Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं उज्जैन से विहार कर आचार्य श्री इन्दौर पधारे, जहाँ कुछ दिन विराजने से चातुर्मास जैसा धर्माराधन हुआ। यहाँ से हातोद, बड़नगर, खाचरोद, जावरा, प्रतापगढ, छोटी सादड़ी , बड़ी सादड़ी होते हुए मंगलवाड़ से आगे जाने ही वाले थे कि कानोड़ संघ के प्रबल आग्रह से आप ठाणा ३ से कानोड़ पधारे । तत्र विराजित श्री इन्द्रमल जी म.सा. आदि संतों से स्नेह मिलन यादगार बना। साथ में रहे एवं साथ ही व्याख्यान आदि हुए। उदयपुर संघ विनति के लिए उपस्थित हुआ। यहाँ से खेरोदा पधारे। खेरोदा में जयपुर संघ का शिष्ट मण्डल चातुर्मास की विनति लेकर उपस्थित हुआ। जिसमें श्री गुलाबचन्द जी बोथरा, श्री मोतीचन्दजी हीरावत, भौंरीलाल जी मूसल, स्वरूप चन्दजी चोरडिया आदि अनेक प्रमुख श्रावक थे। श्रावकों ने अपने दृढ़ संकल्प के साथ भावपूर्ण विनति की एवं यह निश्चय कर बैठ गए कि उत्तर मिलने पर ही आहार करना, अन्यथा नहीं। भावना के अतिरेक को देखकर विनति स्वीकार कर ली गई। दूसरे दिन उदयपुर संघ के श्री केशवलालजी धाकड़िया, मदनसिंह जी कावड़िया, विजयसिंह जी कावड़िया आदि श्रावकों का शिष्ट मण्डल उपस्थित हुआ। उन्होंने मुनिमण्डल का चातुर्मास अपने पक्ष में प्रदान करने की जयपुर संघ से मांग की। जयपुर संघ प्राप्त सेवा का लाभ छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। उदयपुर वालों को मिला हुआ अवसर हाथ से निकल जाने का बड़ा खेद हुआ। उदयपुर पधारने पर आप कोठारीजी की हवेली में विराजे । श्रावकों ने मुनियों को कमरे में घेर लिया एवं निवेदन किया कि हमारा क्षेत्र खाली नहीं रहना चाहिए। • जयपुर चातुर्मास (संवत् २००१)
उदयपुर की आग्रहपूर्ण विनति को ध्यान में रखते हुए उदयपुर चातुर्मास के लिए स्वामी श्री सुजानमल जी. म, पंडित लक्ष्मीचन्द म. एवं नवदीक्षित माणक मुनि जी म. की स्वीकृति दी एवं आप स्वयं उदयपुर के आस-पास के क्षेत्रों में धर्म-प्रचार करते हुए भीलवाड़ा, विजयनगर, बडांगा, बांदनवाड़ा होते हुए भिनाय पधारे जहाँ पूज्य पन्नालालजी म. से मधुर मिलन हुआ । फिर नसीराबाद, अजमेर, किशनगढ़, दूदू आदि क्षेत्रों को अमृतवाणी से पावन करते हुए जब संवत् २००१ के चातुर्मास के लिए बारह गणगौर के स्थानक में पहुंचे तो जयपुर निवासियों के हर्ष का पारावार नहीं रहा। सामायिक, स्वाध्याय, तपस्या तथा आगम अध्ययन के ठाट लगे। देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालुओं का आगमन हुआ। सैकड़ों बालक-बालिकाओं ने सामायिक और प्रतिक्रमण के पाठ कण्ठस्थ किये। सैंकडों युवकों ने भक्तामर स्तोत्र के साथ दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन सूत्र के अनेक अध्ययन कण्ठस्थ किये।
जयपुर चातुर्मास के पश्चात् आप ब्यावर पधारे और स्थिरवास में तत्र विराजित पूज्य श्री खूबचन्द जी म. से | संघ और समाजहित की चर्चा हुई। उन्हीं दिनों मुनि श्री रामकुमारजी (कोटा सम्प्रदाय), मुनि श्री हजारीमल जी म, मुनि श्री मिश्रीमल जी 'मधुकर', पं. मुनि श्री सिरेमलजी , पूज्य जवाहरलाल जी म.सा. की सम्प्रदाय के वयोवृद्ध मुनि श्री बौथलालजी तथा शोभालालजी भी ब्यावर विराज रहे थे। उन सभी से यहाँ प्रेम मिलन हुआ। तदनन्तर पीपाड़ होकर जोधपुर पधारे । यहाँ से महामंदिर होते हुए भोपालगढ पधारे । यहाँ ज्येष्ठ शुक्ला १४ को क्रियोद्धार भूमि में आचार्यप्रवर श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. के पुण्य-दिवस (स्वर्गारोहण) की शताब्दी का विशाल आयोजन किया गया। परम प्रतापी आचार्य श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. की उत्कृष्ट ज्ञान-क्रिया की स्मृति को चिरस्थायी बनाने हेतु सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल की स्थापना की गई, जो सम्प्रति जयपुर में कार्यरत है। मण्डल से प्रतिमाह जिनवाणी पत्रिका प्रकाशित हो रही है तथा अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। यह संस्था स्वाध्याय एवं ज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है।