Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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भारत के कोने-कोने तक पहुंचाने का महान् उपक्रम किया है। यदि उन महामनीषी द्वारा जिनशासन की जाहो जलाली हेतु जीवन पर्यन्त किये गये विभिन्न योगदानों में से मात्र इस एक अभिनव क्रान्ति को ही लिया जाय तो भी उनका नाम जिनशासन प्रभावक आचार्य भगवंतों में अग्रगण्य पंक्ति में अंकित किये जाने हेतु पर्याप्त है। युग-युग तक उन महापुरुष का नाम सामायिक स्वाध्याय के संदेशवाहक के रूप में पूर्ण समादर से स्मृत किया जाता रहेगा। स्वाध्याय एवं आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज साहब दोनों ही मानों एक दूसरे के पर्याय बन गये थे एवं जहां-जहां स्वाध्याय का जिक्र आयेगा वहां स्वत: ही परम पूज्य आचार्य भगवन्त प्रेरणा सहज | का नाम लिया जायेगा व जब भी परम पूज्य आचार्य भगवन्त का नाम लिया जायेगा तो स्वाध्याय ही मिल सकेगी।
स्वामी श्री अमरचन्द जी म.सा. की अस्वस्थता कारण पूज्य श्री चातुर्मास के पश्चात् भी ठाणा ६ से जयपुर | ही विराजे । उस समय प्रार्थना पर आपके अत्यन्त सारगर्भित विचारपरक एवं हृदयग्राही प्रेरक प्रवचन हुए जो | सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर के माध्यम से 'प्रार्थना प्रवचन' पुस्तक के रूप में जन-जन के लिए सुलभ हुए । सिद्ध परमात्मा की प्रार्थना का प्रयोजन प्रतिपादित करते हुए आपने फरमाया - " जैसे अंजन नहीं चाहता कि में किसी | की नेत्र ज्योति बढाऊँ, तथापि उसके सेवन से नेत्र की ज्योति बढ़ती ही है, उसी प्रकार निष्काम निस्पृह एवं वीतराग | सिद्ध परमात्मा भले ही किसी को लाभ पहुंचाना न चाहें, मगर उनके सेवन से, उनके ध्यान और स्तवन से अवश्य ही लाभ पहुँचता है । सिद्ध भगवान की अलौकिक ज्ञानकिरणों को, चिन्तन के काँच के सहारे, यदि हम अपने अन्त:करण में केन्द्रित करेंगे तो अज्ञान दूर होगा, मन की अशान्ति दूर हो जाएगी और चित्त की आकुलता विनष्ट हो | जाएगी।” भगवान पार्श्वनाथ जयन्ती पर सामायिक एवं एकाशन का विशेष आयोजन हुआ। जयपुर एवं जोधपुर के १३ श्रावकों ने सपत्नीक आजीवन शील- व्रत अंगीकार किया। पौष शुक्ला चतुर्दशी को पूज्य प्रवर ने अपनी ५० वीं | जन्म तिथि पर १ वर्ष में पचास शीलव्रती तैयार करने का संकल्प लिया। गुरुदेव का यह संकल्प पूर्ण हुआ । प्रतिवर्ष | गुरुदेव ने फिर अपने जीवन के व्यतीत वर्षों की संख्या के जितने आजीवन शील- व्रती बनाने का नियम ही बना लिया । ५१ वें वर्ष में उन्होंने ५१ शील व्रती ५२ वें वर्ष में ५२ शील व्रती बनाये। इस प्रकार क्रमिक रूप से बढती हुई संख्या में शील- व्रती बनाने का क्रम चलता रहा। इसी प्रकार चरितनायक ने १२ व्रतधारी श्रावक भी बनाए। आपके लिये तो अपना जन्म-दिन विगत वर्ष के कार्यों का आकलन व नूतन वर्ष के लिये संकल्प का दिवस होता था ।
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आपके इस जयपुर प्रवास के समय आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार नामक पुस्तकालय की स्थापना हुई । गौरवशाली रत्नवंश परम्परा के पंचम आचार्य आगममहोदधि बहुश्रुत पूज्य श्री विनयचन्द्रजी म.सा. विक्रम संवत् १९५९ से १९७२ तक १४ वर्ष के लम्बे काल के लिए स्थिरवास विराजे, जिनके ज्ञान, दर्शन, चारित्रमय संयम - जीवन की अनूठी छाप जयपुर के जन मानस पर अंकित है, उन्हीं महापुरुष की स्मृति में इस ज्ञान भण्डार का नामकरण उनके नाम पर हुआ। आज इस ज्ञान भंडार में हजारों प्रकाशित ग्रन्थों के अतिरिक्त हस्तलिखित ग्रन्थों, पन्नों, चित्रों, पाण्डुलिपियों, ताम्रपत्रों आदि का अनूठा संकलन है। ज्ञान भंडार को व्यवस्थित करने में श्री सोहनमलजी कोठारी ने समर्पित भाव से अपनी अप्रतिम सेवाएं प्रदान की ।
संवत् २०१७ की महावीर जयन्ती पर आचार्य श्री की प्रेरणा से १०८ भाइयों ने अग्राङ्कित प्रतिज्ञाएँ ग्रहण
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