Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
१०३ करते वक्त अपनी भावना व्यक्त कर दी थी कि एक सुदृढ समाचारी व एक आचार का दृढता से पालन उनका लक्ष्य है, इसकी पूर्ति में वे अपना सदा सहयोग देते रहेंगे। आचार दृढता व समाचारी के पालन में कमी आने पर वे इस बारे में स्वतंत्र रहेंगे।
सम्मेलन में संघ-संगठन की दृढता व समाचारी की एकरूपता सम्बन्धी विचार-विमर्श में चरितनायक की| महनीय भूमिका रही। विभिन्न समितियों में प्रमुख महापुरुषों के साथ आपका यशस्वी नाम था। आप जिन मुख्य समितियों में थे, वे इस प्रकार हैं१. प्रायश्चित्त समिति -
१. पूज्य श्री आनन्द ऋषि जी म.सा.
२. पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. २. पाक्षिक तिथि निर्णायक समिति – १. पूज्य श्री गणेशीलालजी म.सा.
२. पूज्य श्री आनन्द ऋषि जी म.सा.
३. पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. ३. साहित्य-शिक्षण समिति - १. पूज्य श्री घासीलालजी म.सा.
२. पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. ४. सचित्ताचित्त निर्णायक समिति - १. पूज्य श्री आनन्द ऋषि जी म.सा.
२. पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. आदि सम्मेलन वैशाख शुक्ला त्रयोदशी ७ मई १९५२ को सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाने के पश्चात् नागौर संघ के || विशिष्ट आग्रह पर पूज्य चरितनायक ने विनति स्वीकार कर जोधपुर की ओर विहार कर दिया।
___ अब चरितनायक का चिन्तन संघ ऐक्य को ग्राम-ग्राम नगर-नगर में स्थापित करने हेतु मूर्तरूप लेने लगा। जहाँ भी आप गए वहाँ श्रावकों को “वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ” की स्थापना हेतु प्रेरणा करने लगे। • जोधपुर में आगमन
__ विहार क्रम से आपके जोधपुर पदार्पण के अनन्तर यहाँ भी 'वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ' की स्थापना के साथ सारे श्रावक एकसूत्र में आबद्ध हो गए। श्री इन्द्रनाथजी मोदी इस संघ के अध्यक्ष बने।
जोधपुर में आगमप्रेमी दो सन्तों का महामिलन स्मरणीय रहा। पूज्यश्री अपनी सन्तमण्डली के साथ सरदारपुरा के कांकरिया भवन में विराज रहे थे। भैरूबाग में विराजित मूर्तिपूजक प्रसिद्ध सन्त श्री पुण्यविजयजी पूज्य श्री के पास पधारे। उनके निवेदन पर जब पूज्यश्री भैरूबाग पधारे तब पुण्यविजयजी ने व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा आदि शास्त्रों एवं चूर्णियों की प्राचीन पाण्डुलिपियों की माइक्रो प्रतियाँ दिखाईं। चरितनायक ने उनका सूक्ष्मदर्शी शीशे से अवलोकन एवं अध्ययन किया। उन प्रतियों के कतिपय महत्त्वपूर्ण स्थलों की ओर आपने मुनिजी का ध्यान आकृष्ट किया। पूज्य चरितनायक की आगमरुचि और पाण्डुलिपियों के प्रति तत्परता एवं अनुराग देखकर मुनि श्री || पुण्यविजय जी अत्यन्त प्रभावित एवं पुलकित हुए।
चरितनायक के आगमिक, ऐतिहासिक एवं अन्यान्य विषयों की प्राचीन प्रतियों के प्रति इस प्रकार के प्रगाढ़ प्रेम का ही यह सुपरिणाम रहा कि उनकी प्रेरणा से जयपुर के लाल भवन में आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भंडार,