Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रथम खण्ड: जीवनी खण्ड
१४७ धर्म का आचरण किया । उसका जीवन में साक्षात्कार कर फिर साढे बारह वर्ष के पश्चात् 3 ,देश दिया। एक ही उपदेश में ४४०० प्रतिबुद्ध हो गए। आप भी महावीर जयन्ती पर कुछ क्रियात्मक कार्य करें -१. रात्रि भोज छोड़ें २. शीलव्रत का पालन करें। ३. एक घंटा शास्त्र-वाणी का स्वाध्याय करें एवं ४. कटुवचन का त्याग करें।” स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से आप यहाँ पर मासकल्प विराजे।
यहाँ से गोला, नागेलाव, कालेसरा, पीसांगण , गोविन्दगढ में धर्मजागृति करते हुए मेवड़ा पधारने पर कई किसान भाइयों ने आपसे कसाइयों को पशु न बेचने व धूम्रपान न करने का नियम लिया। कांटों से युक्त मार्ग तय करते हुए पीपल के नीचे रात्रि बिताकर आप मेड़ता पधारे ।
ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदा को चरितनायक मेड़ता में विराज रहे थे। भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का देहान्त होने से दो दिन बाजार बन्द रहे । चरितनायक ने संसार की क्षण भंगुरता को देखकर विषय-कषाय घटाने की प्रेरणा की । यहाँ से कुचेरा पधारे, जहाँ स्वामीजी श्री रावतमलजी म. से मेघकुमार के पूर्व भव में समकित प्राप्ति की चर्चा कर आप फिरोजपुर मूंडवा, इठ्यासण होकर नागौर पधारे। यहाँ पर आपने व्याख्यान में फरमाया- आज का मानव जीवन-शोधन भूल रहा है। तन पर जरा-सा भी धब्बा लग जाए तो हम उसको साफ करते हैं। लोग प्रतिदिन नहाते-धोते हैं, किन्तु मन पर चारों ओर मैल जमा है, उसकी जरा भी परवाह नहीं करते। ज्ञान के निर्मल जल में सत्करणी की धुलाई से आत्मा को शुद्ध करो तो कल्याण ही कल्याण है।" यहाँ पर प्राचीन हस्तलिखित शास्त्रों में रुचिशील पंडितरत्न श्री पद्मसागर जी म. आप श्री के दर्शन करने पधारे एवं प्रसन्न भाव से ज्ञान-चर्चा की। मन्त्री श्री पुष्करमुनि जी म.सा. के भी कई दिन व्याख्यान साथ में हुए। दोनों के सान्निध्य से नागौर का सामाजिक तनाव दूर हुआ। यह मिलन आनन्ददायी रहा तथा कई विषयों पर चर्चा हुई।
खजवाणा, रूण, नोखा, हरसोलाव, वारणी एवं नारसर फरसकर आषाढ शुक्ला ९ को चरितनायक भोपालगढ़ पधारे। • भोपालगढ चातुर्मास (संवत् २०२१)
विक्रम सवंत् २०२१ में आपका चौवालीसवाँ चातुर्मास भोपालगढ़ में हुआ, जहाँ सामायिक व स्वाध्याय का शंखनाद फूंकने के साथ आपने व्याख्यान में निम्नांकित पाँच नियमों के संकल्प की प्रेरणा दी
१. मुनि-दर्शन को जाते समय मिठाई का त्याग । २. सामूहिक रात्रि-भोजन का त्याग। ३. मास में कम से कम एक एकाशन करना। ४. सामायिक में हेण्डलूम या खादी के अलावा मिल आदि के वस्त्रों का त्याग। ५. डोरा टीका की माँगनी का त्याग।
यहाँ पर लगभग २५ अठाई तप और ३ मासखमण तप हुए। तपस्या की झड़ी सी लग गई । तीन दिनों में ही ४२५ व्रत हुए। एक नापित भाई ने ब्रह्मचर्य की महिमा सुनकर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। एक हरिजन बहन ने सुश्रावक श्री जोगीदास जी बाफणा की धर्मपत्नी मानकंवर जी के मासखमण तप से प्रभावित होकर अठाई तप किया। इस बहन के अठाई तप के पारणे पर हरिजन मंडल ने सामूहिक मद्य-मांस का त्याग किया। गुरुदेव के श्रीमुख से अनेक श्रावकों ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। विद्यालय के बालकों ने भी दयावत आदि में भाग