Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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मालवा से पुनः राजस्थान की धरा पर
(संवत् २०१९ शेषकाल से संवत् २०२२)
• सैलाना से भोपाल होकर कोटा
सैलाना से धामनोद, डेलनपुर, पलसोडा आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए आप मार्गशीर्ष कृष्णा ४ को रतलाम पधारे। सैलाना से मुहम्मद अजीज आदि भक्त साथ में थे। यहाँ लक्ष्मीचन्द जी मुणोत के माध्यम से शास्त्र भण्डार देखे। आपकी प्रभावी प्रेरणा से अनेक पशुओं को अभयदान मिला। आपका प्रवचन सुनने के लिए रतलाम नरेश भी उपस्थित हुए। ६ दिसम्बर १९६२ मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को विरक्ता बरजीदेवी (धर्म पत्नी स्व. श्री मदनलालजी कर्णावट) की दीक्षा धामनोद एवं सैलाना के बीच में आपके द्वारा विधिपूर्वक सम्पन्न हुई। नवदीक्षिता का नाम वृद्धिकंवर रखा गया और उन्हें महासतीश्री बदनकंवर जी म.सा. की शिष्या घोषित किया गया। पुन: नामली होकर सेंमली पधारे। यहाँ कुंवर भारतेन्द्र सिंह सत्संग में आये। रिंगणिया रात्रि विश्राम कर खाचरोद में आपने प्रवचन फरमाते हुए कहा-“ जीवन का लक्षण गतिमत्ता है। जिसमें गति नहीं वह जीवन कैसा? साधक को भी साधना में गतिमान होना चाहिए। संसार में आप तरक्की चाहते हैं वैसे अध्यात्म में भी तरक्की का विचार आवश्यक है। " यहाँ पर महासती सूरजकंवरजी (मैन कँवरजी की शिष्या) ने जिज्ञासाएँ रखी एवं समाधान प्राप्त किया। दया-पौषध हुए। नियमित स्वाध्याय के नियम कराये गए। यहाँ से आप नागदा पधारे । यहाँ आपने जैन रत्न पुस्तकालय का अवलोकन भी किया। फिर चरितनायक महीदपुर, खेडा खजूरिया, घट्टिया (वैष्णव मंदिर में विराजे) लिपाणी होते हुए पौषकृष्णा ९ को उज्जैन पधारे।
उज्जैन में आपने शास्त्र भंडार का अवलोकन किया। इस भंडार में मूल एवं अर्थ सहित शास्त्रों और टीकाओं का अच्छा संग्रह है। लगभग ३०० वर्ष प्राचीन भगवती, पन्नवणा, चन्द्रप्रज्ञप्ति एवं उत्तराध्ययन सूत्र मूल के साथ सचित्र विद्यमान हैं। यहाँ अनेक हरिजन भाई भी आपके प्रवचन श्रवणार्थ आते थे। व्याख्यान सभा में उन्हें दूर बिठाने का व्यवहार चरितनायक को उचित प्रतीत नहीं हुआ। वे भी जिनवाणी का रसास्वादन कर सकें, अत: आपके उपदेश से हरिजन भाइयों को प्रवचन सभा में आगे बिठाया गया। हरिजन भाइयों ने करुणाकर महापुरुष के मंगलमय उद्बोधन से मद्य मांस का त्याग कर दिया। उज्जैन से नयापुरा होते हुए आप फ्रीगंज पधारे। यहाँ | जेसिंगपुर ग्रन्थ भंडार एवं सुमतिनाथ के मंदिर में सुखराम जी यति का संग्रह देखा। और चार ग्रन्थ रद्दी में से निकाल कर उन्हें व्यवस्थित करने की प्रेरणा दी। ताजपुर विजयगंज मंडी, कायथा, लक्ष्मीपुर, मक्सी, कनासिया को फरसते हुए १ जनवरी १९६३ को आप शाजापुर पधारे । मध्यप्रदेश युवक संघ के अध्यक्ष श्रीसागरमल जी बीजावत एम.ए. ने ५० पर्युषण-सेवा देने वाले स्वाध्यायी श्रावक एवं २५० साधारण स्वाध्यायी बनने तक तली हुई वस्तु न खाने का नियम लिया । ३० व्यक्तियों ने सप्त कुव्यसन के त्याग किये। युवक संघ की सभा हुई, जिसमें ५० युवकों ने प्रतिदिन स्वाध्याय करने एवं सामूहिक भोज में रात्रि में नहीं खाने की प्रतिज्ञा ली। मार्ग के ग्रामों को फरसते हुए आप नलखेड़ा होकर सारंगपुर पधारे। यहाँ एवं मार्गस्थ ग्रामों में कई भाइयों ने मांस-मदिरा, शिकार एवं