुर रुकना पड़ा। • स्वामीजी श्री सुजानमल जी म.सा. का स्वर्गारोहण
संवत् २०१० की माघ कृष्णा चतुर्दशी को स्वामीजी श्री सुजानमल जी म.सा. का समाधिपूर्वक सहसा देहावसान हो गया। उनकी अभिलाषा के अनुसार चरितनायक अन्तिम समय में उनके पास ही थे और उन्होंने चरितनायक के मुख से मंगलाचरण सुनकर १८ पापों की आलोचना की। श्री सुजानमल जी म. बड़े गम्भीर,