Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
• उदयपुर में पूज्य गणेशीलालजी म.से मिलन
यहाँ से खेमपुर, वल्लभनगर, खेरी, डबोक देबारी , आयड़ होते हुए आपका ज्येष्ठ शुक्ला प्रतिपदा रविवार के दिन उदयपुर के भोपालपुरा में पदार्पण हुआ, जहाँ तपस्वी श्री केशूलाल जी म.सा. एवं पण्डित श्री नानालाल जी म.सा. अगवानी के लिए पधारे। चरितनायक ने उदयपुर नगर में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम उपाचार्य श्री गणेशीलाल जी म.सा. का दर्शनलाभ लिया। दोनों चारित्रिक आत्माओं के हर्ष का पारावार नहीं रहा। प्रेम के आधिक्य में पूज्य श्री गणेशीलाल जी म.सा ने फरमाया-“बूढ़े को याद कर लिया।” यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि श्री गणेशीलालजी म.सा. वर्द्धमान श्रमणसंघ को छोड़ चुके थे एवं चरितनायक उन्हें संघ में ही सम्मिलित रहने का प्रेम पूर्वक निवेदन कर रहे थे। चरितनायक ने प्रवचन में फरमाया-“मैं उदयपुर देखने नहीं आया। मैं तो गणेश सागर से मोती लेने आया हूँ।” चरितनायक ने दो दिनों तक उपाचार्य श्री से पारस्परिक विचार-विनिमय किया एवं संघ में रहकर ज्ञान-क्रिया को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया, किन्तु जिन स्थितियों में उपाचार्य श्री ने संघ छोड़ा था, उनका निराकरण नहीं होने से बात आगे नहीं बढ़ पाई।
चरितनायक का उदयपुर से विहार हो गया। आपने आयड़ में फरमाया-“पारस्परिक ईर्ष्या, द्वेष जैसे रोगों को समूल नष्ट करने के लिए एक ही औषधि है, 'स्वाध्याय'। समाज में यदि स्वाध्याय को बढ़ावा दिया जाए तो इससे ज्ञानवृद्धि होगी और ज्ञान से वैर, ईर्ष्या, द्वेष आदि का शमन होगा। झगड़े टंटे नहीं रहेंगे।" देवारी से दरवाजे की ओर शाम को विहार कर आप सूर्यास्त पूर्व वहाँ पहुंचे। स्थानाभाव के कारण दो सन्तों ने द्वार पर, दो ने बाहर वृक्ष के नीचे और एक ने द्वार के बाजू की खोह में शयन किया। यहाँ लंगूर बहुतायत में थे। दैनन्दिनी में आपने अंकित किया है कि द्वार पर लंगूरों का प्रभुत्व था। मन्दिर और कपाटों पर उनके नियत निवास थे ।।
दरौली पधारने पर बहुश्रुत श्री समर्थमलजी म.सा. की सतियाँ, जो वहाँ विराजित थीं, दर्शनार्थ पधारीं । दरौली में अग्रवाल, ओसवाल, माहेश्वरी, ब्राह्मण आदि विभिन्न जातीय सज्जनों में किसी सामाजिक विषय को लेकर | | पारस्परिक संघर्ष चल रहा था। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को नीचा दिखाने की ताक में रहता था और मौका मिलते ही भड़क उठता था। अपने इस आपसी संघर्ष में लोग हजारों रुपयों का पानी कर चुके थे। ऐसे समय में चरितनायक का पदार्पण दरौली के लिए वरदान सिद्ध हुआ।
आपने अपने सदुपदेशों द्वारा वैमनस्य भाव दूर किया, जिससे वहाँ सौहार्द और भाईचारे का वातावरण बना। • भगवान की आज्ञा में चलने वाले का कल्याण
__खेरोदा होते हुए चरितनायक ज्येष्ठ शुक्ला ९ सोमवार को कुसावास (कुंथुवास) पधारे। यहाँ आप रावला में ठहरे । रात्रि में षट्कर्म का विवरण देते हुए अर्जुन माली की कथा कही। आप श्री ने लोगों से कहा कि जो भगवान की आज्ञा में चलेगा, वैर-विरोध घटायेगा, उसका कल्याण होगा। कौरव आपसी फूट में नष्ट हो गये। राम, लक्ष्मण सुमति के कारण आबाद रहे। इसलिए आपसी वैर-विरोध को त्याग कर प्रेमभाव एवं भाईचारे का भाव रखना चाहिए। यहाँ से आप मगरे की ऊँची-नीची भूमि और खजूर के वृक्षों युक्त वनप्रदेश को पारकर भीण्डर पहुंचे। शीतल वायु एवं बादलों के कारण दिन ठण्डा रहा। यहाँ से आपने कानोड़ के लिए प्रस्थान किया एवं जवाहर विद्यापीठ के छात्रों के जयनाद के साथ पंचायत भवन में विराजे । व्याख्यान में स्वाध्याय की प्रेरणा करते हुए फरमाया – “स्वाध्याय के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। मनोबल में स्थिरता नहीं रहेगी। नन्दन मणियार प्रभु महावीर