Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १३० एवं स्वाध्याय का नियम कराते हुए कोण्डी, कोठिया, सांगरिया, धनोप, फूलिया, रडावास, देवरिया, खामोर पधारे जहाँ बालचन्दजी ने शीलव्रत अंगीकार किया व श्री हरिसिंह जी ने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किए। यहाँ से भटेरा जाने के लिये उपरेडा होते हुए बनेड़ा पधारे।
बनेड़ा में सैलाना संघ की विनति लेकर परम गुरुभक्त श्रावक श्री प्यारचन्दजी रांका ने उपस्थित होकर अपने संघ की भावभरी विनति प्रस्तुत करते हुए निवेदन किया –“भगवन् ! हम १२ वर्ष से प्रतिवर्ष श्री चरणों में चातुर्मास की विनति प्रस्तुत करते रहे हैं। १२ वर्ष में तो आम्रवृक्ष भी फल देता है, पर हमें आपकी स्वीकृति का कृपाप्रसाद नहीं मिला।" भक्त हृदय सुश्रावक की विनति को लक्ष्य लेकर सहज मुस्कान के साथ पूज्यप्रवर ने संवत् २०१९ के चातुर्मास हेतु स्वीकृति फरमा दी। • भीलवाड़ा चित्तौड़ होकर उदयपुर
___ मारवाड़ एवं मेवाड़ की ओर से अब आपका विहार सैलाना की ओर होना स्वाभाविक था। इस क्रम में आप मालपुरा, केकड़ी में सामायिक संघ की स्थापना करते हुए विक्रम संवत् २०१९ की महावीर जयन्ती पर भीलवाड़ा के ज्ञान भवन में विराजे । आपने महावीर जयन्ती को अन्य जयन्तियों से भिन्न बताते हुए भगवान महावीर के शासन की विशेषताओं की विशद व्याख्या की। आपने फरमाया-“वैशाख शुक्ला १० को भगवान महावीर ने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर एकादशी को धर्मदेशना दी। प्रभु की अमोघ वाणी श्रवण कर हजारों मुमुक्षुओं ने संयम ग्रहण किया और अनेकों ने देशविरति श्रावक-धर्म अंगीकार किया। महावीर के शासन में तब साधारण स्खलना भी उपेक्षित नहीं होती थी। आज उसी वीर की मंगल जयन्ती है। हमारा कर्तव्य है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार कर स्व-पर कल्याण करें।" आपने भगवान महावीर के संदेश को जीवनव्यापी बनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की तथा यह फरमाया कि वीतराग भाव की ओर बढ़ना ही महावीर की सच्ची भक्ति है। भीलवाड़ा के भोपालगंज एवं शान्ति भवन में नियमित सामायिक एवं स्वाध्याय करने वाले तैयार हुए। आचार्य भगवन्त ने अपनी डायरी में अनुभवों में लिखा है – “धार्मिक रुचि सामान्य रूप से घटती चली जा रही है । चन्द लोग श्रद्धाबल से आते-जाते रहते हैं। परस्पर कुछ मतभेदों से युवकों में उत्साह घट गया है। स्वाध्याय की प्रवृत्ति बिल्कुल नहीं है। धार्मिक कक्षा चलती है। मास्टरजी एक घण्टा परिश्रम करते हैं, परन्तु बच्चे पूरे नहीं आते हैं।" माणक जी आदि युवकों ने स्वाध्याय को चालू रखने का विचार किया। चाँदमल जी सिंघवी, अमरचन्दजी संकलेचा, भूरालालजी गांधी, पाँचूलाल जी गाँधी आदि यहाँ के उत्साही कार्यकर्ता थे। ____ यहाँ पर उदयपुर का शिष्ट मण्डल संघमंत्री श्री तखतसिंहजी, उपाध्यक्ष श्री लक्ष्मीलालजी, श्री डूंगर सिंहजी वकील एवं श्री केशूलालजी ताकडिया के नेतृत्व में विनति करने हेतु आप श्री के चरणों में उपस्थित हुआ। वहाँ पर पूज्य श्री गणेशीलालजी म.सा. विराजमान थे। चरितनायक ने सकारात्मक आश्वासन दिया। आप पुर, गाडरमाल, पहुंना होते हुए ऐतिहासिक नगर चित्तौड़ पधारे । यहाँ आपने खातर महल में व्याख्यान फरमाया। उदयपुर का शिष्ट मण्डल पुन: उपस्थित हुआ। यहाँ से पांडोली फरसकर दो फलांग दूर ग्राम के बाहर वटवृक्ष के नीचे रात्रिवास किया। एक भाई ने संवर किया। फिर आप श्री सांवता, नालेरा, सिंहपुर, कांकरिया, निम्बाहेड़ा, केसरखेड़ी होते हुए कपासन पधारे । यहाँ प्रार्थना पर आपका प्रभावशाली प्रवचन सुनकर २१ व्यक्तियों ने प्रतिदिन धर्मस्थान में आकर सामूहिक प्रार्थना करने का नियम लिया। सनवाड़ पधारने पर मेवाड़ी मुनि श्री मांगीलाल जी आदि सन्त जो यहाँ पहले से ही | बिराजे हुए थे, आचार्यश्री की अगवानी के लिए सामने आए।