Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं अशुद्धि दीक्षाविधि और प्रत्याख्यान विधि निर्णय समिति का सदस्य तथा आगमोद्धारक समिति का सदस्य मनोनीत किया गया, जो चरितनायक की गम्भीरता, सजगता, विद्वत्ता के साथ सर्वप्रियता को रेखांकित करता है। अनेक जटिल और विवादास्पद मत वैभिन्य के विषयों को सुलझाने में आपकी योग्यता की सभी ने सराहना की। सम्मेलन के अन्तिम दिन कॉन्फ्रेंस के अधिवेशन में न जाकर चरितनायक ने अतीव दूरदर्शिता का परिचय दिया। उस दिन अनेक पूज्य मुनिराजों को ध्वनिवर्धक यन्त्र में बोलना पड़ा। आचार्य श्री जवाहरलाल जी म.सा. नहीं बोले , अन्य सन्तों ने उसका प्रायश्चित्त लिया, किन्तु पूज्य चरितनायक हस्तीमलजी म.सा. तो पूर्णत: निर्दोष रूपेण बच गए, जिसकी सर्वत्र श्लाघा हुई। पूज्य जवाहराचार्य की भाषा में –“आचार्य हस्तीमलजी म.सा. सबसे चतुर निकले।"
प्राथमिक होने पर भी अजमेर सम्मेलन में जो कार्य हुआ, उतना आगे के सम्मेलनों में नहीं हो सका। चरितनायक ने अपने संस्मरण में स्वयं लिखा है -“साम्प्रदायिक समस्याओं में बिना उलझे सरल मन से गीतार्थों को कार्य करने का अवसर दिया जाता तो बहुत बड़ा कार्य हो सकता था।"