Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
(प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
१२१ चैत्रकृष्णा चौथ को चरितनायक श्री थानचन्दजी मेहता के यहाँ ठहरते हुए पंचमी को सरदारपुरा पधारे। महावीर जयन्ती पर प्रवचन बड़े प्रभावकारी रहे। इस दिन श्री शैतान चन्द जी बारणी वाले, श्री कालूजी नाहर, श्री खेमचन्द जी सिंघवी एवं श्री दशरथमलजी लोढा ने आजीवन शीलवत का नियम अंगीकार किया। संवत् २०१८ के चातुर्मास हेतु सैलाना, भीलवाड़ा, भोपालगढ़ हरसोलाव, पाली और जोधपुर संघ ने पुरजोर विनति प्रस्तुत की। पूज्यप्रवर ने जोधपुर संघ की विनति को स्वीकार कर लिया। चैत्र मास की आयम्बिल ओली एवं महावीर जयन्ती के अवसर पर सैंकडों आयम्बिल, एकाशन एवं दयाव्रत हुए। • बालोतरा की ओर
___ बालोतरा संघ का अत्याग्रह होने से चरितनायक ने बालोतरा की ओर विहार किया। विहार के समय बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ बासनी तक पहुँचे । सालावास में आप केशरीमलजी बागरेचा के नोहरे में विराजे। यहाँ भीखमचन्दजी एवं दीपचन्दजी कवाड अच्छे धर्मप्रेमी थे। रेलवे लाइन के पास से आठ नौ मील चलकर लूणी जंक्शन पधारे। यहाँ से कच्चे रास्ते से सथलाणा, भासन्ना होते हुए वैशाख कृष्णा अष्टमी को आप दुन्दाड़ा पधारे । भगवान पार्श्वनाथ की प्रार्थना के मधुर पद्य गाकर मांगलिक सुनाया। यहाँ मंदिर और स्थानक के पटिये के सम्बंध में बहुत मतभेद था। आचार्यश्री ने सबकी बातों को शान्तिपूर्वक सुनकर समरसता का संचार किया।
अजीत से भलडारावाड़ा होते हुए चरितनायक समदड़ी पधारे। यहां आपके धर्म के स्वरूप विषयक प्रभावशाली प्रवचन हुए। भक्तों ने प्रश्नचर्चा भी की। इस विषयक सारांश चरित नायक की डायरी के आधार पर उद्धृत किया जा रहा है
___“धर्म हृदय की बाड़ी में उत्पन्न होता है, वह किसी खेत में पैदा नहीं होता, न किसी हाट दुकान पर ही मिलता है। वह तो हृदय की चीज है। राजा हो या रंक, जिसके मन में विवेक है, सरलता है जड़ चेतन का भेदज्ञान है, वहीं वास्तव में धर्म का अस्तित्व है।
सत्य से धर्म की उत्पत्ति होती है। चोर, लम्पट और हत्यारा भी सत्यवादी हो तो सुधर सकता है। यदि सत्य नहीं तो अच्छे से अच्छा सदाचारी और साहूकार भी गिर जाता है, बिगड़ जाता है।
धर्मरूप कल्पवृक्ष की वृद्धि दया-दान से होती है। इसलिए कहा है कि “दयादानेन वर्धते” । बढ़ा हुआ धर्मवृक्ष क्षमा के बिना स्थिर नहीं रह सकता, इसलिये कहा है कि “क्षमया च स्थाप्यते धर्मः” सहिष्णुता-क्षमा से धर्म की रक्षा होती है, कामादि विकार सहिष्णु साधक को पराभूत नहीं कर सकते।”
धर्म का नाश किससे होता है? इसके उत्तर में चरितनायक ने फरमाया कि "क्रोधलोभाद् विनश्यति” क्रोध और लोभ से धर्म का नाश होता है। जहां प्रशांत भाव के बदले क्रोध का प्रभुत्व है, वहां ज्ञानादि सद्गुण सुरक्षित नहीं रहते, आत्मगुण नष्ट हो जाते हैं। लोभ भी सब सद्गुणों का घातक है, इसलिये इन दोनों को धर्मनाशक कहा गया है।
सृष्टि की आदि कब से है और कैसे हुई? इसका समाधान करते हुए आप श्री ने फरमाया-"सबसे पहले आप को एक अनादि सिद्धान्त ध्यान में लेना चाहिये कि "नाऽसतो विद्यते भावो, नाऽभावो विद्यते सतः" सर्वथा असत् वस्तु की उत्पत्ति नहीं होती और सत् पदार्थों का सर्वथा नाश नहीं | होता। आप जानते हैं कि सुवर्ण की डली को भस्म बनाकर उड़ा दिया जाये तब भी परमाणु रूप में | सोना कायम ही रहता है। इसी प्रकार संसार के जड़ चेतन पदार्थ भी सदा विद्यमान रहते हैं, कभी |