Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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• भोपालगढ़, नागौर होकर अजमेर
महामन्दिर से बनाड होते हुए चरितनायक दहीखेड़ा पधारे। मार्ग में काँटेदार भुरट बहुत थे, अत: सन्तों ने कष्टपूर्वक मार्ग तय किया। फिर बुचेटी से मार्गशीर्ष कृष्णा ९ को दोपहर का ध्यान कर एक बजे बडा अरटिया के लिए विहार हुआ। रास्ता धूलभरा था। नांदिया होते हुए अरटिया पधारे, जहाँ एक कमरे में रात बितायी। छोटा अरटिया में दशमी का मौनव्रत था। कुड़ी में पटेल हरखा जी के पुत्र, दरजी, रेवतरामजी आदि की भक्ति अच्छी रही। यहाँ के अनेक भक्त चौधरी परिवार नियमित सामायिक व धर्माराधन के साथ अच्छी श्रद्धा वाले हैं। इस विहार क्रम में श्री ब्रह्माचंदजी भंडारी ने विशेष सेवा की। यहाँ से बडलू (भोपालगढ) पधारने पर आपने जैनरल विद्यालय में 'विद्यार्थी, विद्या और विद्वान्' विषय पर प्रवचन फरमा कर बालकों को झूठ, चोरी , नशा और वर्ष में २ से अधिक चित्रपट (फिल्म) देखने का त्याग कराया। संस्कारशीलता की प्रेरकशक्ति चरितनायक में अनुपम थी। मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी को ध्यान के पश्चात् विहार कर नारसर होते हुए वारणी पधारे, जहाँ महासती जैनमतीजी, केसरजी आदि ठाणा छह से दर्शनार्थ पधारी । रजलाणी से भी तेरह सतियाँ दर्शनार्थ आयीं। एक किसान ने भेड़-बकरे बेचने और तम्बाकू पीने का त्याग किया। यहाँ से आसावरी, रूण, खजवाणा पधारे। यहां नमस्कार मन्त्र के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए फरमाया – “आत्मिक विकास की अपेक्षा से ही अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को आराध्य माना गया है। ये पाँचों ही स्तुति योग्य, नमन योग्य और पूज्य हैं। चैतन्य एवं उपयोग गुण से सभी जीव समान हैं, किन्तु रागादि विकारों की अधिकता और ज्ञान की क्षीणता से जीव निंदा योग्य तथा रागादि की हीनता और ज्ञान की अधिकता से स्तुति योग्य होता है। जैन धर्म में इस मंत्र की बड़ी भारी महिमा बतलायी गयी है। दुःखी-सुखी आदि किसी भी अवस्था में इस मंत्र का जप करने से समस्त पापों का क्षरण हो जाता है।" फिर मूंडवा होते हुए नागौर पधारे। ____नागौर में आपका मूर्तिपूजक संत पूज्य पदमसागर जी म.सा. से पौष कृष्णा पंचमी को प्रेम मिलन हुआ। | उन्होंने अपने यहाँ के शास्त्र दिखलाये। उत्तराध्ययन सूत्र की एक प्रति आपको भेंट की गई। अठियासण होते हुए कुचेरा पहुँचने पर स्वामी जी श्री ब्रजलाल जी महाराज, पंडित श्री मिश्रीमल जी 'मधुकर' आपको लेने सामने पधारे। पौष कृष्णा दशमी को छात्रों ने पार्श्वनाथ जयंती मनाई। आपश्री ने मौन होते हुए भी व्याख्यान देकर श्रोताओं को वीतराग वाणी से तृप्त किया एवं स्थायी लाभ हेतु सबको स्वाध्याय की प्रेरणा की। यहाँ पर मंत्री जी महाराज के साथ संघ की समस्याओं पर विचार-विमर्श हुआ। उनमें से प्रमुख हैं
१. गत काल से अब तक नियमों का पालन किसके द्वारा कैसा हुआ? २. अधिकारी मुनियों ने अपने अधिकार का किस हद तक पालन किया? ३. समाचारी के भेद मिटाना, एकरूपता लाने का प्रयास करना आदि।
यहाँ से पूज्यप्रवर बुटाटी पधारे। प्रात:काल आपने दुःखमुक्ति हेतु तप, जप और स्वाध्याय-साधना की प्रेरणा की। बुटाटी में सत्संग का जागरण करने वालों से ब्रह्म एवं माया पर चर्चा हुई। कई भाइयों को माला फेरने एवं कम नहीं तोलने का नियम कराया। रेण होते हुए पौष कृष्णा १३ को मेड़ता पहुंचे। पौष शुक्ला तीज को भूधरजी म.सा. के जीवन पर प्रवचन करते हुए आपने शास्त्रों के रक्षण व स्वाध्याय की प्रेरणा की। अनन्य गुरुभक्त श्री हेमराजजी डोशी ने आजीवन शीलवत अंगीकार कर गुरुचरणों मे श्रद्धा अभिव्यक्त की। यहाँ के उत्साही भक्त श्री जौहरीमलजी