Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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सादड़ी सम्मेलन, सोजत सम्मेलन, भीनासर
सम्मेलन एवं संवत् २००९ से २०१४ तक के चातुर्मास
• सादड़ी सम्मेलन (संवत् २००९)
भगवान महावीर के धर्मशासन की प्रभावना एवं जन-साधारण को वीतराग धर्म के विश्व कल्याणकारी मार्ग की ओर अग्रसर करने हेतु संगठित प्रयास युग की आवश्यकता थी। पूर्व में अजमेर-सम्मेलन में इसकी भूमिका तय हो गई थी। चरितनायक एवं विभिन्न महापुरुष इस ओर गतिशील थे।
भगवान महावीर की इस विशुद्ध परम्परा का संचालन एक संघ, एक आचार्य एवं एक समाचारी के साथ हो, इस लक्ष्य से सादड़ी (मारवाड़) में वि.सं. २००९ वैशाख शुक्ला ३ तदनुसार दिनांक २७ अप्रेल १९५२ से वृहद् साधु सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय हुआ। परम पूज्य आचार्य श्री सदैव विशुद्ध आचार-परम्परा के हिमायती थे। संगठन में मूल लक्ष्य एक समाचारी का हो, आचारनिष्ठा संघ-संचालन का आधार हो, अपने ये विचार आपने स्पष्टत: कॉन्फ्रेन्स के पदाधिकारियों के समक्ष रख दिये थे। इसी भावना के साथ आपने संगठन में सम्मिलित होने की |स्वीकृति प्रदान की थी। ___सम्मेलन अपने उद्देश्य में सफल हो, इस पुनीत लक्ष्य से प्रमुख मुनिराजों का पूर्व सम्मेलन अजमेर में आयोजित किया गया था। चरितनायक आचार्य श्री को भी इस पूर्व सम्मेलन में निमन्त्रित किया गया। आप श्री इसमें सम्मिलित होने की भावना से फाल्गुन शुक्ला ११ को उग्र विहार कर अजमेर पधारे, जहाँ प्रमुख मुनियों ने खुले हृदय से शासन-हित चिन्तन कर सर्व सम्मति एवं मतभेद में मनभेद न हो, यह मार्गनिर्देशक सिद्धान्त तय कर सादड़ी की ओर प्रस्थान किया। सम्मेलन की शुभ घड़ी आई। उस दिन स्थानकवासी परम्परा की २२ सम्प्रदायों के ३४१ मुनि व ७६८ साध्वियों के प्रतिनिधियों के रूप में ५४ सन्तों ने भाग लिया। देश के विभिन्न कोनों से आये लगभग ३५ हजार श्रद्धालु श्रावक-श्राविका भी इस अवसर पर उपस्थित थे। चरितनायक ने ८ मुनियों एवं ३३ आर्यिकाओं के प्रतिनिधि के रूप में इस सम्मेलन में भाग लिया। आचार्य श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. की परम्परा का प्रतिनिधित्व चरितनायक एवं पं. मुनि श्री लक्ष्मीचंदजी म. ने किया।
सम्मेलन में स्थानकवासी समाज की २२ सम्प्रदायों के महापुरुषों ने विशुद्ध शासन हित एवं जिन शासन के सुदृढ संगठन की मंगल भावना से अपनी-अपनी परम्परा का विलीनीकरण कर 'श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ' के निर्माण में अपनी महनीय युगान्तरकारी भूमिका निभाई।
__ आगम महोदधि पूज्य श्री आत्माराम जी म.सा. को इस श्रमण संघ का आचार्य, पूज्य श्री गणेशीलालजी म.सा. को उपाचार्य, पं. रत्न श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. को प्रधानमंत्री एवं चरितनायक पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. एवं पं. रत्न श्री प्यारचन्दजी म.सा. को सहमंत्री बनाया गया।
संघ का एक आचार्य के नेतृत्व में संगठन हो गया। आचार की दृढता के पक्षधर महापुरुषों ने विलीनीकरण