Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ११० की आज्ञा लेने का निर्णय हुआ।
५. सचित्ताचित्त विषय में प्रस्ताव पारित हुआ कि बादाम, पिस्ता, नौजा, चारोली, इलायची, सफेद और काली मिर्च अखण्ड नहीं लेंगे। पीपर बिना पिसी नहीं लेंगे। पानी का बर्फ नहीं लेंगे। ककड़ी , तरबूज, खरबूज, नारंगी, | केला, अंगूर आदि बिना शस्त्र परिणत नहीं लेंगे।
६. सम्यक्त्व देते समय वीतराग अरिहन्त देव, पंच महाव्रत, पाँच समिति एवं तीन गुप्ति का पालन करने वाले को गुरु तथा केवली प्ररूपित दयामय धर्म को धर्म स्वीकार करना।
७. सम्वत्सरी की एकता के सम्बन्ध में १७ सदस्यों की एक समिति बनायी गई जिसका संयोजक मरुधर | केसरी श्री मिश्रीमल जी म. को बनाया गया।
८.१ अप्रेल १९५६ को चरितनायक सहित चार उपाध्याय स्वीकृत हुए
१. पं. आनन्द ऋषि जी महाराज २. चरितनायक पं. श्री हस्तीमल जी महाराज ३. पं. प्यारचंद जी म. ४. कवि श्री अमरचन्दजी म.
भीनासर सम्मेलन के पश्चात् संवत् २०१३ का आपका चातुर्मास बीकानेर स्वीकृत हुआ। इसी समय आषाढ कृष्णा ४ संवत् २०१३ को ७७ वर्ष की आयु में स्थविरा महासती श्री छोगाजी का अजमेर में स्वर्गारोहण हो गया। ____ महासती छोगाजी रत्नवंश की देदीप्यमान एवं प्रभावशाली साध्वी थीं। विक्रम संवत् १९४० में बुचेटी के श्री पन्नालालजी ललवाणी के यहाँ जन्मी छोगाजी पर बालवय में वैधव्य का पहाड़ टूट पड़ा। १५ वर्ष की उम्र में आपने महामंदिर में दीक्षा अंगीकार की। वर्षों तक गुरु बहिन श्री राधाजी महाराज की सेवा में अजमेर रहीं। महासती सुन्दरकंवरजी आदि सात-आठ विदुषी महासतियां आपकी शिष्याएं हुईं। आप मधुर व्याख्यानी एवं अतिशयसम्पन्न महासती थीं। आपके प्रवचनों की भाषा सरल, सरस, हृदयोद्गारक एवं प्रेरक थी। आपके शब्द अन्त:स्पर्शी थे। आप अपनी अन्तेवासिनी सतियों का जीवन निर्माण करने में पूर्णत: सक्षम एवं दक्ष थी। आपके अतिशय के सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि विक्रम संवत् २००० के गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) चातुर्मास की बात है, एकदा आपने जिक्र किया कि मैंने तो कभी बाढ़ देखी नहीं । कुछ ही दिनों बाद श्रावण कृष्णा १३ को भयंकर मूसलाधार वर्षा हुई। चारों ओर पानी-पानी हो गया, घर पानी से भर गए। भाइयों ने आपसे अन्य मकान में पधारने का निवेदन किया, परन्तु आपने सचित्त पानी में जाना स्वीकार नहीं किया। प्रात: महासती सुन्दरकँवरजी ने समस्त शास्त्र एवं उपकरण ऊपर रख दिये
और आप सब सीढियों पर बैठकर स्वाध्याय करने लगीं। पानी सीढ़ियों पर चढ़ने लगा तो आपने पानी को इंगित कर कहा – “देख लिया, भई देख लिया।” और देखते ही देखते पानी उतरने लगा । सबने शांति की सांसें ली। • बीकानेर चातुर्मास (संवत् २०१३)
पूज्यप्रवर का बीकानेर चातुर्मास स्वाध्याय, सामायिक, पौषध, तपश्चरण, व्रत-प्रत्याख्यान आदि में उत्साह एवं उमंग के साथ सम्पन्न हुआ। चातुर्मास में आज्ञानुवर्तिनी महासती श्री बदनकँवर जी म.सा. आदि ठाणा भी विराज रहे थे। इस चातुर्मास में तमिल प्रदेशी विरक्त श्रीराम तथा पीपाड़ के विरक्त श्री हीरालाल जी गांधी (वर्तमान आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्र जी म.सा) चरितनायक की सेवा में अध्ययनरत रहे। श्री हीरालाल जी गांधी के पिता श्री