Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं श्वेताम्बर मूर्तिपूजक और दिगम्बर समाज ने मिलकर आचार्यप्रवर के सान्निध्य में महावीर जयन्ती का उत्सव मनाया। धारसी भाई का प्रयास इस आयोजन में सराहनीय रहा। वारसी से आप श्री केड़गांव, केतु होते हुए वाड़ी पधारे । रात्रि विश्राम वाड़ी रेलवे स्टेशन की चौकी पर किया। वैशाख कृष्णा एकम के दिन भिंगवान में मुनि श्री छोटे लक्ष्मीचन्द जी महाराज आदि ठाणा २ सातारा आदि क्षेत्रों में विचरण करते हुए आचार्य श्री की सेवा में उपस्थित हुए। यहाँ से रावणगांव, धौण्ड वरबण्ड केडगांव स्टेशन पधारे । यहाँ पर अहमदनगर और पूना के श्री संघों ने संवत् १९९८ के चातुर्मास हेतु आग्रह भरी विनति प्रस्तुत की। आचार्य श्री ने श्रावक संघ की विशालता और सेवाभक्ति को देखते हुए अहमदनगर का चातुर्मास स्वीकृत किया और पूना की ओर विहार की दिशा ली। मध्यवर्ती येवत, उरली एवं लूणी आदि ग्राम नगरों में धर्म-प्रचार करते हुये पूना के भवानी पेठ स्थानक में विराजे। यहाँ पर ऋषि सम्प्रदाय की महासती श्री सूरजकंवर जी महाराज आदि सतियाँ प्रतिदिन आचार्य श्री एवं सन्तवृन्द के दर्शनों का लाभ लेती थी। पूना में कुछ दिन धर्म जागरण करने के अनन्तर घोडनदी होते हुये संवत् १९९८ के अपने २१ वें चातुर्मास हेतु ठाणा ६ से अहमदनगर पधारे। • अहमदनगर चातुर्मास (संवत् १९९८)
संवत् १९९८ का यह चातुर्मास महाराष्ट्र की धरा पर साहित्यिक साधना की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा। नन्दी सूत्र का सम्पादन , संशोधन एवं हिन्दी भाषानुवाद का कार्य युगमनीषी संत ने अहमदनगर के इस द्वितीय चातुर्मास में पूर्ण किया। सतारा के मोतीलाल जी मुथा ने इसी चातुर्मास में इसका प्रकाशन भी कर दिया। कर्नाटक के विभिन्न ग्राम-नगरों, पूना, सतारा आदि क्षेत्रों के श्रमणोपासकों के आवागमन का तांता सा लगा रहा। आचार्य श्री का अहमदनगर में यह द्वितीय चातुर्मास तप-त्याग एवं धर्माराधन के साथ सम्पन्न हुआ। चातुर्मासकाल में बम्बई महासंघ की विनति को ध्यान में रखकर शेष काल फरसने हेतु स्वीकृति प्रदान की।
चातुर्मास समापन पर विहार कर आचार्य श्री मार्गशीर्ष कृष्णा एकम को पाथर्डी पधारे। पाथर्डी में युवाचार्य श्री आनंद ऋषि जी म.सा. के साथ आपका मधुर मिलन हुआ। यहाँ की सिद्धान्तशाला तथा तिलोकऋषि विद्यालय से आप अवगत हुए। यहाँ कुछ दिन विराजने के पश्चात् ब्राह्मणी, बाम्बोरी, धातेरा, ढोकेश्वरी, ढाकली, डेहरा, निमल, हींगणगांव, मालूणी, धौलपुर, आनावोर होते हुए बोरी पधारे। यहाँ से विहार कर पीपलवण्डी, नारायण गांव , मंचर, पैठ, खेड़ चाकण, सिन्दुवरा, बडगांव, कारला, लुणावला, खण्डाला होते हुए पहाड़ की विकट घाटी को पार कर खपोली, खानपुरा , चौक, वारवई होते हुए माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन पनवेल विराजे । मुलुण्ड भाण्डुप, घाटकोपर, माटुंगा, चिंचपोकली, कांदावाड़ी आदि बम्बई के उपनगरों में पधारने से अपूर्व धर्म प्रभावना हुई। घाटकोपर मुनिचर्या की दृष्टि से अधिक अनुकूल होने से आचार्यश्री मासकल्प वहाँ धर्मस्थानक में धर्माराधन हेतु विराजे, चैत्री ओली के समय वहाँ अच्छा धर्माराधन हुआ। नेत्रपीड़ा के कारण आचार्यप्रवर कुछ दिन व्याख्यान नहीं दे सके। चैत्री पूर्णिमा को ओली तप की पूर्णाहुति के अनन्तर अगले दिन आप विहार कर इगतपुरी में श्रावक वर्ग को साधना पथ पर अग्रसर कर नासिक पधारे। यहाँ के लोगों में धार्मिक श्रद्धा प्रमोदकारी थी। जैन छात्रावास भी चल रहा था। ऐतिहासिक तीर्थस्थल नासिक के बाद आप प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण लासलगांव पधारे, जहाँ आपके प्रवचन-प्रभाव से वहाँ के परिवारों में व्याप्त आपसी मनमुटाव तुरन्त समाप्त हो गए। सेठ खुशालचन्द्रजी ब्रह्मेचा, श्री भिक्खूजी सांड आदि प्रमुख श्रावकों ने मिलकर प्रेम से समस्या का समाधान कर लिया। प्रात:काल सबने मिलकर मुनिमण्डल से चातुर्मास की प्रार्थना की। लासलगांव में आपके २२वें चातुर्मास (विक्रम संवत् १९९९)