Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १३४ में संतों की प्रसन्नता है।"
___ चरितनायक ने अपने तात्त्विक उद्बोधन में मनुष्य-जन्म की दुर्लभता व इसका महत्त्व समझाते हुए सोने की चरी में खल पकाने वाले सेठ व सुंद उपसुंद की कथा सुनाते हुए फरमाया कि अनन्त ज्ञानादि निधि को पाकर जो हिंसा , झूठ मान, बडाई और भोगों में अपने को खोता है उसे अंत में पछताना पड़ता है। प्रवचन से प्रभावित होकर सात महाजनों ने कूट तोल-माप का त्याग किया और किसान बंधुओं ने सामूहिक हिंसा छोड़ी। सामायिक और स्वाध्याय के भी कई नियम लिये गये। • सैलाना चातुर्मास (संवत् २०१९)
यहां से विहार कर आषाढ शुक्ला नवमी को आपने चातुर्मासार्थ सैलाना नगर में प्रवेश किया। ३० वर्षों के बाद मालवा के इस प्रदेश में आचार्य श्री का चातुर्मास प्राप्त कर सभी फूले नहीं समा रहे थे। चरितनायक के दर्शनार्थ जैन जैनेतर आबालवृद्ध युवक सभी उमड़ पड़े। इससे पहले आप रामपुरा में चातुर्मास करके दक्षिण प्रवास की ओर बढ़ते हुए सैलाना पधारे थे। आपने अपने प्रथम प्रवचन में फरमाया-"अब आप और हमको चार मास के इस समय का सदुपयोग करना है। छोटे को विनय और अनुशासन का पालन करना और बडों को प्रेम से सबका ध्यान रखना होगा। तरुण बन्धु ऐसी व्यवस्था करें कि उनको भी कुछ ज्ञान का लाभ हो और सेवा कार्य भी होता रहे। ज्ञान-दर्शन-चारित्र की वृद्धि में ही आपके हमारे समय का सदुपयोग होगा।” आषाढ शुक्ला दशमी को फरमाया – 'जो विकारों को नष्ट करता है वही पूर्ण ज्ञानी होता है। जो पूर्ण ज्ञानी हो वही धर्म या तीर्थ की आदि कर सकता है। स्तुति करने वाले यह शंका करते हैं कि प्रभु तारने वाले नहीं, फिर स्तुति क्यों ? उनको समझना चाहिए कि प्रभु भक्ति तुम्ब की तरह तारक है। मन की मशक में प्रभु भक्ति एवं सद्विचार की वायु भरने से आत्मा हल्की होकर तिर जाती हैं।" इस चातुर्मास में आपने एक दिन प्रवचन में फरमाया-“सन्त लोग त्याग-विराग का उपदेश प्रतिदिन क्यों देते हैं? जैसे जल को ऊपर चढ़ाने के लिए नल की अपेक्षा होती है वैसे ही जीवन की धारा को ऊर्ध्वगामी बनाने के लिए सत्संग, शास्त्र-श्रवण और शिक्षा का सहारा अपेक्षित है। भौतिकता के प्रभाव में जो लोग जीवन को उन्नत बनाना भूल जाते हैं वे संसार में कष्टानुभव पाते हैं और जीवन को अशान्त बना लेते हैं।" गाँव के बाल, तरुण और हिन्दू-मुस्लिम सब में अपूर्व उत्साह था। एक मुसलमान भाई ने प्रवचन में उर्दू कविता सुनाकर वातावरण को हर्षित कर दिया। चातुर्मास में महासती श्री मदनकंवर जी (बदनकँवरजी) म.सा. भी यहीं विराज रहे थे और जयपुर की तेजकंवर जी, नागौर की बरजीबाई जोधपुर के मानमल जी सेठिया और मगनमल जी मुणोत विरक्तावस्था में ज्ञानाभ्यास कर रहे थे। चातुर्मास में उपासकदशांग सूत्र, अंतगडदशांग सूत्र, निरयावलिका आदि पाँच सूत्रों का वाचन हुआ। आवश्यक सूत्र पर टीका | प्रारम्भ की । यहाँ आपश्री के प्रभाव से धर्म-ध्यान एवं तपश्चर्या का ठाट रहा। श्री केसरीमल जी सिंघवी, श्री इन्द्रचन्द जी हीरावत आदि अनेक श्रावकों ने ब्रह्मचर्य का नियम लिया। ___ आचार्यप्रवर का यह मन्तव्य था कि जैनों का कोई संघ-धर्म होना चाहिए, जिसका सभी लोग पालन करें। आपश्री का चिन्तन था कि संघधर्म के बिना श्रुत और चारित्र धर्म दृढ नहीं रह सकते। आपने संवत् २०१९ के सैलाना चातुर्मास की दैनन्दिनी में एतदर्थ कुछ आवश्यक नियम सूचित किए हैं, जिनका पालन प्रत्येक जैन भाई के लिए अपेक्षित है
१. चलते-फिरते किसी जीव पर आक्रमण कर नहीं मारना।